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मध्यप्रदेश में कंकाली माता के अनेक प्रसिद्ध मन्दिर हैं जो 9वीं-10वीं शताब्दी में तन्त्र के उत्थान काल में बने थे. सभी योगिनी मन्दिरों में कंकाली माता की मूर्तियाँ प्राप्त हैं. मध्य प्रदेश के शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर अंतरा गांव में भी कंकाली माता का एक बहुप्रसिद्ध मंदिर है. इस कंकाली माता मंदिर में 18 भुजी चामुंडा स्थित हैं. कंकाली माता मंदिर के गर्भ ग्रह में अठारह भुजी चामुण्डा के अलावा शारदा एवं अष्टभुजी सिंहवाहनी दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित है. अठारह भुजी चामुण्डा के सिर पर जटा मुकुट, आंखे फटी हुई, भयोत्पादक खुला मुंह, नसयुक्त तनी हुई ग्रीवा, गले में मुंडमाला, लटके हुए वक्ष, चिपका उदर पीठ, स्पष्ट पसलियां तथा शरीर अस्थियों का ढ़ांचा है. इस प्रकार कंकाल सदृश्य दिखने से इनका नाम कंकाली पड़ा. मध्यप्रदेश के ज्यादातर कंकाली मन्दिर में कंकाली देवी का स्वरूप एक जैसा ही है. उड़ीसा में भी कंकाली देवी के अनेक मन्दिर इसी तरह के प्राप्त होते हैं. कंकाली मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है इसलिए यहाँ साल भर दर्शन के लिए लोग आते हैं. नवरात्रि में तो यहाँ दर्शन के लिए भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ पड़ती है.

कंकाली माता का मंदिर आसपास के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि देर रात माता रानी के पट बंद होने के बाद मंदिर के अंदर कोई प्रवेश नहीं कर सकता है. यहां पहरेदारी के लिए सांप डेरा जमा लेते हैं. यह सर्प सुबह तक गर्भगृह के आस-पास मंडराते रहते हैं. यहां तक कि कई बार ऐसी भी स्थिति निर्मित हुई है कि दोपहर के समय भी पट बंद होने पर इन्हें गर्भग्रह व मंदिर के द्वार पर लिपटे देखा गया है. यह घटना कभी कभार नहीं घटती बल्कि प्रतिदिन यह विषधर पहरेदारी के लिए यहां पहुंच जाते हैं. नवरात्रि के समय में माता रानी के दर्शन के लिए वनराज सिंह का भी पंचमी के दिन आगमन होता है.

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 9वीं-10वीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. पहले ये 64 योगिनी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था. राजा युवराज देव प्रथम और राजा कर्णदेव के तांत्रिक आचार्य ने यहां चौसठ योगिनियों की स्थापना कराई थी. कलचुरी काल में यहां पर योगिनी की तंत्र साधनाएं होती थी और उत्तर मध्ययुग में यह तंत्र साधना का केंद्र बन गया था. यहां काफी तादात में योगिनियों की प्रतिमाएं थीं.  कालांतर में जब मंदिर ध्वस्त हो गया तो चौसठ योगिनियों की प्रतिमाएं इधर-उधर हो गईं. यहाँ की लगभग 20 प्रतिमाएं धुबेला म्यूजियम में संरक्षित की गई हैं और 5 महत्वपूर्ण प्रतिमाएं कोलकाता म्यूजियम में रखी गई हैं. बाकी बची हुई मूर्तियां यहीं पर स्थापित हैं.