गणेश जी के एकदन्त बनने की सबसे प्रचलित कथा परशुराम के साथ युद्ध से जुड़ी है. कथा के अनुसार एक बार परशुराम भगवान शिव का दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे लेकिन द्वार पर खड़े गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया. दोनों में काफी बहस हुई लेकिन गणेश पीछे हटने को राजी नहीं हुए.परशुराम ने गणेश जी से काफी विनती की लेकिन हठी गणेश नहीं माने. क्रोधित होकर आखिरकार परशुराम ने गणपति को युद्ध की चुनौती दी. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए गणेश जी ने घोर युद्ध किया.इस युद्ध के दौरान परशुराम ने क्रोधित हो शिव द्वारा प्रदत्त फरसे के वार कर दिया जिससे उनका एक दांत टूट गया और वे एकदंत कहलाए.
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखने की सोची तो ग्रन्थ का आकार बड़ा होने से गणेश जी को ही लिखने के लिए चुना गया. वेदव्यास ने गणेश जी के आगे शर्त रखी थी कि वो बोलना नहीं बंद करेंगे, यानि वे लगातार बोलेंगे और गजानन को बिना रुके लिखना होगा.गणेश जी तैयार हो गये और उन्होंने अपना एक दांत खुद ही तोड़कर उसे कलम बना लिया. तभी से वे एकदंत कहलाए.
पार्वती जी के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी. कार्तिकेय काफी व्यस्त रहने वाले और गणेश घर में उधम मचाने वाले. गणेश जी बहुत शैतानी करने वाले जबकि उनके बड़े भाई कार्तिकेय काफी सरल स्वभाव के. दोनों भाईयों के विपरीत स्वभाव के चलते शिव-पार्वती काफी परेशान रहते थे. गणेश जी अपनी शैतानी से बाज नहीं आते थे. अक्सर कार्तिकेय को परेशान करते रहते थे. ऐसे ही एक झगड़े में कार्तिकेय ने भगवान गणेश को सबक सिखाने का निश्चय किया और उन्होंने गणपति की पिटाई कर दी जिससे उनका एक दांत टूट गया और तभी से गणेश एकदंत कहलाए.

