यह काफी आश्चर्य की बात है कि जब सूर्य देव दक्षिणायन में रहते हैं और उत्तरी गोलार्ध में सर्दी की शुरुआत होती है तो वैष्णव अपने भगवान को विष्णु जगाते हैं. सूर्य जब कन्या के अंतिम हिस्से को पार करता है तो वह अपनी नीच राशि तुला में प्रविष्ट होता है. कन्या अंत भाग और तुला का वह हिस्सा दक्षिण में पड़ता है, अंधकार वाले हिस्से में. कन्या अंत भाग, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ ये दक्षिणी गोलार्ध की राशियाँ हैं जबकि मीन, मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह राशि उत्तरीगोलार्ध की राशियाँ हैं. वेदों में कम प्रकाश वाला हिस्सा दैत्यों का हिस्सा कहा गया है. विष्णु को तो तब जागृत होना चाहिए जब आत्मकारक सूर्य बलवान हो अर्थात उच्च भाव में हो, आत्मकारक सूर्य के नीच भाव में होने पर विष्णु और विष्णु से सम्बन्धित देवताओं को जागृत करने के कारण ही वैष्णव सांसारिक होते हैं, उनमें प्रपंच ज्यादा होता है और आध्यात्म कम होता है. दक्षिण अयन में जब सूर्य कमजोर होता है तो पाप ग्रह बलवान होते हैं. तुला में शनि उच्च भाव को प्राप्त करता है. यह अयन भोगप्रधान है. यह कारण है कि विष्णु भोगप्रधान देवता हैं. दूसरी बात ज्योतिष सन्दर्भ में यह भी है कि जिस तुला राशि में विष्णु जगते हैं वह बनिया राशि है. यह बाजार में रहती है. यह कारण है कि बनिया ही सबसे ज्यादा वैष्णव हैं.
सनातन धर्म में दक्षिणायन आध्यात्म के लिए अच्छा नहीं माना गया है क्योंकि इस अयन का शासक चन्द्रमा है और यह अयन पितरों से सम्बन्धित है. जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में प्रविष्ट होता है तो भारत में कम प्रकाश होने से धीरे धीरे सर्दी का प्रारम्भ हो जाता है. सर्दी भारत में यह सुख का समय है, चिल गर्मी से जनता को मुक्ति मिलती है. सर्दी खूब खाने पीने और मौज करने का समय होता है. यह कारण है वैष्णव 56 भोग खाने वाला सम्प्रदाय है. इनमे आध्यात्म कम होता है, इनका धार्मिक प्रपंच का सारा प्रयोजन धन, भोग के इदगिर्द घूमता है. वैष्णव एकादशी भी इसीलिए करते हैं.
वैदिक ज्योतिष में सबसे शुभ हॉउस पंचम और नवम हॉउस है. यह ज्ञान और भक्ति, धर्म से सम्बन्धित है. तृतीय और एकादश भाव का सम्बन्ध प्राप्ति और लाभ से है. तृतीय भाव प्रपंच, प्रोपगेंडा है और एकादश हॉउस उससे लाभ है. वैष्णव इसप्रकार प्रोपगेंडा से ही लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते है, जोर जोर से शोरमचाते हैं, दिखावा करते हैं. शास्त्र में शांत होकर उपासना करने के लिए कहा गया है.

एकादशी तिथि में चंद्रमा सूर्य से 11 वें लाभ स्थान में रहता है. हम एकादशी की कथा में हर प्रकार के लाभ का वर्णन पाते हैं. हलांकि वैदिक ज्योतिष में यह स्थिति शुभ नहीं मानी जाती है. 3-11 के सम्बन्ध में स्थित ग्रह लाभ तो दे सकता है लेकिन यह पाप भी उत्पन्न करता है. वैदिक ज्योतिष में 5th और 9th हॉउस को शुभ कहा जाता है. वैदिक ज्योतिष में 11th हॉउस पाप हाउस माना गया है और अक्सर यह खतरनाक रोग देने वाला और मारक भी होता है. वैष्णव सम्प्रदाय में जो भोगप्रधानता और पाप दिखता है उसका कारण यही लगता है. यह कुंडली 25 मार्च एकादशी तिथि की कुंडली है.

एकादशी में चन्द्रमा सूर्य से एकादश स्थान में स्थित है. वैष्णवों में जो भोगप्रधानता और प्रपंच दिखता है वह इसी ग्रह योग और उससे निर्मित प्रवृत्ति के कारण है. वैष्णव धर्म लाभ के लिए ही करते है. वैष्णव तिरुपति बाला जी के प्रपंच बनाते हैं कि भगवान ने कर्ज लेकर शादी किया है, उनकी कर्ज मुक्ति के लिए भक्त लड्डू खरीदें ताकि कर्ज अदायगी हो सके और भगवान मुक्त होकर वैकुण्ठ जा सकें. तिरुपति इन वैष्णवों का प्रमुख सीट है. यहाँ ये नाई का निकृष्ट काम भी करते हैं और बच्चों के बाल उतारने के बाद उसको कम्पनियों को बेच कर पैसे कमाते है. आंकड़ों के अनुसार तिरुपति बालाजी मंदिर में भक्तों द्वारा दान किए गए बालों से हर साल मंदिर को 120 से 150 करोड़ रुपये तक की कमाई होती है.

