एक गरीब ब्राह्मण परिवार में एक दम्पति को अर्धआयु में एक पुत्र की प्राप्ति हुई. उसकी माता जिन्दगी भर एकादशी का व्रत करती रही थी. उसके व्रत में एक दोष था कि भूख सताती तो वह व्रत में अक्सर भोजन कर लेती थी. लेकिन व्रत करती थी और पारण करती थी. जब उसके पुत्र हुआ तो बड़ी ख़ुशी हुई. लड़का बड़ा हुआ और जब बीस साल का हो गया तो उसको भूख इतनी लगती थी कि वह घर का सारा खाना अक्सर खा जाता फिर भी उसकी भूख नहीं मिटती. दुखी माता पिता ने एक सन्यासी से उपाय पूछा. सन्यासी ने कहा कि यह तभी तक खा रहा है जब तक इसका खाता है, चिंता मत करो. सब जल्द ही ठीक हो जायेगा. लड़का पढ़ता लिखता भी नहीं था, बस खेती करने चला जाता था. यह सरल, सीधा तथा बड़ा नेक था लेकिन खूब ज्यादा भोजन करता था. यह बहुत बड़ा दोष था.
एक दिन माता पिता ने उसे घर से निकाल दिया. वह लड़का कई दिन भटकता रहा फिर घूमते फिरते एक मन्दिर के पास पहुंचा. वहां एक स्वामी जी जप ध्यान में लीन थे. उन्हें देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि स्वामी जी काफी मोटे तगड़े हैं, जरूरत खूब खाते पीते होंगे. वह उनके पास ही बैठ गया और उनके उठने का इन्तेजार करने लगा. तभी स्वामी जी के चार पांच शिष्य भी आ गये. वे भी काफी मोटे तगड़े थे. उस लड़के को पूरा विश्वास हो गया कि यहाँ उसका काम हो जायेगा. जब स्वामी जी उठे तो लडके ने कहा -महाराज मुझे अपना चेला बना लो. स्वामी जी ने कहा- हाँ, क्यों नहीं. यह मन्दिर हमारा ही है, यहाँ रहो और मन्दिर में सेवा करो. साथ में पेट भर कर भजन करो. लड़का बोला- यहाँ भोजन तो पूरा मिलेगा न ? स्वामी जी बोले- यहाँ किसी चीज की कमी नहीं. जितना भोजन करना हो उतना करो. यहाँ पांच बार पंगत होती है. लड़का बोला- क्या मैं पांचो में बैठ कर खा सकता हूँ. स्वामी जी बोले- क्या इतना खाते हो? कोई नहीं, तुम जितनी बार बैठना हो उतनी बार बैठ कर खा लेना. भगवान राम का दरबार है. यहाँ कोई कमी नहीं रहती.
फिर एक दिन एकादशी आई, मन्दिर में उस दिन भोजन नहीं बनता था. लडके को बड़ी मुसीबत आई. स्वामी जी से बोला- गुरु देव, हम तो एकादशी में भूखे नहीं रह सकते. यदि भूखे रहेंगे तो द्वादशी नहीं देख पायेंगे. स्वामी जी ने कोषाध्यक्ष को आदेश दिया कि लड़के को राशन इत्यादि जो जरूरत हो दिया जाय. यह नदी के किनारे खुद बना कर भोजन करेगा. बशर्ते यह तब तक भोजन नहीं करेगा, जब तक भगवान को भोग न लगा ले. लड़का गुरु जी की बात से सहमत हो गया. उसने पहले दिन स्वयं नदी किनारे भोजन पकाया और भगवान को भोग लगाया. उसने भगवान का नाम ले लेकर बहुत बुलाया लेकिन भगवान कहीं दिखे नहीं. काफी देर हो गई. लेकिन वह पुकारता रहा, फिर अकस्मात श्री राम-सीता दोनों प्रकट हुए. उसने देख कर प्रणाम किया. फिर सोचने लगा-“ये तो दो हैं. भोजन हमने एक ही का बनाया है.” बोला- प्रभु आप जल्दी भोजन कर लें, मुझे बड़ी भूख लगी है. फिर मन में सोचने लगा ” देखने में तो काफी लम्बे मोटे तगड़े हैं और साथ औरत भी है, औरते ज्यादा खाती हैं. पता नही हमारे लिए बचेगा या नहीं.” राम ने पूछा-क्या हुआ? बोला- कुछ नहीं, कुछ नहीं आप लोग पाओ. राम भोजन करके जाने लगे. तब लड़के ने कहा- प्रभु, अगली बार थोडा जल्दी आ जाना, हमसे भूख सही नहीं जाती.
दूसरी एकादशी आई. उसने गुरु जी से कहा- गुरु देव आज दो गुना राशन चाहिए. गुरु ने पूछा- क्यों? उसने कहा- भगवान दो आये थे. गुरु ने सोचा कि ज्यादा खाता है इसलिए बहाना बना रहा है. उसे दोगुना राशन मिला. उसने फिर भोजन पकाया. भोजन पका कर उसने भोग लगाया. भगवान को बड़ी देर तक पुकारा. उस दिन भी भगवान आ गये लेकिन इस बार तीन थे. देखते ही उसके होश उड़ गये. ये क्या ? ये कौन है? राम ने पूछा- क्या हुआ ? बोला-ये आपके साथ तीसरे कौन हैं. राम बोले- ये मेरे भाई हैं. उसने पूछा- सगे हैं, या दूर के? राम ने कहा- सगे हैं. उसने कहा- कोई बात नहीं आप लोग भोजन करो. मन ही मन सोचने लगा “पता नही इस बार कुछ बचेगा या नहीं.” राम-लक्ष्मण-सीता ने भोजन किया और जाने लगे. लडके ने फिर कहा- भगवान, आप बता कर जाओ. कल कितने आओगे. हम उसी हिसाब से पकाएंगे. राम जोर से हंसे और अंतर्ध्यान हो गये.
तीसरी एकादशी आई. उसने गुरु जी से कहा -गुरु जी, आज राशन चार लोगो के लिए चाहिए. गुरु ने पूछा- क्यों? उसने कहा- भगवान तीन आये थे. गुरु ने सोचा कि यह जरुर राशन बेचता है. इसके पीछे जाकर देखते हैं. उसे चार गुना राशन मिला. वह बड़ा गठरी लेकर पहुंचा नदी के तीर पर. लेकिन उसने भोजन नहीं बनाया. उसने भगवान को पुकारा- आओ भगवान, मेरा भोजन करो. थोड़ी देर बाद पांच लोग प्रकट हो गये, देखा तो उसके होश उड़ गये. ये क्या ? इनके साथ तो भीमकाय बानर भी है. यह राशन तो उसको ही कम पड़ेगा. राम ने पूछा क्या हुआ ? उसने कहा – आप रोज एक बढ़ जाते थे, इसलिए हमने खाना नहीं पकाया. अब आप इतने आ गये हो तो उधर मोटरी में राशन है, खुद पकाओ और खाओ. हमे तो मिलने वाला नहीं. राम सीता दोनों बहुत जोर से हंसे. सीता की दृष्टि लक्ष्मण, भरत पर पड़ी. सभी खाना पकाने में जुट गये. वहीं अष्टसिद्धियाँ विराज गई. दिव्य पकवान पकने लगा. सप्तऋषि, सिद्ध आ गये, भीड़ जुट गई. सबने कहा-प्रभु यह प्रसाद हमें भी मिलना चाहिए. उस लडके के होश उड़ गये. बोला-भगवान, अब ये कौन लोग हैं? अब कुछ भी बचने की गुजाइश नहीं दिख रही.
उधर गुरु जी देख रहे थे छुप कर. ये किससे बात कर रहा है. हमे तो कोई दिखता नहीं. लडके ने कहा- आप मेरे गुरु को दिखो. वे झूठ मानेंगे कि राशन मैं खा रहा था. भगवान ने उसकी बात मानी और गुरु को दिखे. गुरु रोने लगा. मेरा तो जीवन सफल हो गया. राम ने दोनों को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गये. गुरु-शिष्य दोनों को सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं. मृत्यु के समय स्वयम विष्णु उन्हें वैकुण्ठ ले जाने आये.

