दशहरा अशुभ-असत्य और मिथ्यात्व की शक्तियों पर शुभत्व और सच्चाई की शक्तियों की विजय का पर्व है. महिषासुर और मां दुर्गा के बीच पूरे नौ दिनों तक युद्ध चला था और दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर दिया था. इसी कारण आश्विन मास की दशमी तिथि को विजय के रूप में विजयदशमी मनाते हैं. यह प्रमुख रूप से शाक्त धर्म से जुड़ा पर्व रहा है जिसे कालान्तर में वैष्णवों ने राम से जोड़ कर इस पर कब्जा कर लिया. शाक्त धर्म के तमाम स्थलों पर भी वैष्णवों ने कब्जा किया है.
अब प्रमुख रूप से दशहरा अशुभ का प्रतीक रावण पर शुभ के प्रतीक राम की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाने वाला पर्व बन गया. हर साल आश्विन मास की दशमी तिथि को दशहरा का पर्व मनाया जाता है. वैष्णव मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था. रावण के पुतले जला कर प्रतीक रूप से इस पर्व को मनाया जाता है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन ही पांडवों को वनवास हुआ था और इसी दिन वनवास समाप्त होते ही शक्ति पूजा के साथ शमी के पेड़ में रखे शस्त्र पुन: निकाले थे और कौरवों पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की थी.
दशहरा का उत्सव गावों में किसान नई फसल आने के बाद मनाते थे. इस समय तक धान की फसल तैयार हो जाती है. अगहनी चावल देवी को बहुत प्रिय है, यह पहले कट जाता था. अगहनी चावल की मिठास का भोग देवी को लगाने की प्रथा भी हुआ करती थी. पुराने वक़्त में इस दिन औजारों एवम हथियारों की भी पूजा की जाती थी क्योंकि इसको आम जनता युद्ध में आततायी अशुभ शक्तियों पर सत्य मिली जीत के जश्न के तौर पर देखती थी.
विजयदशमी मुहूर्त
दशमी तिथि 23 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी जो कि 24 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट तक रहेगी. विजयदशमी के दिन रावण दहन का विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 05 मिनट से 02 बजकर 51 मिनट तक है. पूजन की अवधि 46 मिनट है. इस दिन शस्त्र पूजा विजय मुहूर्त में की जा जाएगी.
रावण दहन का अपराह्न मुहूर्त का समय 24 अक्टूबर 2023 दोपहर 01 बजकर 20 मिनट से 03 बजकर 37 मिनट तक है। श्रवण नक्षत्र प्रारंभ 22 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा जो कि 23 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 14 मिनट .तक रहेगा।

