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तमिलनाडु के मंत्री और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र उदय निधि स्टालिन ने हिन्दू धर्म के खिलाफ एक बयान दिया है. उसके बाद राजनीतिक बयानबाजी और विरोध शुरू हो गया है. उन्होंने चेन्नई में हुई सनातन धर्म उन्मूलन सभा में कहा है कि जिस तरह हम मलेरिया, डेंगू व कोरोना का विरोध नहीं कर सकते उसे मिटाना ही ठीक है, उसी तरह हमें सनातन को मिटा कर द्रविण को विजयी बनाना चाहिए. द्रविण संस्कृति और भाषा को लेकर डीएमके संस्थापक करूणानिधि बहुत कट्टर थे. उन्होंने सनातन को सदैव आक्रान्ता के रूप में ही परिभाषित किया. दूसरी तरफ  डीएमके की राजनीति अम्बेडकर और पेरियार की राजनीतिक विचारधारा पर चलती है. ऐसा विवादित बयान बाबा साहेब आंबेडकर ने भी दिया था. डॉक्टर आंबेडकर ने 1940 में ही धर्म आधारित राष्ट्र पाकिस्तान की मांग पर आगाह करते हुए कहा था, “अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा. हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक ख़तरा है. इस आधार पर लोकतंत्र के अनुपयुक्त है. हिंदू राज को हर क़ीमत पर रोका जाना चाहिए.”

आज से लगभग 77 वर्ष पहले जिस ख़तरे के प्रति आंबेडकर ने आगाह किया था, वो आज हिंदुत्व की राजनीति बन गई है. जातिवादी असमानता हिंदुत्व का प्राण है इसलिए हिंदुत्व बनियों-पुजारियों की पार्टी बन कर उभरी और बनिया- पुजारी वर्ग का नेतृत्व करती है. इनका राजनीतिक मुद्दा जनता की समस्याएं नहीं है सम्प्रदायिक मुद्दे हैं. गाय इनका मुद्दा है लेकिन इनके विगत 9 वर्ष में बीफ का आयात 300 गुना बढ़ा है, जगह जगह हिंदुत्व के कार्यकर्ता  ही गाय काटते और बेचते पकड़े गये हैं. मन्दिर मुद्दा मन्दिर की जमीन हडपने के लिए है और उन्होंने राम मन्दिर ही हड़प लिया है. राम मन्दिर पारम्परिक वैष्णवों का स्थल था, उनका त्रेतायुग से जन्मभूमि पर अधिकार है लेकिन राजनीति कर आरएसएस ने इसे हड़प लिया. हिंदुत्व की बनियावी कम्युनल राजनीति में दलितों का कौन सा हित हो रहा है ?

भारतीय सम्विधान के निर्मार्ता अम्बेडकर ही हिन्दू मुक्त दलित की आवाज बुलंद करने वाले पहले राजनेता थे. उनका कहना था कि हिंदू धर्म में जाति का कॉन्सेप्ट धर्म शास्त्रों से आया है (स्मृति और पुराण). इसलिए जब तक इनको नष्ट नहीं किया जाएगा, तब तक जाति प्रथा ख़त्म नहीं होगी. उन्होंने हिंदू धर्म शास्त्रों को दो हिस्सों में बांटा. सिद्धांत और नियम. सिद्धांत और दर्शन की बात उपनिषदों में की गई है, लेकिन असलियत में उपनिषद हिंदू जीवन शैली में कहीं भी नहीं दिखते. उनकी बात में सच्चाई भी है. हिन्दू धर्म प्रेक्टिस में मूलभूत रूप से पुजारी-बाबा वर्ग के दकियानूस पौराणिक विचारो पर चलता है. उन्होंने दलितों का उद्धार बौध धर्म में देखा और बौध धर्म स्वीकार कर दलितों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया. डीएमके हो या कोई भी अन्य पार्टी जो दलित राजनीति करती है, वह अम्बेडकर के सिद्धांतों पर ही आधारित रहता है.

हिंदुत्व कम्युनल राजनीति के द्वारा बनियों का निहित स्वार्थ सिद्ध करती है. इससे हिन्दुओं में बहुसंख्यक वर्ग का भी कोई कल्याण नहीं हुआ है. डीएमके की अपनी दलित राजनीति है, हिंदुत्व की अपनी बनियावी राजनीति है. अंतर कोई नहीं है. हिन्दुतान की सभी सम्पत्तियां गुजरात के दो तीन बनियों को बेचकर हिंदुत्व किस हिन्दू का कल्याण कर रहा है ? पिछले दो साल से हिन्दुओं ने 1200 का सिलिंडर खरीदा , 3 महीने 250 रूपये किलो टमाटर खरीदा, सरसों तेल दो गुना महंगा खरीद रहे ..किसका हिंदुत्व से कल्याण हुआ ? दलित का तो क्या होगा ?  उच्च वर्ग के बहुसंख्यक हिन्दुओं का ही कौन सा कल्याण हुआ सिवाय इसके कि हिन्दुओं को हिन्दू-मुस्लिम  संघर्ष में लगा कर, समाज में घृणा भर कर बनियों को पोर्ट, एयरपोर्ट, कोयले की खादाने, रेलवे स्टेशन बेचे गये. !