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क्या कृष्ण ने की थी राधा की योनी पूजा ! कृष्ण राधा की प्राइवेट ऑर्गन की पूजा करते थे. यह बात एक वार्ता में रामकृष्ण परमहंस ने कहा है. यह बात वे इसलिए कह सके क्योंकि सहजिया वैष्णवों के साथ उनकी बैठकी रहती थी. यह शुक देव के जन्म कथा से भी इंगित होता है. शुक देव के जन्म की स्टोरी तन्त्र को ही बताती है. शुकदेव पूर्व जन्म में राधा का तोता थे अर्थात सात्वत वैष्णव थे. वैष्णव और शैव में प्राचीन दुश्मनी है. तन्त्र ज्ञान शैवो की परम्परा की चीज है. अमरनाथ की गुफा में शिव पार्वती को तन्त्र का गुप्त ज्ञान दे रहे थे. वहां यह तोता घुसपैठिया बन कर चुके से बैठ गया और उनके तंत्र रहस्य सुनने लगा. पार्वती हूँ हूँ करके हुंकारी भर रही थी. लेकिन अकस्मात सो गई. तब तोता बना शुक हूँ हूँ करने लगा. शिव को पता चल गया और त्रिशूल लेकर मारने दौड़े. तब शुक जान बचा कर भागा. पीछे पीछे त्रिशूल. तीनो लोक में गया लेकिन शरण नहीं मिली. तब उसने सोचा कि व्यास की पत्नी के भीतर घुस जाता हूँ. वह उसके मुख से घुस गया अर्थात वैष्णवों के घर में घुस गया. यह वर्षो बाहर नहीं निकला. तब कृष्ण ने आश्वासन दिया कि निकलो, कुछ नहीं होगा. तब निकले. वही शुकदेव भागवत का उपदेश किये जिसमें दसम स्कन्ध के रासलीला में स्पष्ट लिखा कि काम भगवतप्राप्ति का माध्यम है.
यह गौरतलब बात है कि वेदव्यास सन्यासी थे. ग्रहस्थ नहीं थे. यह वैष्णव सात्वतो ने स्टोरी बना कर उन्हें गृहस्थ बना दिया और शुक को उनका पुत्र. भागवत की प्रमाणिकता के लिए यह ग्रन्थ वेदव्यास से ही लिखवाया. यह सात्वत वैष्णवों का ग्रन्थ है जो तन्त्र मार्ग से चलते रहे हैं. बाहर वैदिक दिखाते हैं, भीतर तांत्रिक.