
देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र को सभी हिन्दू आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित जानते हैं. ज्यादातर हिन्दू धर्मान्ध हैं और कम ही पढ़ते हैं. देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र वस्तुत: उनके द्वारा लिखित स्तोत्र नहीं है. यह चार पीठों में किसी पीठ के शंकराचार्य द्वारा रचित है, जो लिखते समय 85 वर्ष के थे. इस स्त्रोत्र में स्वयं स्तोत्र के लेखक ने लिखा है “मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।” मैं पचासी वर्ष से अधिक अवस्था का हो गया हूँ. सभी जानते हैं कि आदि शंकराचार्य की मृत्यु 32 साल की उम्र में हुई थी. स्तोत्रकार ने तो अपनी उम्र लिख दी थी लेकिन प्रचार करने वाले पंडितों को इस स्तोत्र को आदि शंकराचार्य के नाम पर प्रचारित करने की क्या जरूरत पड़ी ? क्योंकि आदि शंकराचार्य का नाम लिख देने से कुछ भी आथेंटिक हो जाता है! यह पुजारी वर्ग का वास्तविक चरित्र हैं. यदपि की यह स्तोत्र एक बेहतरीन स्तोत्र है. इस स्तोत्र के लेखक को इसका श्रेय मिलना चाहिए था. हिन्दू यह तो जानता कि अन्य पीठ के जो शंकराचार्य हुए वो कोई कमतर नहीं थे. गोवर्धन मठ के पूर्व शंकराचार्य जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा 16 सूत्रों में लिखित ‘वैदिक गणित’ क्या अभूतपूर्व ग्रन्थ नहींहै! यदि यही ग्रन्थ आज से 1000 साल पहले लिखा गया होता तो इसे भी “पाणिनि विरचितं’ या ‘महेश्वर विरचितं ‘ कह कर लेखक को गायब कर देते ..
ऐसी ही अनेक स्तुतियाँ आदि शंकराचार्य के नाम पर प्रचारित की गईं हैं. कुछ स्तुतियों को प्रचारित करने के लिए कहानी भी गढ़ दी गई है. अनेक ऐसी स्तुतियाँ आदि शंकराचार्य के नाम पर प्रचारित कर उनके स्वरूप को पौराणिक बनाने की चेष्टा की गई है. धर्म का बिजनेस करने वाला पुजारी वर्ग प्राचीन काल से झूठ का प्रोपगेंडा करता रहा है. कोई भी धार्मिक किताब लिख कर भगवान के नाम पर प्रचारित करना उसकी सबसे एक गंदी आदतों में एक है. भगवान ने कहा ? शिव उवाच ! या नारायण उवाच ! भगवान के नाम पर असत्य और गपोड़शंख भी आथेंटिक हो जाता है.
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥५॥
गणेश जी को जन्म देने वाली माता पार्वती! अन्य देवताओं की आराधना करते समय मुझे नाना प्रकार की सेवाओं में व्यग्र रहना पड़ता था, इसलिए पचासी वर्ष से अधिक अवस्था हो जाने पर हमने अन्य देवताओं को छोड़ दिया है, अब उनकी सेवा-पूजा मुझसे नहीं हो पाती है; अतएव उनसे कुछ भी सहायता मिलने की आशा नहीं है. इस समय यदि तुम्हारी कृपा नहीं होगी तो मैं अवलम्बरहित होकर किसकी शरण मैं जाउंगा.