जम्मू-कश्मीर के खीर भवानी मन्दिर में शुक्रवार हजारों की संख्या में भक्तो ने देवी की पूजा अर्चना कर उत्सव मनाया. खीर भवानी, क्षीर भवानी या राज्ञा देवी मंदिर कश्मीर का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है. इस मन्दिर पर कश्मीरी पंडितों की असीम आस्था है. भवानी देवी का यह प्रसिद्ध मंदिर जम्मू और कश्मीर के गान्दरबल ज़िले में तुलमुल गाँव में एक पवित्र सरोवर के ऊपर स्थित है. खीर भवानी मंदिर में ‘ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर पर वार्षिक मेला लगता है जिसमे हजारों पंडित शरीक होते हैं. कश्मीरी पंडितों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है. कल शुकवार को पांच हजार से अधिक पंडित कड़ी सुरक्षा के बीच यहाँ पहुंचे. तीन दिवसीय वार्षिक मेले की शुरुआत बहुत भव्यता के साथ हुआ. देश के अन्य हिस्सों और आसपास के गांवों से लोगों ने खीर भवानी या तुलमुल्ला में रागन्या देवी मंदिर में पूजा की. भक्तों ने अनुष्ठान के रूप में मंदिर के पास सैकड़ों दीपक जलाए और रात भर प्रार्थनाओं में भाग लिया.

क्षीर भवानी मन्दिर में पारंपरिक रूप से वसंत ऋतू में खीर चढ़ाया जाता था इसलिए नाम ‘खीर भवानी’ पड़ा. इन्हें महारज्ञा देवी के नाम से जाना जाता है. क्षीर भवानी मन्दिर एक सिद्ध मन्दिर है, इसका सम्बन्ध कश्मीरी शाक्तों से है. ये दुर्गा और त्रिपुरसुन्दरी के रूप में पूजित होती हैं. मन्दिर का सरोवर बसंत ऋतु में रंग बदलता है और बैगनी रंग का दिखने लगता है. ऐसा बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद कश्मीर गए थे और उन्होंने खीर भवानी की पूजा की थी. पूजा करते समय मंदिर की स्थिति ने उन्हें चिंतित कर दिया था. स्वामी विवेकानंद मन्दिर को बड़ा बनाने के बारे में सोचने लगे, उस समय देवी ने उनसे कहा, “मेरी इच्छा है कि मैं एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर में रहूं, अन्यथा, मैं चाहूं तो क्या मैं तुरंत यहां सोने का सात मंजिला मंदिर नहीं बना सकती? तुम क्या सहायता कर सकते हो? क्या मैं तुम्हारी रक्षा करूं यातुम मेरी रक्षा करोगे?” विवेकानंद ने क्षमा मांगी और पूजन सम्पन्न कर विदा हुए. कथा के अनुसार रावण से दुखी होकर पराम्बा यहाँ पधारी थीं और एक पंडित की याचना और प्रार्थना पर क्षीर भवानी में स्थापित हो गई थी. इस मन्दिर में कश्मीर के मुस्लिम भी करते हैं पूजा अर्चना. समस्त कश्मीरवासियों की देवी है क्षीर भवानी .

