श्रीराम ने वन गमन से पूर्व अपनी सारी सम्पत्ति का दान किया था. उनके दान कर लेने के उपरांत एक गर्गवंश का गरीब तपस्वी ब्राह्मण त्रिजटा दान के लिए उपस्थित हुआ. यह ब्राह्मण जंगल में रहता था और जंगल में ही कंदमूल खोद कर निकालता था तथा परिवार का पालन करता था. एक दिन उसकी पत्नी ने सुना कि राम बहुत बड़ा दान कर रहे हैं, उसने त्रिजटा को प्रेरित कर राम से दान प्राप्त करने के लिए भेजा. वह हाथ में दंड लिए अयोध्या में उपस्थित हुआ और राम से उसने कहा –
स राज पुत्रम् आसाद्य त्रिजटः वाक्यम् अब्रवीत् |
निर्धनो बहु पुत्रः अस्मि राज पुत्र महा यशः |
क्षतवृत्तिर्वने नित्यम् प्रत्यवेक्षस्व मामिति || -वाल्मीकि रामायण २-३२-३४
हे महायशस्वी राजकुमार! मैं एक बहुत गरीब ब्राह्मण हूँ. मेरे बहुत सारे बच्चे हैं. आप मेरी स्थिति स्वयं देख सकते हैं.
तमुवाच ततो रामः परिहाससमन्वितम् |
गवाम् सहस्रमप्येकम् न च विश्राणितम् मया |
परिक्षिपसि दण्डेन यावत्तावदवाप्य्ससि || २-३२-३५
राम उसकी फटेहाल स्थिति देख मुस्कुराते हुए बोले- हे ब्राह्मण! अभी तक हमने हजार गायें भी दान नहीं की है. आप इस अपने दंड को जहाँ तक फेंक सकते हो वहां तक की समस्त भूमि और गायें आप की हो जायेंगी.
उस त्रिजटा ब्राह्मण ने घुमा कर ऐसा दंड फेंका कि राम के महल से सरयू पार बहुत दूर हजारों गौओं के झुण्ड के बीच में गिरा. राम ने वह सब जमीन और गौए त्रिजटा को दान कर दिया.
राम ने कहा –
ब्रवीमि सत्येन न तेऽस्ति यन्त्रणा |
धनम् हि यद्यन्मम विप्रकारणात् |- वाल्मीकि रामायण २-३२-४१
हे ब्राह्मण! मैं सच कहता हूँ. आपके लिए कोई सीमा नहीं. मेरा समस्त धन और सम्पत्ति ब्राह्मणों के लिए ही है.
गौ और ब्राह्मण दोनों एक ही हैं. ब्राह्मणों से वेद मंत्र की स्थिति है, गौओ से यज्ञ के साधन हविष्य की स्थिति है. शास्त्रों में गौ दान का बहुत महत्व कहा गया है. गौ दान का फल अनंत है. जैसे नदियों में गंगा नदी श्रेष्ठ है, इसी प्रकार गौओ में कपिला गौ उत्तम मानी गई है. जो गौ सीधी हो, दुहने में तंग न करे, जिसका बछड़ा सुन्दर हो, ऐसी गाय का दान करने से, उसके शरीर में जितने रोये होते है उतने वर्षों तक दाता परलोक में सुख भोगता है. बीमार, अंगहीन,बूढी गाय या अन्याय से प्राप्त की हुई गाय का दान नहीं करना चाहिये, स्वयं उसकी सेवा करनी चाहिये. खरीदी हुई, दुग्धवती, दुःख से छुडाई हुई, गौदान करने का बड़ा फल है. उभयमुखी धेनु को दान करने का शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है. तुरंत ब्याती हुई गाय को ही “उभयमुखी”गौ कहते हैं. जो गौ ब्या रही हो, बछड़े का थोडा-सा भी अंग दिख रहा हो,उस समय वह गौ पृथ्वी रूपा हो जाती है उसका दान करने पर सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल प्राप्त होता है. वह गाय उभयमुखी कहलाती है. उस बछड़े और गाय के शरीर में जितने रोयें होते है उतने युगों तक दाता देवलोक में पूजित होता है.
ब्राहमण को सफ़ेद गौ दान करने से, मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है. धुएं के समान रंग वाली गौ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है. कपिला गौ का दान अक्षय फल देने वाला है, कृष्ण गौ का दान देकर मनुष्य कभी कष्ट में नहीं पड़ता. भूरेरंग की गाय दुर्लभ है, गौररंग वाली गाय कुल को आनंद प्रदान करने वाली होती है. कपिला गौ के दान से सभी पापों का क्षय हो जाता है.
वैतरणी धेनु – कृष्ण वर्ण वाली होती है जब व्यक्ति की मृत्यु होती है तब नीचे से ऊपर जाने के मार्ग में वैतरणी नदी मिलती है जो बहुत भयानक होती है.यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में गाय को दान किया हो तो उसे नदी को पार करने के लिए वही धेनु मिलती है व्यक्ति उसकी पूंछ पकड़कर आसानी से नदी को पार कर जाता है.
उत्क्रांति धेनु – यदि किसी व्यक्ति के प्राण निकलते समय बहुत कष्ट हो रहा हो तो उत्क्रांति धेनु का दान यदि उससे कराया जाए तो उसके प्राण निकलने में कष्ट नहीं होता.
ऋण धेनु –ऋषि ऋण, पितृ ऋण मनुष्य और अन्य ऋण से मुक्त होने के लिए भी मानुष को गाय का दान करना चाहिये.
पापनोदक धेनु –कायिक, वाचिक, मानसिक, पाप की निवृति के लिए भी व्यक्ति को गौ का दान करना चाहिये.
गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये जो वास्तव में गाय को पाले, उसकी रक्षा करे, सेवा करे.अन्यथा गौदान करने पर गौ माता यदि दुखी रहती है तो गौ दान व्यर्थ जाता है. जो दस गौए और एक बैल दान करता है तो छोडा हुआ सांड अपनी पूँछ से जो जल फेकता है, वह एक हजार वर्षों तक पितरो के लिए तृप्तिदायक होता है, सांड या गाय के जितने रोएँ होते है उतने हजार वर्षों तक मनुष्य स्वर्ग में सुख भोगता है.
सभी पुराणों में गोदान का फल वर्णन किया गया है. मास विशेष में किस प्रकार की गौ का दान पुण्यदायी है इसका वर्णन किया गया है-
1-विष्णु पुराण- कार्तिक मास की अमावस्या और पूर्णिमा को गोदान का महान पुण्य है.
2- वायु पुराण – श्रवण पूर्णिमा को गुड़ की गाय दान करें
3-भागवत पुराण- भाद्रपद पूर्णिमा को सोने का सिंहासन और कमल दान करे. यदि यह न बने तो दस गो में से कोई एक दान करे
4-नारद पुराण –अश्विन पूर्णिमा को ७ गौ दान करे.
5-मार्कण्डेय पुराण – सुवर्णमयी हाथी दान करे या न बन पड़े तो दस गो में से कोई एक दान करे
6-भविष्य पुराण – पौष पूर्णिमा को गुड धेनु दान करे
7-अग्नि पुराण – तिल की बनी धेनु मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दान करे
8-ब्रह्मवैवर्त – माघ पूर्णिमा को गाय दान करे
9-लिंग पुराण – फागुन पुर्णिमा को तिल धेनु दान करे
11-वाराह पुराण –चैत्र पूर्णिमा को तिल धेनु के साथ सोने का गरुण दान करे
12-स्कन्द पुराण – सुवर्णमय त्रिशूल के साथ बैल या गाय दान करे
13-वामन पुराण – विषुव योग में घृत गाय दान करे.
14-कूर्मपुराण – अयनारम्भ में सोने का कछुआ या गो दान करे
15-मत्स्य पुराण – विषुव योग में मत्स्य और गो दान करे
16-गरुण पुराण – विषुव योग में दो सुवर्ण की हंस प्रतिमा या गो दान करे
17-ब्रह्माण्ड पुराण – किसी पूर्णिमा को वस्त्राक्षादित सोने का सिंहासन या गो दान करे
विशेष- यदि जीवन में बहुत बड़ा कष्ट हो तो कपिला गाय का दान बहुत बड़ी रेमेडी है. यदि सन्तति न होती हो तो कन्या राशि में जब सूर्य हो उस समय अमावस्या को कपिला गाय बछड़े के साथ दान करना..

