
सभी ग्रह जितने अंशों में उच्च के होते हैं, उतने ही अंशों में अपनी उच्च राशि के सम्मुख (अपोजिट) राशि में नीच के होते हैं. जैसे चन्द्रमा वृष राशि में 3 डिग्री पर उच्च का होता है, उसी तरह सामने की राशि वृश्चिक में 3 डिग्री पर ही नीच अवस्था को प्राप्त होता है. बुध कन्या में 15 डिग्री पर परमोच्च स्थिति में पहुंचता है और इतने ही डिग्री पर मीन में परम नीच अवस्था में होता है. बुद्ध नीच 15 डिग्री मीन में उत्तर भाद्रपद चतुर्थ पाद में होता है और बुद्ध नीच नवांश में तब होता है जब वह कर्क राशि में अश्लेषा चतुर्थ पाद में होता है. बुध कर्क लग्न में होकर नीच नवांश में हो तो जातक के लिए खतरनाक स्थिति हो सकती है. लेकिन यह कुंडली की अन्य बहुत सी बातों पर निर्भर करता है. कर्क लग्न में गंडमूल नक्षत्र में जन्म हो और बुध अश्लेषा चतुर्थ पाद में हो तो बुध खतरनाक हो सकता है, जातक पागल हो सकता है. प्राचीन विद्वानों ने अश्लेषा चतुर्थ पाद को सबसे खराब बताया गया है, इसमें जन्मे बच्चे जल्दी जीवित नहीं बचते विशेषकर इन पांच मुहूर्तों में -राक्षस, यातुधान,पिता और यमकाल। मीन राशि मे उत्तरभाद्रपद में सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक नवांश पड़ता है. बुध की परमोच्च अवस्था वृश्चिक नवांश में होती है.
बुध बौद्धिकता, विश्लेषण और कैलकुलेशन का ग्रह है. चन्द्रमा मन का कारक है इसलिए उच्च चिन्तन, वैचारिक प्रक्रिया में मन भी कारक है इसलिए बुध कन्या राशि के 15 अंश पर चन्द्रमा के हस्त नक्षत्र में उच्च का होता है. आध्यात्मिक विकास में बौद्धिकता और तर्क एक सीमा तक ही उपयोगी है जैसा की उपनिषद कहती है – “नैषा तर्केण मतिरापनेया”. एक सीमा के बाद बुद्धि के तर्क को छोड़ना ही पड़ता है इसलिए मीन राशि में बुध नीच का होता है. जब किसी अद्भुत सौन्दर्य को देखते हैं तब बुद्धि कहाँ काम करती है? ईश्वर सिद्धि के लिए खालिस बौद्धिकता का त्याग अवश्य है. मीन राशि कन्या राशि के अपोजिट स्थित है, यह एक जल राशि है, आध्यात्मिक है जबकि दूसरी पृथ्वी तत्व की राशि है, लौकिक है. दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं लेकिन एकदूसरे का सम्वर्धन करते हैं. बुध का अतिनीच अवस्था में होना कुछ लग्न में अति शुभ होता है. बुध यदि वृष और तुला लग्न में, मिथुन और कन्या लग्न में अति नीच अवस्था को प्राप्त हो और शनि केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक जीवन में न केवल सफल होता है बल्कि उसकी आध्यात्मिक उन्नति भी अच्छी होती है. सभी लग्नों में नीच बुध के नवांशों का अलग अलग फल है, नवांश में कौन सा लग्न उदित हो रहा है, उसके स्वामी की स्थिति लग्न और नवांश दोनों में क्या है और फिर बुध के नवांशपति की स्थिति क्या है ये सब देखना चाहिए. ज्योतिष के नवांश सिद्धांतों को ध्यान में रख कर ही ग्रह के चरित्र और उसके फल को जाना जा सकता है. बुध Reason है तो आध्यात्म और पराविद्या के बावत इसकी सबसे शुभ स्थिति इसकी नीच अवस्था है. सांसारिकता के बावत इसकी उच्च अवस्था ही अच्छी होती है. यही कन्या-मीन का द्वैत और अद्वैत है.
उदाहरण के लिए अल्बर्ट आइन्स्टीन की यह कुंडली देखिये –

यहाँ बुध नीच अवस्था में है लगभग 11 डिग्री मीन राशि में है और शनि से युक्त है. यह परमनीच अवस्था में नहीं गया है. राशि स्वामी बृहस्पति नवमेश के साथ राशिपरिवर्तन करके धर्मकर्माधिपति योग का अति प्रभावशाली योग का निर्माण किया हुआ है . बृहस्पति नवांश लार्ड है और नवांश में भी नवम हॉउस में है. नीच बुध तुला नवांश में पड़ गया है. बुध का नवांशपति मिथुन लग्न में पंचमेश और द्वादश लार्ड है और नवांश कुंडली में तृतीयेश और अष्टमेश होकर द्वादश में कुम्भराशि में स्थित है. कुम्भ राशि विद्युत् से सम्बन्धित है. बुध लग्न स्वामी है और नवांश में अष्टम में नवांश कुंडली के द्वादश लार्ड के साथ स्थित है और हॉउस लार्ड राशि परिवर्तन योग में हैं. इस स्थिति ने अल्बर्ट आइन्स्टीन को जीवन में गूढ़ रहस्यों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने relativity का सिद्धांत खोज निकाला और समीकरण E = mc2 द्वारा दुनिया को बदल दिया. लेकिन यदि यही बुध मीन में 14-15 degree पर होता तो स्थिति एकदम अलग हो जाती और परिणाम अलग हो जाता.
आइन्स्टीन ने General relativity की खोज शुक्र की महादशा में की और शुक्र-बृहस्पति महादशा में 1907 में दुनिया के सामने रखा और महादशा के खत्म होते होते 1915 में एक प्रयोग के बाद उनका वैज्ञानिक सिद्धांत सर्वसम्मति दुनिया भर के वैज्ञानिको ने स्वीकार कर लिया था. सूर्य की महादशा में १९१९ में उनके सिद्धांत को प्रेक्टिकल स्तर पर सूर्य ग्रहण में जांचा गया और वह सटीक निकला. आश्चर्यजनक रूप से नीच के बुध ने स्वयं अपने भी कुछ रहस्य उजागर किये. आइन्स्टीन के कहने पर बुध के ट्रांजिट के समय General relativity को जांचा गया .

Mercury deviates from the precession predicted from these Newtonian effects. This anomalous rate of precession of the perihelion of Mercury’s orbit was first recognized in 1859 as a problem in celestial mechanics, by Urbain Le Verrier. His re-analysis of available timed observations of transits of Mercury over the Sun’s disk from 1697 to 1848 showed that the actual rate of the precession disagreed from that predicted from Newton’s theory by 38″ (arcseconds) per tropical century (later re-estimated at 43″ by Simon Newcomb in 1882). in 1908, W. W. Campbell, Director of the Lick Observatory, after the comprehensive photographic observations by Lick astronomer, Charles D. Perrine, at three solar eclipse expeditions, stated, “In my opinion, Dr. Perrine’s work at the three eclipses of 1901, 1905, and 1908 brings the observational side of the famous intramercurial-planet problem definitely to a close.” Subsequently, no evidence of Vulcan was found and Einstein’s 1915 general theory accounted for Mercury’s anomalous precession. Einstein wrote to Michael Besso, “Perihelion motions explained quantitatively…you will be astonished” यहाँ पढ़े और समझे ..
हम आगे बढ़ते हैं और नीच बुध के प्रभाव को समझते हैं. वैदिक ज्योतिष में यह अंतर किया गया है और कटेगोरिकली नीच और अतिनीच का फर्क भी किया गया है. मसलन चार्ली चैपलिन की कुंडली को ज्योतिषी नीच बुध कहकर विश्लेषण करते हैं, जबकि बुध नीच नहीं है. सायन चार्ट में बुध मेष में है, निरयन चार्ट में यह मीन में 25’36” डिग्री है. के एन. राव गैंग के ज्योतिषियों की एक जुबिली किताब में चार्ली चैपलिन के नीच बुध को उसके बचपन की गरीबी के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है जबकि सायन कुंडली में यह मेष राशि में है और कन्या नवांश में है. निरयन चार्ट में यह योगकारक पंचमेश के नवांश में स्थित है. शनि लग्न कुंडली में केंद्र में है और मंगल-शुक्र दोनों से भी केंद्र में है और मंगल-शुक्र की युति तो राजयोगकारी है ही, शनि-मंगल का परस्पर दृष्टि सम्बन्ध भी राजयोगकारी है. नीच बुध को चैपलिन के बचपन में परेशानियों विशेष कर मां की बीमारी का कारण बताया गया है लेकिन 1893 से बृहस्पति की महादशा में यह सब हुआ. बृहस्पति जो उसकी माता के हॉउस से द्वादश है और सूर्य उसका अष्टम लार्ड है जो शुक्र के साथ युत है, बृहस्पति सूर्य के नवांश में है और सूर्य शुक्र के नवांश में है तो बृहस्पति-शुक्र, बृहस्पति-सूर्य की दशा उसकी मां के और उसके लिए बुरी थी. यह चार्ट चैपलिन की बायोग्राफी में दिए समय के अनुसार है जिसकी सत्यता थोड़ी संदिग्ध भी है. लेकिन उस चार्ट के अनुसार भी बुध के कारण उसकी परेशानी नहीं हुई, बुध की महादशा में ‘The Circus’ ‘The City lights’ ले साथ वह अपने करियर के चरम पर था.
किसी ग्रह का नीच हॉउस उस ग्रह की शक्ति को कम नहीं करता, यह उसके चरित्र और उसके फंक्शन को बदल देता है. ग्रहों के तीन फंक्शन और मोटिवेशन होते हैं जो गुणों के अनुसार ही निश्चित किये गये हैं.