Spread the love

मनुष्य में कुल चार प्रकार का बल है। 1-देह बल 2-धन बल 3-बुद्धि बल 4- दैव बल . देह बल से धन बल बड़ा होता है. देह को धन नियंत्रित कर लेता है. धनबल को बुद्धिबल नियंत्रित करता है. एक बुद्धिमान व्यक्ति जैसे नेता लाखो लोगों को नियंत्रण करता है. बनिया उसके नियंत्रण में रहता है और उसे डर से धन देता है. इन तीन बलों को ग्रह समाप्त कर देते हैं यदि बुरी दशा में चलते हैं. तुम देखो तो अनेक नेता, स्टार एक पीरियड में जब उनकी अच्छी दशा चलती है तो उपराते हैं और फिर उनका प्रभाव अकस्मात खत्म हो जाता है.

सबसे बड़ा बल दैव बल है जो देवता की कृपा से मिलता है. जिस जातक को दैवबल है वह सबसे शक्तिशाली होता है. वह निर्भय होता है. यह बल बृहस्पति की कृपा से मिलता है. जिसके पास दैव बल है वह निश्चिंत रहता है. उसे कल की भी चिंता नहीं होती. यह बल शंकराचार्य लोगो में या अच्छे साधकों होता है. यह बल सत्य और पुण्य से अर्जित किया जाता है, यह धर्म के साथ रहता है. दैव जिसका बलवान हो उसको सम्राट भी हाथ नहीं लगा सकता है. हाथ लगा दे तो बर्बाद हो सकता है. करपात्री जी पर इंदिरा गांधी ने हाथ लगाया तो कांग्रेस बर्बाद हो गई. कोई खुद को कितना बड़ा पीएम समझे शंकराचार्यों को हाथ नहीं लगा सकता. सभी प्रकार के पुण्यों में दान एक श्रेष्ठ पुण्य कर्म है. दान जातक के लिए एक पुण्य का कारण बनता है. दान बहुत सारे बालाओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है.

एक बार बल्लभाचार्य कहीं कथा कह रहे थे. वे एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे. उस समय किसी बड़े शक्तिशाली सामंत या राजा की मारक दशा थी. किसी आचार्य ने बताया कि यदि वह स्वर्ण के विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमा का तुला दान किसी श्रेष्ठ आचार्य को दे तो उसका मारक प्रभाव खत्म हो सकता है. वह सामंत खोजने लगा कोई ब्रह्मण हो जो तुला दान ले ले. दान सदैव बता कर दिया जाता है. तो जिसको सामंत बताता कि वह यह दान मारक प्रभाव के कटने के लिए दे रहा है तो ब्राह्मण मना कर देते थे. उसका दान कोई लेने को राजी नहीं हुआ. जब बल्लभाचार्य को पता चला तो उन्होंने सोचा कि इससे तो लोगो की ब्राह्मण में आस्था ही खत्म हो जाएगी. क्या कोई ब्रह्मण इतना पुण्यशाली नहीं जो ऐसे दान ले सके?

तब उन्होंने उस सामंत को मुहूर्त दिया कि इस समय तुला दान लेंगे. उस समय जब तुला दान होने लगा तो एक पलड़े पर गुरु वल्लभाचार्य और दूसरे पर विष्णु लक्ष्मी की मूर्ति रखी गई. उस समय पाप पुरुष उन मूर्तियों में दिखे और उन्होंने इशारे पूछा क्या तुम इतना तप और साधना करते हो कि यह दान ले सको? कितने समय संध्या होती है? बल्लभाचार्य ने इशारे से चार ऊँगली दिखाई अर्थात तुरीया संध्या भी होती है. यह देख कर पाप पुरुष ने कहा कि तब तो वह बच गया और यह कहकर पाप पुरुष वहां से चले गए. सामंत ने पूछा किस से बात करते थे? उधर कोई किसी को दिखा नहीं. बल्लभाचार्य बोले तेरा काल था. जा तेरी आयु सभी शेष है. उन्होंने उस मूर्ति के कई टुकड़े कराए और सैकड़ों ब्राह्मण को बांट दिया.