यदि दु:स्थान के स्वामी स्थान परिवर्तन करें तो राजयोग नहीं बनता बल्कि दैन्य योग बनता है. जातक में एक दीनता का भाव रहता है और उसे अनेक संकट और कष्ट झेलना पड़ता है. दैन्य योग तीन प्रकार से बनते हैं –
1- षष्टेश व्यय भाव में हो या व्यय भाव का स्वामी षष्टम भाव में हो
2-अष्टमेश षष्टम में हो या षष्टमेश अष्टम में हो
3- व्ययेश अष्टम में हो और अष्टमेश व्यय भाव में हो
इन तीनो स्थान परिवर्तन योगों में दैन्य योग बनता है और जातक के लिए अनिष्टकारी होता है. दैन्य योग तब भी बनता है जब अष्टमेश षष्टम में षष्टम स्वामी से युक्त हो या उपरोक्त सभी भावों के स्वामी उन दु:स्थानों में युत हों.
नीचे एक जातिका की कुंडली दी जा रही है. उसका लग्नेश उच्च का होकर दैन्य योग का निर्माण करता है. यह जातिका अत्यंत मानसिक रूप से उद्विग्न, दीन, गरीब और खिन्न रहती है. इसकी पढ़ाई ब्रेक हुई और यह कोई काम नहीं कर पाई है. इसको परिवार में भी प्यार नहीं मिलता, कई बार विकट स्थितियों में आत्महत्या का प्रयास कर चुकी है.


