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छठ पूजा सूर्योपासना का सबसे बड़ा पर्व है. हिन्दू धर्म के पंचदेवोपासना में भगवान सूर्य की पूजा का यह एक मात्र सबसे बड़ा पर्व अस्तित्व में शेष है. यह एक महापर्व है जो बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. ये अद्भुत महापर्व कार्तिक मास में पड़ता है. यह शुक्ल पक्ष की षष्टी को मनाया जाता है इसलिए इसे छठ कहते हैं. षष्टी देवी की पूजा सन्तान की दीर्घायु के लिए किया जाता है इसलिए यह पर्व भी प्रमुख रूप से सन्तान की प्राप्ति और सन्तान की दीर्घायु के लिए किया जाता है. यह एकमात्र पर्व है जो देश भर के मेट्रो शहरों में बड़े पैमाने पर बड़ी तैयारी के साथ मनाया जाता है.
इस बार छठ का यह पर्व 5 नवंबर से शुरु हो रहा है. इस महापर्व में छठी मैय्या की पूजा-अर्चना की जायेगी, महिलाएं खाय नहाय के यह कठिन निर्जला व्रत करती हैं और सन्तान के लिए उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. यह महान पर्व 4 दिन तक चलता है. छठ मैया की पीठ नदी या तालाब के तट पर मिट्टी से बनाया जाता जिसपर षष्टी देवी पूजा की जाती है.

मुहूर्त – इस बार 5 नवंबर को नहाय खाए किया जाएगा और 6 नवंबर को खरना मनाया जाएगा. इस बार 7 नवंबर को छठ पूजा होगी और इस दिन ही डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. छठ पर्व का समापन 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ होगा और इसी के साथ छठ व्रत का पारण किया जाएगा.

पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है. इसमें स्नान और भोजन करने का विधान है. इसदिन चना की दाल और लौकी जरुर खाते हैं. छठ पूजा का दूसरा दिन खरना पूजा होती है. इस दिन महिलाएं नए मिट्टी के चूल्हे पर खीर बनाती हैं. यह भोग छठी मैया को अर्पित किया जाता है. इस दिन पूजा के बाद व्रत की शुरुआत होती है. तीसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस बार 07 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. 8 नवम्बर को छठ पूजा के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. प्रातः कालीन अर्घ के लिए अरुणोदय काल ही सबसे अच्छा मुहूर्त होता है. इसके बाद शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण किया जाता है.