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पहली कथा –

इस कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार गणेश चतुर्थी के दिन भूल से चंद्रमा देख लिया था. इसके बाद उन पर स्याममन्तक मणि चोरी करने का आरोप लग गया था. यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी, जिसे उन्हें भगवान सूर्य ने दिया था. सत्राजित ने इसे अपने देव स्थल में रखा था और उसकी पूजा करता था. किसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यह मणि राजा को देने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था .

इस के कुछ दिन बात कृष्ण ने चतुर्थी के चाँद का दर्शन कर लिया. उसी के बाद एक दिन एक घटना घट गई. सत्राजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को पहनकर शिकार के लिए जंगल चला गया. उस घने जंगल में उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया. सिंह से डरकर भागते वक्त प्रसेनजित से मणि गिर कर खो गई. उस मणि को सिंह ने अपने पास रख लिया. एकदिन उस अद्भुत मणि को जामवंत ने सिंह के पास देखा और सिंह को मारकर मणि उससे ले ली. उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी. मणि खोने की बात जानकर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का शक जता दिया.

यह बात जब भगवान श्रीकृष्ण तक पहुंची तो चोरी के दोष से मुक्त होने के लिए मणि की तलाश में वे जंगल पहुंचे और मणि प्राप्ति के लिए 27 दिन तक जामवंत से युद्ध किया. इस बीच जामवंत को श्री कृष्ण में भगवान राम का दर्शन हुआ और उन्हें भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने क्षमा मांगी और मणि सौंप दी. जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती को भगवान प्रदान कर दिया.

गणेश की कथा –

एक दिन गणपति मूषक की सवारी करके कहीं जा रहे थे. मूषक अपनी अजब-गजब चाल में चल रहा था, तभी भगवान गणपति गिर पड़े. भगवान गणपति को गिरते हुए देख, चंद्रदेव को हंसी आ गई. चंद्रदेव की हंसी से भगवान गणेश क्रोधित हो गए. क्रोध में भगवान गणेश ने चंद्रदेव की हंसी को अपमान मानते हुए उन्हें श्राप दे दिया. जिसमें गणेश जी ने कहा कि आज से चंद्रदेव को कोई भी देखना पसंद नहीं करेगा. अगर कोई चंद्र देव को देखता है तो वह कलंकित हो जाएगा और उस पर झूठे चोरी का आरोप लग जाएगा.

चंद्र देव भगवान के दिए श्राप से बहुत दुखी हो गए और सभी देवताओं से क्षमा मांगते हुए गुहार लगाई. चंद्र देव की गुहार के बाद सभी देवताओं ने गणपति की पूजा कर चंद्र देव को दिए श्राप को वापस लेने का आग्रह किया. सभी देवताओं के आग्रह पर गणपति ने कहा, मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन इसमें थोड़ा बदलाव ज़रूर कर सकता हूं.

जिस पर उन्होंने बदलाव करते हुए इस श्राप को सिर्फ एक दिन यानी गणेश चतुर्थी वाले दिन पर ही मान्य कर दिया. उनके अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र देव का दर्शन अशुभ माना जाएगा. इसके साथ ही गणेश जी ने ये भी कहा कि अगर अनजाने में कोई मनुष्य गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र देव के दर्शन कर लेता है. तो इससे बचने के लिए वो छोटा सा कंकड़ या पत्थर का टुकड़ा किसी के घर की छत पर फेंक दें. ऐसा करने से अनजाने में लगे चंद्र दर्शन का पाप खत्म हो जाएगा.