ज्योतिष में वर्णित अनेक विशेष ग्रहीय योगों में चंडयोग एक विशेष योग है। इस योग से कम उम्र में ही भाग्योदय हो जाता है। इस योग के अनुसार यदि तृतीय पराक्रम भाव का स्वामी उच्च का हो विशेष रूप से केंद्र या त्रिकोण में हो और तृतीय भाव में बृहस्पति शुक्र द्वारा दृष्ट हो तो चंडयोग बनता है।
इसका दूसरा पहलू भी है यदि तृतीय पराक्रम भाव का स्वामी उच्च का हो विशेष रूप से केंद्र या त्रिकोण में हो स्थित हो और और तृतीय भाव में शुभ ग्रह हों और  बृहस्पति से तीसरे भाव का स्वामी युक्त हो तो चंडयोग  बनता है। यह योग तृतीयेश के उच्च होकर राहु से मीन राशि में युत होने पर भी बनता है लेकिन यह उतना शक्तिशाली नहीं होता।

कुछ ज्योतिषियों के अनुसार चंडयोग जैसा नाम से ही स्पष्ट है क्रूर ग्रह से ही बने तो उत्तम फल प्रदान करता है क्योकि पराक्रमी ग्रह तो मंगल, सूर्य , राहु और केतु हैं। पराक्रम भाव में जो जो ग्रह ज्योतिष में श्रेष्ठ फल प्रदान करने वाले कहे गये हैं वो ग्रह ही जब ये योग निर्मित करते हैं तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है। तृतीय भाव में क्रूर ग्रह को ही अच्छा कहा गया है इसलिए यह योग उनसे बने तो उत्तम फल देने वाला होगा। योग में ऐसी कोई शर्त नहीं बताई गई है और योग पराक्रम से सम्बन्धित नहीं है बल्कि भाग्योदय से सम्बन्धित है इसलिए तृतीयेश कोई भी हो, यदि वो उपरोक्त योग का निर्माण करता है तो इसमें हेतु उसका पूर्व पुण्य ही है। इसलिए वह उसके फल को प्राप्त करेगा और उसका उस उम्र में भाग्योदय अवश्य होगा।
बहुधा यह योग राजाओं के पुत्रों की कुंडली में दिखता है क्योकि उनका भाग्योदय ही इतनी कम उम्र में होता है।



 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			