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पद्मपुराण एक वैष्णव पुराण हैं लेकिन इस पुराण में यह सुंदर चामुण्डा स्तुति प्राप्त है. शैव, वैष्णव, गाणपत्य सभी मूलभूत रूप शक्ति के ही उपासक हैं. भले ही कृष्णमार्गी कृष्ण की उपासना बाहर करते दिखें लेकिन वे मूलभूत रूप से राधा के उपासक होते हैं. स्वयं श्री कृष्ण भी शक्ति के ही उपासक थे.  

चामुण्डा स्तुति-

जयस्व देवि चामुण्डे जय भूताऽपहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥

विश्वमूर्तियुते शुद्धे विरूपाक्षी त्रिलोचने ।
भीमरूपे शिवे विद्ये महामाये महोदरे ॥ २॥

मनोजये मनोदुर्गे भीमाक्षि क्षुभितक्षये ।
महामारि विचित्राङ्गि गीतनृत्यप्रिये शुभे ॥ ३॥

विकरालि महाकालि कालिके पापहारिणि ।
पाशहस्ते दण्डहस्ते भीमहस्ते भयानके ॥ ४॥

चामुण्डे ज्वलमानास्ये तीक्ष्णदंष्ट्रे महाबले ।
शिवयानप्रिये देवी प्रेतासनगते शिवे ॥ ५॥

भीमाक्षि भीषणे देवि सर्वभूतभयङ्करि ।
करालि विकरालि च महाकालि करालिनि ॥ ६॥

कालि करालविक्रान्ते कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।
सर्वशस्त्रभृते देवि नमो देवनमस्कृते ॥ ७॥

॥ इति पद्मे पुराणे सृष्टिखण्डे श्रीचामुण्डा स्तुतिः समाप्ता ॥