
सनातन धर्म में हरएक तिथि एक देवता को समर्पित है. शिव परिवार में गणेश को चतुर्थी तिथि और स्कन्द स्वामी अर्थात कुमार कार्तिकेय को षष्ठी तिथि समर्पित है. उत्तर भारत में स्कन्द भगवान की पूजा का प्रचलन नहीं है लेकिन दक्षिण भारत में स्कन्द स्वामी का सम्प्रदाय गणपति सम्प्रदाय से बहुत बड़ा है. कुमार कार्तिकेय के भव्य मन्दिर दक्षिण भारत में स्थित हैं. दक्षिण में कार्तिकेय को मुरुगन भी कहा जाता है. मुरुगन (मुरुगा) की दो पत्नियाँ हैं देवसेना और वल्ली. देवसेना इंद्र की पुत्री हैं, इन्हें ही षष्टी देवी कहा जाता है. हर महीने षष्टी तिथि पडती है लेकिन उत्तर भारत में कुछ षष्टी तिथियों में ही व्रत किया जाता है जबकि दक्षिण में गणेश चतुर्थी की तरह हर षष्टी तिथि व्रत-पूजन के लिए महत्वपूर्ण है. षष्टी तिथि के दिन ही भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति नियुक्त किया गया था. मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को चम्पा षष्ठी या चम्पा छठ कहा जाता है. इस वर्ष यह 18 फरवरी सोमवार को पड़ रही है.
चम्पा षष्टी पर भगवान कार्तिकेय को चंपा का फूल अर्पित किया जाता है इसलिए इस व्रत का नाम चंपा षष्ठी पड़ा. इस दिन कुमार कार्तिकेय की पूजा चम्पा के फूलों से करना चाहिए. चम्पा के फूलों से छह बार पुष्पांजली करना चाहिए. पुष्पांजलि देते समय निम्नलिखित मन्त्र पढना चाहिए-
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
कार्तिकेय यह मन्त्र बहुत शक्तिशाली है –
ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरादेवसेना मन: कांता कार्तिकेया नमोस्तुते।
सन्तान की रक्षा और सन्तान प्राप्ति के लिए षष्टी तिथि का व्रत और पूजन प्रशस्त माना गया है. सन्तान विहीन और षष्टी तिथि दोष वाली महिलाएं यदि इस व्रत को विधि पूर्वक करें तो सन्तान प्राप्ति के योग बनते हैं. कुमार कार्तिकेय की पूजा दीपों, वस्त्रों, अलंकरणों, मुर्गों के खिलौनों आदि से की जाती है. इनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल और कृष्ण षष्ठियों पर करनी चाहिए. षष्ठी तिथि पर शिव-पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करके स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करनी चाहिए और अखंड दीपक जला कर’ व्रत करना चाहिए.
चम्पा षष्टी के दिन से मराठी समाज के लोग घरों में छह दिनों तक मल्हारी मार्तंड खंडोबा की आराधना करते हैं. खंडोवा को कुमार कार्तिकेय का अवतार माना जाता है. ऐसी महाराष्ट्र में मान्यता है कि खंडोवा अवतार में उन्होंने मल्ल नामक राक्षस का वध किया था. चम्पा षष्टी उत्सव में छह दिन तक समई (नंदादीप) लगाए जाते हैं. छह दिनों तक भक्त हर दिन एक शिव मंदिर जाते हैं और भगवान शिव की पूजा करने के लिए सब्जियां, फल, सेब के पत्ते और हल्दी पाउडर चढ़ाते हैं. अंतिम दिन, हल्दी पाउडर के अलावा, बहुविध-अनाज, आटे और गेहूं के आधार से बने व्यंजन भगवान को चढ़ाए जाते हैं. चंपा षष्ठी महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण पर्व है. मल्हारी मार्तंड खंडोबा का प्रारम्भ चम्पा षष्ठी रविवार या मंगलवार के दिन शतभिषा नक्षत्र और वैधृति योग में होती है. इस बार 17 दिसम्बर को 2:54 am के बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा जो 18 दिसम्बर 1:22 am तक रहेगा.
चम्पा षष्टी मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 17 दिसंबर 2023 को शाम 05 बजकर 33 मिनट पर इसकी शुरुआत होगी. 18 दिसंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 13 मिनट पर इसका समापन होगा. तत्पश्चात सप्तमी तिथि प्रारम्भ हो जायेगी.