अष्टमी के दिन महागौरी के रूप में माता दुर्गा की पूजा की जाती है. यह सर्व सिद्धिप्रद तिथि है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना हुई. आठवें दिन महागौरी की पूजा करनी चाहिए. महागौरी को ही मां पार्वती(अन्नपूर्णा) के रूप में पूजा जाता है. देवी धवल गौर वर्ण की हैं,इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है. शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि उनका वर्ण पीत वर्ण मिश्रित गौर है इसलिए उन्हें गौरी कहते हैं. देवी का गौर वर्ण शंख, चंद्र और मल्लिका के फूल की तरह है एवं इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है. माता के आठवें स्वरुप महागौरी का स्वरुप बहुत ही शांत है, वह बैल की सवारी करती हैं. उनका स्वरुप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्ण का है और श्वेत वस्त्रधारी हैं देवी के हाथ में त्रिशूल और डमरु है. तीसरे हाथ में अभय और चौथे हाथ में वरमुद्रा है. इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी धवल श्वेत हैं. इनके सिर पर अष्टमी का चन्द्र विराजित है. पुराणों के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने योगाग्नि द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया था. पद्मपुराण के अनुसार कान्यकुब्ज में पूजी जाने वाली देवी को भी गौरी कहा गया है. देवी महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी और योगसिद्धियों की देवी मानी हैं. चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला गौरी, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली कही गईं हैं.
नवरात्रि के अंतिम दो दिन अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का भी विधान है. अष्टमी पर ज्यादातर हिन्दू कन्या पूजन कर कन्यका को भोजन कराते हैं और देवी रूप 9 कन्याओं से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. “या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ” संसार की सभी स्त्रियों में देवी का अंश बताया जाता है. नवरात्रि की अष्टमी तिथि को बेहद खास माना जाता है. इसलिए इसे महाअष्टमी और दुर्गा अष्टमी भी कहते हैं. नवरात्रि में महाअष्टमी को महागौरी की पूजा के बाद कन्या पूजन किया जाता है. कन्या पूजन के बाद कन्याओं को वह भोजन कराया जाता है जो देवी को प्रिय है. प्रसाद रूप में पुड़ी, काले चने की शब्जी, गुड और हलवा प्रसिद्ध है, उनका भोग लगाया जाता है. इसके इतर माता दुर्गा को सभी भोग लगाना चाहिए. सभी प्रकार के भोग द्वारा उन्हें संतुष्ट करना चाहिए.
मन्त्र और ध्यान –
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।
माता महागौरी का स्वरुप बहुत ही शांत है वह बैल की स्वारी करती हैं. उनका स्वरुप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी हैं देवी के हाथ में त्रिशूल और डमरु है. तीसरे हाथ में अभय और चौथे हाथ में वरमुद्रा है.
इनका दूसरा ध्यान इस प्रकार है –
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थितांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ॐ देवी महागौर्यै नमः
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति ।।
स्तोत्र –
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

