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सनातन धर्म में पांच सम्प्रदाय हैं जिनमें शाक्त सम्प्रदाय भी महत्वपूर्ण सम्प्रदाय है. वास्तव सभी सम्प्रदाय मूलभूत रूप से शाक्त सम्प्रदाय हैं क्योंकि सभी सम्प्रदाय में शक्ति की उपासना ही सबसे महत्वपूर्ण है. शैव भी मूलभूत रूप से शाक्त ही होते हैं. वैष्णव भी मूलभूत रूप से शाक्त ही होते हैं. हरि जिस जिसके द्वारा वाच्य होते हैं वह शक्ति ही है. हर साल चार बार नवरात्र आते हैं जो माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन माह में पड़ते हैं. इन चार नवरात्र में से दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्र होते हैं. चैत्र और अश्विन नवरात्र ही प्रमुख नवरात्र माने गये हैं जबकि दो आषाढ़ और आश्विन माह में पड़ने वाले गौड़ नवरात्र हैं.

गौरतलब है कि सूर्य राशि चक्र में भ्रमण करता है और जब राशि चक्र के विशेष बिन्दुओं को ट्रांजिट करता है तो ऋतु परिवर्तन होता है. राशि चक्र में ऐसे चार बिंदु हैं जहाँ सूर्य पहुंचता है तो सृष्टि में महती विकार या परिवर्तन होता है. ये चार महीने माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन चार संध्या की तरह हैं. चैत्र-वैशाख और अश्विन-कार्तिक महीने विशेष हैं क्योंकि यह राशि चक्र के उच्चतम और निम्नतम बिंदु हैं. इन महीनों में सृष्टि में विकार होता है मनुष्य भी इससे गहरे प्रभावित होता है. इन महीनों में बड़े रोगों का प्रादुर्भाव होता है क्योकि ये संधि काल सांध्य स्वरूप हैं, यहाँ से समय चक्र बदलता है. वायुयान जब उड़न भरता है या नीचे उतरता है तो उद्घोषक सावधान करते हैं “सभी अपनी सीट बेल्ट बाँध लें”. ऐसे ही किसी भी संधि में अशुभ प्रभाव रहता है, इसमें दैत्य रहते हैं, ऐसी प्राचीन वैदिक मान्यता है. यह कारण है कि इन महीनों में घर स्वच्छ और पवित्र रखते हुए शक्ति की पूजा उपासना की जाती है.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, चैत्र नवरात्र के दिन ही सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था. यह उगादी या युगादि तिथि मान्य है. इस दिन नये सम्वत्सर चक्र का प्रारम्भ होता है. सम्वत्सर चक्र से प्रजापति का वर्षांत यज्ञ पुन: प्रारम्भ होता है. यह सम्वत्सर पांच पांच वर्ष के युग में विभाजित है. इस सृष्टि चक्र के प्रारम्भ के समय इस महीने में कितने ही दैत्य प्रकट हुए थे और रचनाकर्ता ब्रह्मा जी को खाने दौड़े थे. यह कारण है कि इस सृष्टि चक्र का प्रारम्भ दैत्यदलनी आदि शक्ति महिषासुरमर्दिनी की पूजा उपासना से की जाती है. आद्य शक्ति ही जननी हैं. इस दिन हिन्दू परम्परा से मां दुर्गा की नौ शक्ति रूपों की उपासना करते हैं और मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं. यह हिन्दू धर्म में सबसे प्रमुख और सबसे लम्बा चलने वाला पर्व है. इसे हिन्दू उत्सव की तरह मनाते हैं.

साल 2025 में कब से चैत्र नवरात्र शरू होगी –
पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर पर होगी और तिथि का समापन 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर होगा. ऐसे में चैत्र नवरात्र की शुरुआत 30 मार्च से होगी और समापन 07 अप्रैल को होगा.

कलश स्थापना मुहूर्त –

वैदिक गणना अनुसार, 30 मार्च को जो भी लग्न इस समय में है उस लग्न में या इसके बाद वृषभ लग्न में कलश स्थापना मुहूर्त के अनुसार करना चाहिए. इस बार वृषभ लग्न ज्यादा शुभ है क्योंकि एकादश भाव में 6 ग्रह उपस्थित हैं. वृष लग्न में स्थापना का संकल्प 9:23 मिनट से 9:35 के बीच लेना शुभ रहेगा. घटस्थापना प्रातः काल (सुबह) 06 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 22 मिनट तक है. इस समय में किसी भी शुभ मुहूर्त में घटस्थापना कर सकते हैं. इसके अलावा, जिन्हें मुहूर्त का ज्ञान नही है वे अभिजीत मुहूर्त में 12 बजकर 01 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट के मध्य भी घटस्थापना कर सकते हैं. अपने जन्म लग्न के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना कर सकते हैं.