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एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां होती हैं. साल की अंतिम एकादशी पापमोचनी एकादशी होती है जो हिन्दू नवसम्वत्सर से पहले पड़ती है. चैत्र महीना का कृष्ण पक्ष चल रहा है लेकिन हिन्दू नववर्ष शुक्ल पक्ष में गुडीपड़वा अर्थात नवरात्रि से प्रारम्भ होता है. वैष्णव धर्म में हर एकादशी का विशेष महत्व है. यह तिथि विश्वेदेवा को समर्पित है साथ में वैष्णवों के भगवान विष्णु को भी समर्पित है. इस दिन विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और भक्त उपवास रखते हैं. जैसा की नाम से स्पष्ट है पापमोचनी एकादशी पापों की निवृत्ति के लिए रखी जाता. मनुष्यों से कोई न कोई पाप होता ही रहता है ऐसे में आत्म शुद्धि के लिए ये व्रत काफी महत्वपूर्ण हैं. व्रत का प्रयोजन आत्म को पवित्र करना ही है. एकादशी को व्रत करके भक्ति भाव में दिन व्यतीत करना चाहिए. व्रत एक तप है. इस साल पापमोचनी एकादशी व्रत 25 मार्च को रखा जाएगा.

मुहूर्त –

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 25 मार्च की सुबह 05:21 मिनट से हो रही है, जिसका समापन अगले दिन 26 मार्च को सुबह 03:37 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, 25 मार्च को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था. इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक ऋषि तपस्या करते थे. इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे. ऋषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी. एक समय की बात है, कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा. उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ऋषि का ध्यान भंग कर दिया. अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ऋषि उस पर मोहित हो गए. दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ गुजारे. एक दिन जब मंजुघोषा ने जाने के लिए आज्ञा मांगी तो ऋषि को आत्मज्ञान हुआ. उन्होंने समय की गणना की तो 57 वर्ष व्यतीत हो चुके थे. ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का ज्ञान हुआ. उन्होंने अपने को रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का शाप दिया. शाप सुनकर मंजुघोषा कांपने लगी और ऋषि के चरणों में गिर पड़ी.

कांपते हुए उसने श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा. बहुत अनुनय-विनय करने पर ऋषि ने दया करते हुए कहा, ‘यदि तुम चैत्र कृष्ण पक्ष पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और शाप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी.’ मंजुघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे. शाप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा, ‘पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया. शाप देकर स्वयं भी पाप कमाया है. अत: तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो.’ इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से तथा ऋषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई.