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अगस्त या कनोपस (Canopus या Alpha Carinae) दक्षिणी गोलार्ध के करीना(carina) तारामंडल का सबसे चमकीला तारा है और पृथ्वी से दिखने वाले सबसे चमकीले तारों में दूसरे नम्बर पर है. यह सूर्य से १०,७०० गुना अधिक चमकीला है और 310 प्रकाश वर्ष दूर है. ऐसा विद्वानों का मानना है कि यह विन्ध्याचल पर्वत क्षेत्र में लगभग सन् ५,२००-६००० ईसा पूर्व के करीब उगने वाला सबसे चमकीला भोर का तारा होता था. वैदिक काल में अगस्त तारे के उदित होने के समय के आधार पर विद्वानों का अनुमान है कि ऋषि अगस्त्य विन्ध्य पर्वतों को पार करके दक्षिण भारत में सन् ४,००० ई॰पू॰ के आसपास दाख़िल हुए होंगे.

इसी समय के आसपास मिश्र में अगस्त्य तारा “स्टार ऑफ़ इजिप्ट” के नाम से प्रसिद्ध था. वर्तमान युग में अगस्त तारा धीरे-धीरे उत्तर की तरफ़ जा रहा है. इसकी चमक के कारण बहुत सी संस्कृतियों में इसे दक्षिणी ध्रुव का ध्रुवतारा माना जाता था. सूर्य सिद्धांत के अनुसार यह सिंह राशि के ३ अंश २० कला पर उदित होता है और वृष के २७ अंश ४० कला सूर्य के आने पर अस्त हो जाता है. इसकी स्थिति मिथुन के अंत तथा कर्क के आदि भाग में मानी गई है. भारत में सितम्बर से दिसम्बर के बीच ही यह तारा आकाश में विशेष रूप से दृश्य होता है. ज्योतिष ग्रन्थों में भी इसको अति शुभ तारा माना गया है –
उदयोऽगस्त्य मुने: सप्तर्षीणां मरीचिपूर्वाणाम्।
सर्वारिष्टं नश्यति तम इव सूर्योदये प्रबलं ।।
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार यदि जन्म समय लग्न में अगस्त्य तारे का उदय हो तथा सप्तऋषि उदित हों तो सभी प्रकार के अरिष्टों का उसी प्रकार नाश हो जाता है जिस प्रकार सूर्योदय से तम का नाश हो जाता है.

अगस्त तारा को लग्न में उदित होने के लिए लग्न कर्क राशि के प्रारम्भ का या मिथुन के अंत का होना चाहिए, जन्म रात्रि में होना चाहिए. अगस्त तारा लग्न में हो तो जातक में अद्भुत नेतृत्व के गुण होते है, जातक नया इतिहास बनाता है. करीना (carina) जब क्रांति वृत्त पर नहीं पड़ता तो यह लग्न में उदित नहीं होगा. दक्षिण गोलार्ध में यह एक महत्वपूर्ण तारा माना जाता है, प्राचीन समय में नाविक इसका उपयोग करते थे.

मक्का में काबा की दक्षिणी दीवार अगस्त्य तारा के उदय की दिशा में बनाया गया है, इसे “जनूब Janūb‘ कहा जाता है. प्राचीन मेसोपोटामिया 1100 BC में अगस्त्य तारा के नाम पर एक शहर था ‘इरिडू” और इसकी बड़ी मान्यता थी.

पुराणों में अगस्त्य के उदय पर पूजा का विधिवत वर्णन किया गया है. वराहमिहिर ने भी अगस्त्य तारे के उदय पर इसकी पूजा की विधि का वर्णन किया है, जिससे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में अगस्त्य तारे की पूजा होती रही होगी. दक्षिण भारत में अगस्त्य ऋषि की पूजा होती है, वे दक्षिण भारत के गुरु मान्य है. अगस्त्य ऋषि तो मन्त्र द्रष्टा थे ही, इनकी पत्नी लोपामुद्रा एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि थीं और श्रीविद्या के हादि परम्परा की प्रवर्तक मानी जाती हैं.