ज्योतिष शात्रों में सभी ग्रहों के नीच होने पर उनका नीच भंग होकर राजयोग होता है ऐसा वर्णन है. सभी ग्रह के उच्च नाथ अर्थात जिस राशि में वह ग्रह उच्च का होता उसका स्वामी चन्द्रमा और लग्न से केंद्र में हो नीच भंग राज योग होता है. नीच राशि का स्वामी भी यदि चन्द्रमा और लग्न से केंद्र में हो तो नीच भंग राज योग होता है. यह एक मोटा मोटा सिद्धांत है. जैसे उदाहरण के लिए शनि तुला में उच्च भाव को प्राप्त करता और मेष राशि में नीच भाव को प्राप्त करता है, यदि नीच राशिस्थ शनि का उच्च नाथ अर्थात शुक्र चन्द्रमा से केंद्र में हो तो शनि का नीच भंग हो जाता है और वह नीच भंग राजयोग को उत्पन्न करता है.
इस मोटे सिद्धांत के अनुसार बुध का नीच भंग नहीं हो सकता है क्योंकि वह अपनी ही राशि में उच्च का होता है. फलदीपिकाकार के अनुसार नीच भंग होने के लिए दोनों शर्ते पूरी होनी चाहिये अर्थात 1- नीच राशि का स्वामी चन्द्रमा से केंद्र में हो 2-उस नीच ग्रह का उच्च नाथ भी चन्द्रमा से केंद्र में हो. बुध ग्रह मीन राशि में 15 अंश पर परम नीच अवस्था में होता है और कन्या राशि में इतने ही अंश पर परमोच्च अवस्था को प्राप्त करता है. बुध दक्षिणायान में उच्च होता है और उत्तरायण में नीच होता है. नीच बुध के नीच भंग में पहली शर्त तो पूरी हो जाएगी अर्थात मीन राशि का स्वामी बृहस्पति चन्द्रमा से केंद्र में हो तो उसका नीच भंग हो जायेगा. लेकिन दूसरी शर्त पूरी नहीं होती क्योंकि बुध का कोई उच्चनाथ नहीं है.
भारतीय ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि का प्रदाता कहा गया है. इस ग्रह का संबंध व्यक्ति के चिन्तन और तर्क शक्ति से होता है. सदैव सूर्य के समीप रहने से इसमें सात्विकता और प्रकाश दोनों है. जिनकी कुंडली में बुध मजबूत स्थिति में होता है वे समझदार, तर्क-वितर्क में कुशल और एक बेहद अच्छी विश्लेषणात्मक क्षमता वाले होते हैं. ये सात्विक और विष्णु भक्त होते हैं. यह यंग कुमार है इसलिए जो बातें कुमार में पाई जाती हैं वो बुध में भी है. इसके कारकत्व में खेलकूद, अमोद-प्रमोद, हंसी-मजाक, अध्ययन, भाषा का चमत्कार, विष्णु भक्ति, शुभ व्याख्यान करने वाला, देव मन्दिर, मृदु वचन कहने वाला, लेखन कार्य, दार्शनिकता, मन्त्र सिद्धि करने वाला, समदर्शी स्वभाव, नपुंसकता, वेदांत, शास्त्रज्ञ, व्याकरणाचार्य, ब्राह्मण, गणित, विद्या, कामर्स, व्यापारी, मीडिया, पत्रकारिता. अध्यापन कर्म इत्यादि हैं. इसका बुद्धि पर प्रभाव रहता है. इसके उच्च होने पर जातक की बुद्धि तीक्ष्ण होती है. बुध के नीच होने से बहुत दोष नहीं लगता है यदि यह किसी शुभ ग्रह से युक्त हो या दृष्ट हो. आचार्यों में बुध को अस्त होने का दोष भी नहीं माना है. कुमार को कोई दोष नहीं लगता. मीन राशि काल पुरुष की कुण्डली में मुक्ति का हॉउस है. यहाँ बुध नीच होकर अवस्थित होगा तभी नवमेश धर्म का पूर्ण रियलाईजेशन करेगा. आध्यात्म में बुद्धि का त्याग करने से ही उसकी उपलब्धि होती है, उपनिषद में भी कहा गया है- “नैषा तर्केण मतिरापनेया”. तर्क बुद्धि से उस परमात्मा को नहीं पाया जा सकता है. बुध दर्शन का ग्रह है, जहाँ दर्शन खत्म होता है वहां से आध्यात्म का प्रारम्भ होता है.
अल्बर्ट आइन्स्टीन की कुंडली में बुध लग्नेश होकर नीच राशि में है यदपि की परम नीच अवस्था में नहीं है. यहाँ बुध नीच अवस्था में है लगभग 11 डिग्री में है और शनि से युक्त है. राशि स्वामी बृहस्पति नवमेश के साथ राशि परिवर्तन करके धर्मकर्माधिपति योग का अति प्रभावशाली योग का निर्माण किया हुआ है. बुध जिस ग्रह से युक्त होता है उसी का फल करता है. शनि मेडिटेशन और श्रम-तपस्या का ग्रह है, ऐसे में लग्नेश बुध ने शनि के साथ अल्बर्ट आइन्स्टीन को जीवन में गूढ़ रहस्यों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने relativity का सिद्धांत खोज निकाला और समीकरण E = mc2 द्वारा दुनिया को बदल दिया. आश्चर्यजनक रूप से नीच के बुध ने स्वयं ही अपने कुछ रहस्य उजागर किये. आइन्स्टीन के कहने पर बुध के ट्रांजिट के समय General relativity को जांचा गया. नीच बुद्ध के कारण आइन्स्टीन अक्सर अपनी स्मृति खो देते थे और बुद्धि का स्तर छोड़ देते थे. काफी मजकिया किस्म के व्यक्ति थे और हंसीठिठोली करने वाले व्यक्ति थे. भाषण देते समय अक्सर अपने विषय से भटक जाते थे तथा कुछ और ही कहने लगते थे. एक व्यक्ति के बतौर बुध की प्रकृति के अनुसार वे समदर्शी और मानवतावादी थे. जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने उनके बारे में सटीक बात कही थी-
He was almost wholly without sophistication and wholly without worldliness … There was always with him a wonderful purity at once childlike and profoundly stubborn.


