पुराणों की कथाओं में शौनक ऋषि पुराणों में बड़े प्रसिद्ध हैं और पुराण के ज्ञाता हैं। उनके जन्म का वर्णन पुराणों से पहले लिखे गये महाभारत के इतिहास में प्राप्त होती है। महाभारत के पौलोम पर्व में यह कथा कुछ इस प्रकार कही गई है –
स चापि च्यवनो ब्रह्मन् भार्गवोऽजनयत् सुतम् ।
सुकन्यायां महात्मानं प्रमतिं दीप्ततेजसम् ॥ १ ॥
प्रमतिस्तु रुरुं नाम घृताच्यां समजीजनत् ।
रुरुः प्रमद्वरायां तु शुनकं समजीजनत् ॥ २ ॥
उग्रश्रवाजी कहते हैं—ब्रह्मन्! भृगुपुत्र च्यवनने अपनी पत्नी सुकन्याके गर्भसे एक पुत्रको जन्म दिया, जिसका नाम प्रमति था। महात्मा प्रमति बड़े तेजस्वी थे। फिर प्रमतिने घृताची अप्सरासे रुरु नामक पुत्र उत्पन्न किया तथा रुरुके द्वारा प्रमद्वराके गर्भसे शुनकका जन्म हुआ ॥
शौनकस्तु महाभाग शुनकस्य सुतो भवान् ।
शुनकस्तु महासत्त्वः सर्वभार्गवनन्दनः ।
जातस्तपसि तीव्रे च स्थितः स्थिरयशास्ततः ॥
महाभाग शौनकजी! आप शुनकके ही पुत्र होनेके कारण ‘शौनक’ कहलाते हैं। शुनक महान् सत्त्वगुणसे सम्पन्न तथा सम्पूर्ण भृगुवंशका आनन्द बढ़ानेवाले थे। वे जन्म लेते ही तीव्र तपस्यामें संलग्न हो गये। इससे उनका अविचल यश सब ओर फैल गया ॥
ऊपर श्लोक में तो स्पष्ट ही है कि च्यवन ऋषि ने अपनी पुत्री से ही सम्भोग कर प्रमिति को पैदा किया था। प्रमिति ने कालान्तर में अप्सरा घृताची से एक पुत्र को जन्म दिया। शौनक के पिता रुरु की पत्नी प्रमद्वरा अप्सरा मेनका की पुत्री थी जिसको उसने त्याग दिया था। ये अप्सराएँ और गन्धर्व से देव कार्य में संलग्न रहते थे। गन्धर्व नाच-गाना करने वाले होते थे, अप्सरायें भी नाचगाना करने वाली ही होती थी। ये शक्तिशाली ऋषि, राजा या गन्धर्व को स्वेच्छा से चुनकर सम्भोग करती थी। सन्तान नहीं पालती थी, गर्भवती होने के बाद प्रसव करके सन्तान को कहीं न कहीं छोड़ जाती थीं। गन्धर्व विश्वावसुने मेनका से कभी सम्भोग किया जिसमे मेनका गर्भवती हो गई। मेनका ने गन्धर्व द्वारा स्थापित किये हुए उस गर्भको समय पूरा होनेपर स्थूलकेश मुनिके आश्रमके निकट जन्म दिया और उस नवजात गर्भको वहीं छोड़कर चली गयी। महर्षि स्थूलकेशने एकान्त स्थानमें त्यागी हुई उस बन्धुहीन कन्याको देखा, जो देवताओंकी बालिकाके समान दिव्य शोभासे प्रकाशित हो रही थी। उस समय उस कन्याको वैसी दशामें देखकर द्विजश्रेष्ठ मुनिवर स्थूलकेशके मनमें बड़ी दया आयी; अतः वे उसे उठा लाये और उसका पालन-पोषण करने लगे। वह सुन्दरी कन्या उनके शुभ आश्रमपर दिनोदिन बढ़ने लगी। महर्षि ने उसका नाम ‘प्रमद्वरा’ रख दिया। एक दिन धर्मात्मा रुरुने महर्षि के आश्रममें उस प्रमद्वराको देखा। उसे देखते ही उनका हृदय तत्काल कामदेवके वशीभूत हो गया। तदनन्तर प्रमतिने यशस्वी स्थूलकेश मुनिसे (अपने पुत्रके लिये) उनकी वह कन्या माँगी । तब पिताने अपनी कन्या प्रमद्वराका रुरुके लिये वाग्दान कर दिया और विवाहका मुहूर्त निश्चित किया। जब विवाहका मुहूर्त निकट आ गया, उसी समय वह सुन्दरी कन्या सखियोंके साथ क्रीड़ा करती हुई वनमें घूमने लगी। मार्गमें एक साँप चौड़ी जगह घेरकर तिरछा सो रहा था। प्रमद्वराने उसे नहीं देखा। वह कालसे प्रेरित होकर सर्पको पैरसे कुचलती हुई आगे निकल गयी। पीड़ित हुए क्रोधी सर्प ने पलट कर उसे काट लिया जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु देख रुरु और बड़े बड़े ब्राह्मण उसको वहां घेर कर खड़े हो गये विलाप करने लगे।
ब्राह्मण रुरु पत्नी की मृत्यु से अत्यन्त दुःखित हो गहन वनमें जाकर जोर-जोरसे रुदन करने लगा। शोकसे पीड़ित होकर उसने बहुत करुणाजनक विलाप किया और अपनी प्रियतमा प्रमद्वराका स्मरण करके शोकमग्न हो इस प्रकार बोला—‘हाय! वह कृशांगी बाला मेरा तथा समस्त बान्धवोंका शोक बढ़ाती हुई भूमिपर सो रही है; इससे बढ़कर दुःख और क्या हो सकता है? यदि मैंने दान दिया हो, तपस्या की हो अथवा गुरुजनोंकी भलीभाँति आराधना की हो तो उसके पुण्यसे मेरी प्रिया जीवित हो जाय .यदि मैंने जन्मसे लेकर अबतक मन और इन्द्रियोंपर संयम रखा हो और ब्रह्मचर्य आदि व्रतोंका दृढ़तापूर्वक पालन किया हो तो यह मेरी प्रिया प्रमद्वरा अभी जी उठे। रुरु पत्नीके लिये दुःखित हो अत्यन्त विलाप कर रहा था, उस समय एक देवदूत उसके पास आया और वनमें रुरुसे बोला -धर्मात्मा रुरु! तुम दुःखसे व्याकुल हो अपनी वाणीद्वारा जो कुछ कहते हो, वह सब व्यर्थ है; क्योंकि जिस मनुष्यकी आयु समाप्त हो गयी है, उसे फिर आयु नहीं मिल सकती। यह बेचारी प्रमद्वरा गन्धर्व और अप्सराकी पुत्री थी। इसे जितनी आयु मिली थी, वह पूरी हो चुकी है। अतः तात! तुम किसी तरह भी मनको शोकमें न डालो । इस विषयमें महात्मा देवताओंने एक उपाय निश्चित किया है। यदि तुम उसे करना चाहो तो इस लोकमें प्रमद्वराको पा सकोगे। रुरु बोला—आकाशचारी देवदूत! देवताओंने कौन-सा उपाय निश्चित किया है, उसे ठीक-ठीक बताओ? उसे सुनकर मैं अवश्य वैसा ही करूँगा। तुम मुझे इस दुःखसे बचाओ। देवदूतने कहा—भृगुनन्दन रुरु! तुम उस कन्याके लिये अपनी आधी आयु दे दो। ऐसा करनेसे तुम्हारी भार्या प्रमद्वरा जी उठेगी।
रुरु ने यही किया और उसकी पत्नी जीवित हो गई। इस रुरु ने ‘प्रमद्वरा’ से जो पुत्र पैदा किया वह शौनक ऋषि थे।

