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रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास में ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। पिता क्षुदीराम  ने पुत्र का जन्म लग्न देखा, पुत्र शुभ मुहूर्त में संसार में आया। बंगला फाल्गुन ६, सन १२४२, शकाब्द १७५७, दिनांक १७ फरवरी १८३६ ई. शुक्ल पक्ष, बुधवार रात ३१ घड़ी के उपरांत अर्धघटिका मात्र शेष समय में जन्म हुआ था। नक्षत्रानुसार उनका नाम गदाधर रखा गया। क्षुदीराम गया यात्रा पर थे, वहां उन्होंने श्राद्ध आदि किया था। गया में उन्हें भगवान विष्णु का स्वप्न आया था इसलिए यह राशि नाम रखा गया। जन्म के समय माता के उदर में पीड़ा हुई तो धनी इन्हें घर में बने धान कूटने की ढेकली के पास ले गई, लेटते ही  प्रसव हुआ। लेकिन एक अजीब घटना घटित हुई, जन्म के कुछ ही समय बाद बिस्तर से नवजात शिशु आश्चर्यजनक रूप से कहीं गायब हो गया। उस समय माता चन्द्रादेवी की सहायता कर रही धनी नाम की पड़ोसी महिला ने जब दीया लेकर इधर उधर ढूंढा, तो बच्चा धान पकाने के चूल्हे में राख से लिपटा हुआ मिला।
इस परिघटना का उनके आध्यात्मिक जीवन से गहरा सम्बन्ध था। उनकी भोजन और किचन में गहरी आसक्ति थी।
प्रवचन के बीच बीच में अक्सर वे किचन में चले जाते थे, या कहने लगते थे कि “कुछ खाने को है”। यह देख एक बार उन्हें जब शारदा देवी ने टोका और कहा कि जाइये शिष्यों को उपदेश कीजिये यहाँ किचन में क्या आते रहते हैं! तब उन्होंने कहा था “यही एक दो आसक्ति शेष बचा रखी है। जिस दिन यह असक्ति छोड़ दूंगा उसी दिन यह देह नहीं रहेगी।” यह उनके जीवन में घटित भी हुआ था।
ज्योतिष में जातक के जन्म स्थान से भी अनेक बातें बताई जाती हैं। बच्चे के जन्म काल में पिता घर पर है या नहीं? ज्योतिष ग्रन्थों में यह कहा गया है कि यदि लग्न पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक का जन्म घर में, अग्निशाला में, यज्ञ स्थल में होता है। रामकृष्ण की जन्म कुंडली में गुरु की लग्न पर पूर्ण दृष्टि है साथ में लग्न में चन्द्रमा, सूर्य और बुध स्थित है जो स्पष्ट करते हैं कि जन्म के समय बालक के पिता घर पर उपस्थित थे। यदि चन्द्रमा की लग्न पर दृष्टि न हो या लग्न में न हो, या लग्न गुरु दृष्ट न हो तो जातक के जन्म के समय पिता घर से बाहर होता है। वैदिक ज्योतिष ग्रन्थों में सम्वत्सर फल के अंतर्गत फाल्गुन महीने में जन्मे जातक के बारे में कहा गया है “शुक्ल: परोपकारी च धन विद्यासुखान्वित:” फाल्गुन महीने में जन्म लेने वाला परोपकारी, धन. विद्या और सुख से युक्त होता है। परोपकार रामकृष्ण की अध्यात्मिक शिक्षा का प्रमुख तत्व है जिसकी परिणति हम रामकृष्ण मिशन के रूप में देख सकते हैं।
रामकृष्ण परमहंस के जन्म के समय से पूर्व से ही अनेक संकेत माता पिता को मिलने लगे थे। उनके जन्म के बाद क्षुदीराम के घर परिस्थियाँ रामकृष्ण उनके अनुकूल होने लगीं, आवश्यकता की चीजें उन्हें यूँ ही प्राप्त होने लगी थी। पुत्र जन्म की खबर सुन क्षुदीराम के भानजे ने निर्धन मामा के पास एक दुधारू गाय भेज दी थी ताकि बालक को यथेष्ठ दुग्घ प्राप्त हो सके। गदाधर का रूप चित्ताकर्षक था और महापुरुष होने के कारण क्षुदीराम के घर का माहौल अलौकिक आभा से भर गया था जिससे गाँव के लोग खींचे चले आते थे। गाँव की महिलाओं के लिए यह बालक विशेष आकर्षण का केंद्र था। पडोस की महिलाएं प्रतिदिन बालक को देखे बिना नहीं रह पाती थीं। गदाधर के अन्नप्राशन के अवसर पर गरीब क्षुदीराम कुछ भी विशेष आयोजन करने में अक्षम थे लेकिन गाँव के एक जमींदार धर्मदास ने प्रसन्नता पूर्व बड़ा आयोजन किया और सम्पूर्ण गाँव के लोगों को भोजन कराया गया। अनेक साधु और भिक्षुकों ने पुत्र के दीर्घजीवन की मंगलकामना की थी। रामकृष्ण के जन्म के बाद अनेक अलौकिक घटनाएँ घटी थी। जब भी किसी महापुरुष का जन्म होता है तो उस समय जगत में उपस्थित योगी, सिद्ध, साधु और मनस्वी स्वयं उस जगह पर खींचे चले आते है। रामकृष्ण के गाँव और बाद में दक्षिणेश्वर में ऐसी विभूतियाँ खिंची चली आई थीं। महापुरुषों और अवतार के जन्म के रहस्य सबको आसानी से पता नहीं चलता, लेकिन क्रमश: उनके जीवन को समग्रता में देखने पर इसका ज्ञान अवश्य हो जाता है। भगवद्गीता में कहा गया है –
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4.9।
मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्म को)  जो मनुष्य तत्त्वत: जान लेता लेता है, वह शरीर का त्याग करके पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत मुझे ही प्राप्त होता है। 
रामकृष्ण के जन्म की कथा को यदि सत्य माना जाए तो उनका भी जन्म दिव्य कहा जा सकता है। रामकृष्ण का जन्म क्षुदीराम के वीर्य से नहीं हुआ था, वे चन्द्रादेवी के गर्भ में ज्योति के रूप में प्रविष्ट हुए थे। उसी प्रकार इनकी धर्म पत्नी माता सारदा देवी का जन्म भी कुछ ऐसा ही था। उन्होंने अपने जन्म के बारे में कहा था -“मेरा जन्म भी तो उनकी तरह ही हुआ था। मेरी मां शिहड़ में देवदर्शन करने गई थीं। लौटते समय अचानक शौच की इच्छा से मन्दिर के निकट ही एक वृक्ष के नीचे बैठ गईं। शौच तो हुआ नहीं लेकिन उन्हें प्रतीत हुआ उनके उदर में वायु प्रविष्ट हो जाने से उदर भारी हो गया है। मां अभी बैठी ही हुईं थी कि उन्होंने देखा -“लाल रंग की रेशमी वस्त्र पहने  पांच छह वर्ष की एक अत्यंत सुंदर बालिका पेड़ से उतर कर उनके समीप आई  और पीठ की और से अपनी कोमल बाहें उनके गले में डाल कर बोली, ‘मैं तुम्हारे घर आऊँगी मां !” तब अचेत होकर मां गिर पड़ी थीं! लोग उन्हें घर ले आये। उस बालिका ने ही मां के उदर में प्रवेश किया था और उसी से मेरा जन्म हुआ था’। उनके पिता रामचन्द्र मुखोपाध्याय को भी मां का बालिका रूप में दर्शन हुआ था। भोजनोपरांत वे जब विश्राम कर रहे थे तब स्वप्न में उन्होंने देखा- “वही बालिका लाल रेशमी वस्त्र पहने उनके गले से लिपट कर बोली “बाबा ! मैं तुम्हारे घर आ रही हूँ।” शिष्यों को उन्होंने बतलाया था कि कोई बालिका ग्यारह वर्ष की उम्र तक उनके साथ साथ रहती थी, उनके कामों में हाथ बटाती थी। अन्य किसी के दिखने पर वह अदृश्य हो जाती थी। वह परमाशक्ति अपने गुणों से माया द्वारा इस लोक में स्त्री-पुरुष रूप धारण कर सकती है, इसमें श्रुतियों को कोई संदेह नहीं है। देवी भागवत कहती है – “यं पुंस परमस्य देहिन इह स्वीर्येर्गणैर्मायया, देहाख्यापि  चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्ति: परा ।” रामकृष्ण देव का जन्म पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में हुआ था। नक्षत्र स्वामी पंचम भाव में मीन राशि में स्थित हैं। ज्योतिषियों ने गदाधर नाम रखा और कहा था कि बालक धर्मवेत्ता, सम्माननीय और सदा पुण्य कर्म का अनुष्ठान करने वाला होगा। ज्योतिष के अनुसार पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे बालक तपस्वी होते हैं। जन्म के समय से उनकी गुरु महादशा कमोवेश पूरी हो चली थी। उनकी जन्म कुंडली का अवलोकन करने से हम देखते हैं कि गुरु बृहस्पति इनके कुंडली में आर्द्रा नक्षत्र में द्वितीयेश और एकादशेश होकर पंचम भाव में स्थित है। गुरु की इस स्थिति से रामकृष्ण को दो महत्वपूर्ण फल  मिले, पहला- गुरु उनके पूर्व पुण्य के कारण ही यहाँ स्थित होकर लग्न, लग्न स्थित चन्द्रमा और धर्मभाव में स्थित लग्नेश पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है। यह पूजा-मन्त्र सिद्धि इत्यादि का भाव है। रामकृष्ण को यह प्राप्त हुआ। नक्षत्र स्वामी राहु चतुर्थ भाव में उच्च का होकर स्थित है। राहु की चतुर्थ स्थिति के अनुसार रामकृष्ण परमहंस की सम्पूर्ण गुरु दशा उनके गाँव में ही व्यतीत हुई थी। गुरु महादशा में ही लगभग 7 वर्ष की अवस्था में उनको प्रथम भाव समाधि हुई।

दूसरा फल ये रहा कि वाणी का स्वामी पंचम भाव में स्थित होकर उन्हें मधुर स्वर का अच्छा गायक बनाता है, साथ में मिथुन राशि में स्थित होकर श्रेष्ठ अभिनय करने वाला कलाकार बनाता है। बचपन में ही रामकृष्ण ने शिव की भूमिका निभा कर गाँव वालो को मोहित कर लिया था। यह अभिनय कला पूरी जिन्दगी चलती रही थी। सखी भाव की साधना में शीघ्रता से उन्होंने सखी भाव को आत्मसात कर लिया था और पूर्णता प्राप्त कर सिद्ध हो सके। गुरु की पूर्ण दृष्टि अपने ही घर एकादश भाव पर होने से उनकी पूजा-पाठ, साधना से सम्बन्धित सभी इच्छाएं कमोवेश पूर्ण हुई थीं।