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जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–), जन्म का नाम गिरिधर मिश्र है. इनका जन्म जौनपुर में हुआ लेकिन बाबा होकर चित्रकूट में रहने लगे. ये एक प्रसिद्ध रामायणी कथावाचक हैं और रामानंदी सम्प्रदाय के बाबा हैं. रामानन्द सम्प्रदाय के चार मठों में से एक मठ के रामानन्दाचार्य हैं और इस पद पर १९८८ ई से प्रतिष्ठित हैं. वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं. वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं. रामभद्राचार्य दो मास की आयु में मार्च २४, १९५० में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे. वे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं.

गिरिधर मिश्र को अयोध्या के पण्डित ईश्वरदास महाराज ने उन्हें गायत्री मन्त्र के साथ-साथ राममन्त्र की दीक्षा भी दी. भगवद्गीता और रामचरितमानस का अभ्यास अल्पायु में ही कर लेने के बाद गिरिधर अपने गाँव के समीप अधिक मास में होने वाले रामकथा कार्यक्रमों में जाने लगे. ७ जुलाई १९६७ के दिन जौनपुर स्थित आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय से गिरिधर मिश्र ने अपनी औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ की, जहाँ उन्होंने संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ हिन्दी, आंग्लभाषा, गणित, भूगोल और इतिहास का अध्ययन किया.  गिरिधर मिश्र वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत व्याकरण में शास्त्री (स्नातक उपाधि) १९७४ में प्राप्त की.  तत्पश्चात् वे आचार्य (परास्नातक उपाधि) के अध्ययन के लिए इसी विश्वविद्यालय में पंजीकृत हुए. परास्नातक अध्ययन के दौरान १९७४ में अखिल भारतीय संस्कृत अधिवेशन में भाग लेने गिरिधर मिश्र नयी दिल्ली आए. अधिवेशन में व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदान्त और अन्त्याक्षरी में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते. भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्रिणी श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने उन्हें पाँचों स्वर्णपदकों के साथ उत्तर प्रदेश के लिए चलवैजयन्ती पुरस्कार प्रदान किया. १९७६ में सात स्वर्णपदकों और कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की. अक्टूबर १४, १९८१ को संस्कृत व्याकरण में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से विद्यावारिधि (पी एच डी) की उपाधि अर्जित की. विद्यावारिधि उपाधि प्रदान करने के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष के पद पर भी नियुक्त किया. १९९७ में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ने उन्हें उनके शोधकार्य अष्टाध्याय्याः प्रतिसूत्रं शाब्दबोधसमीक्षणम् पर वाचस्पति (डी लिट्) की उपाधि प्रदान की। इस शोधकार्य में गिरिधर मिश्र नें अष्टाध्यायी के प्रत्येक सूत्र पर संस्कृत के श्लोकों में टीका रची है. १९७६ में गिरिधर मिश्र ने करपात्री महाराज को रामचरितमानस पर कथा सुनाई। स्वामी करपात्री ने उन्हें विवाह न करने, वीरव्रत धारण करके आजीवन ब्रह्मचारी रहने और किसी वैष्णव सम्प्रदाय में दीक्षा लेने का उपदेश दिया. गिरिधर मिश्र ने नवम्बर १९, १९८३ के कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानन्द सम्प्रदाय में श्री श्री १००८ श्री रामचरणदास महाराज फलाहारी से विरक्त दीक्षा ली और  गिरिधर मिश्र ने  रामभद्रदास नाम प्राप्त किया.

गिरिधर मिश्र ने गोस्वामी तुलसीदास विरचित दोहावली के पाँचवे दोहे के अनुसार १९७९ ई में चित्रकूट में छः महीनों तक मात्र दुग्ध और फलों का आहार लेते हुए अपना प्रथम षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया. १९८३ ई में उन्होंने चित्रकूट की स्फटिक शिला के निकट अपना द्वितीय षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया. यह पयोव्रत स्वामी रामभद्राचार्य के जीवन का एक नियमित व्रत बन गया है. १९८७ में उन्होंने चित्रकूट में एक धार्मिक और समाजसेवा संस्थान तुलसी पीठ की स्थापना की और जून २४, १९८८ ई के दिन काशी विद्वत् परिषद् वाराणसी ने रामभद्रदास का तुलसीपीठस्थ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में चयन किया. १ अगस्त १९९५ को अयोध्या में दिगंबर अखाड़े ने रामभद्रदास का जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में विधिवत अभिषेक किया. रामभद्राचार्य ने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें से कुछ प्रकाशित और कुछ अप्रकाशित हैं.

रामभद्राचार्य एक अद्भुत नौटंकीबाज भी हैं, रामायण की कथा को मनोरंजन की तरह करते हैं और पुरे कथा के समय रोने का विचित्र अभिनय करते हैं. यह उनके पंचमेश और नीच चन्द्र से देख सकते हैं. चन्द्रमा लाभेश तीसरे भाव मीडिया में नीच का होकर स्थित है. नीच का चन्द्रमा वर्गोत्तम है और नवांश में पंचम भाव में पंचमेश शनि के साथ स्थित है. शत्रु राशि में द्वादश शनि षष्टेश भी है इसलिए इसमें शुभत्व बहुत नहीं है. जब अशुभ ग्रह योगकारी हो तो व्यक्ति धूर्त ही बनता है जिसे भद्राचार्य प्रदर्शित कर रहे हैं. लग्न स्वामी बुध वक्री होकर पंचम में है और नवांश में नवम भाव में नीच का हो गया है. चतुर्थेश और सप्तमेश बृहस्पति भी नीच राशिगत है. यह स्थितियां उन्हें आध्यात्मिक नहीं बनातीं. नवांश वर्गोत्तम तृतीय भाव स्थित लाभेश चन्द्रमा का ही उदित होने से उनके ग्रहों का कम्बीनेशन मनोरंजन द्वारा प्रसिद्धि और धन प्रदान करने वालें हैं, न कि कोई विशेष आध्यात्मिक उपलब्धि देने वालें हैं. शनि आत्मकारक है और आरूढ़ लग्न से योगकारक है. आत्मकारक से वर्गोत्तम नीच चन्द्र नवमेश है और शनि से युक्त होकर राजयोगकारक है. लेकिन नीच के ग्रह जोकर होते हैं क्योंकि उनमें उदात्त जीवन प्रदान करने की क्षमता नहीं होती. रामभद्राचार्य का शनि महादशा में जन्म हुआ, शनि-राहु-सूर्य दशा में नेत्र ज्योति चली गई. द्वादशेश और पंचमेश का राशि परिवर्तन योग है फलस्वरूप दोनों एकदूसरे का पूर्ण फल करने में सक्षम हैं. शनि की दृष्टि द्वितीयभाव पर भी है और नवांश में शनी की दृष्टि सूर्य और शुक्र दोनों पर है. नवांश में राहु षष्टम में स्थित है और राशि-नवांश में अष्टमेश मंगल से दृष्ट है. यह कारण है नेत्र का बाधित हो जाना.

वर्तमान में रामभद्राचार्य भाजपा पार्टी के हिंदुत्व के प्रवक्ता हैं और अनेक हिंदुत्व घृणा-विद्वेशियों के पोषक हैं. यह भाजपा का राजनीतिक प्रचार अपनी तथाकथित व्यास पीठ से करते हैं. हालिया में इनका एक वीडियों वायरल हुआ जिसमे किसी लड़की को भगवा गमछा ओढ़ाकर गुप्त गोपन करते हुए दिखे. पिछले दिनों मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार करने के कारण चर्चा में हैं . कमलनाथ को अधर्मी बता डाला.