
रजनीश अका ओशो ( चंद्र मोहन जैन, 11 दिसम्बर 1931 – 19 जनवरी 1990). चंद्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था. उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन तेैरापंथी दिगंबर जैन थे. इनके बचपन के 7 वर्ष ननिहाल में बीते तदुपरांत माता-पिता के साथ रहे और उनके साथ ही अपनी शिक्षा पूरी की. किशोरवस्था में ही रजनीश नास्तिक बन चुके थे. अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 1957 में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर रजनीश रायपुर विश्वविद्यालय में नियुक्त हो गये. अपनी गैर परंपरागत धारणाओं, जीवनयापन और पढ़ाने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका स्थानांतरण कर दिया. रजनीश दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में जबलपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे और यहीं से अपने प्रवचन भी देना प्रारम्भ कर दिया था. इस दौर में ही वे आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे.
अपने संपूर्ण जीवनकाल में रजनीश विवादास्पद रहे. अपनी वक्तृता से 1970 के दशक तक खुद को रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्थापित कर लिया था. रजनीश ब्राह्मणों और पंडितों के घोर विरोधी और रूढ़िवादिता के कठोर आलोचक थे . इन्होंने राजयोगकारी राहु की महादशा से अपनी प्रवचन यात्रा शुरू की थी और घूम घूम कर जगह जगह आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन दिए. रजनीश ने प्रवचनों में पारम्परिक धर्म की लगातार आलोचना की और कठोर प्रहार किये, जिसके कारण वह बहुत ही जल्दी भारत में प्रसिद्ध और विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे. इनकी राहु की महादशा १९६० से शुरू हुई और इसी समय में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रायें की और समाजवाद, व गांधी के विचारो ,और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद की आलोचनाएँ की. उन्होंने सेक्स के प्रति एक ज्यादा खुला रवैया अपनाने की वकालत की और बाद में तंत्र से प्रभावित होकर सेक्स को ही समाधि और निर्वाण का माध्यम बताया. इस विषय पर उनका प्रवचन ही ‘सम्भोग से समाधि की तरफ” शीर्षक से किताब के रूप में प्रकाशित हुआ. ‘सम्भोग से समाधि’ का तांत्रिक विचार रजनीश का कोई मौलिक विचार नहीं था, यह हिन्दू और बौध तंत्रों में भरा पड़ा है. रजनीश सेक्स गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए और जहाँ तक मुझे याद है इसी दौर में हिंदी माया मैगजीन ने कवर स्टोरी “मां आनंदशीला की लीला” पब्लिश की थी. आनंदशीला एक आर्मी अफसर की बेटी थी जो रजनीश की शिष्या बनी और उसके साथ रजनीश का सेक्सुअल रिलेशन रहा. आनंद शीला उनकी सबसे करीबी बन गई और कमोवेश आश्रम का सब कुछ उसके नियन्त्रण में था. उनकी अनेक शिष्याएं थी जिनके साथ उनके उन्मुक्त सेक्स सम्बन्ध रहे. आनंद शीला के बाद एक विदेशी महिला मां योग विवेक भी बहुत करीब रही. रजनीश को विदेशियों ने खूब धन दिया और उन्होंने खूब भोग और सेक्स का लुत्फ़ उठाया.
यदि देखें तो रजनीश का अपना स्वयं का कोई दर्शन और चिन्तन नहीं था. उन्होंने अपने ढंग से आधुनिक दर्शनों, मनोविज्ञान इत्यादि का रंग देते हुए संत कवियों, रहस्यवादियों, धर्म के संस्थापकों के उपदेशों की रोचक व्याख्याएं प्रस्तुत की. उनका पूर्व और पश्चिम के धर्म-दर्शन का अध्ययन बहुत वृहद था, यदि वे किसी आध्यात्मिक विषय पर आख्यान देते थे तो उसे दुनिया भर के रहस्यवादियों की कहानियों और उक्तियों से जोड़ कर उसे बड़ा रुचिकर बना देते थे. भक्ति मार्ग के संतों पर दिए गये आख्यानों में उन्होंने कविताओं, शेरो-शायरी इत्यादि का खूब प्रयोग किया और उसे कवित्वपूर्ण बनाकर श्रोताओं को प्रभावित किया. उनकी सबसे बड़ी खासियत यही थी.
रजनीश मूलभूत रूप से एक उपभोक्तावादी थे और पश्चिम का उनपर गहरा प्रभाव था. उन्होंने उस समय सबसे महंगी 93 रोल्सराईस खरीदी और जिस रंग का चोंगा-टोपी पहन कर बाहर आते उसी रंग की रोल्सराईस सामने खड़ी होती थी. रजनीश ने राहु महादशा में ही 1974 में पुणे में अपने आश्रम ‘ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट” की स्थापना की लेकिन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद 1980 में ओशो ने भारत छोड़ दिया और “अमेरिका” के ओरेगॉन, संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की. रजनीश को इस आश्रम की गतिविधियों के कारण बड़े विरोध का सामना करना पड़ा. रजनीशपुरम में मां आनंद शीला ने अन्य करीबी शिष्यों के साथ मिलकर पूर्ण वर्चस्व स्थापित कर लिया था. 1985 में इस आश्रम में सामुहिक फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद आश्रम पर छापा पड़ा और आश्रम से खतरनाक रसायन और ड्रग बरामद किये गये. अमेरिकी सरकार ने इसे सम्भावित केमिकल टेरर अटैक बताया. इस केमिकल(Salmonella ) के कारण तकरीबन 800 लोग बुरी तरह बीमार पड़े. आनंद शीला और कुछ अन्य शिष्य इस घटना के बाद अमेरिका से यूरोप भाग गये. रजनीश ने आनंद शीला को फासिस्ट क्रिमनल बताया और जाँचपड़ताल के लिए कहा. आश्रम में रजनीश के शिष्यों ने Rajneeshism: An Introduction to Bhagwan Shree Rajneesh and His Religion किताब की 5000 कापियां जलायी. रजनीश ने कहा यह आनंद शीला के रजनीशवाद और उपदेशों पर प्रभाव को खत्म करने के लिए किया गया था. उन्हें घोर विरोध का सामना करना पड़ा और उनकी जान पर खतरा मंडराने लगा. इस घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका से निर्वासित कर दिया गया.
रजनीश की जन्म कुंडली –

वृष लग्न की इस कुंडली में शनि योगकारक नवमेश और दशमेश है जो अष्टम भाव में स्थित है. अष्टम भाव गूढ़ रिसर्च, गुप्त गतिविधियाँ, मर्डर, सेक्स, विदेश यात्रा, तिस्कार, अपमान, बंधन, नाश इत्यादि से सम्बन्धित है. रजनीश की दशम भाव स्थित राहु की महादशा 1961 में शुरू हुई जिसमें उन्होंने घूम घूम कर देश भर में आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन किये और जल्दी ही प्रसिद्ध हो गये. राहु अपनी मूलत्रिकोण राशि में पुश्करांश में, शक्तिशाली है, राशि स्वामी शनि भी पुश्करांश में है लेकिन यह राहु गुरु-चांडाल है और बड़ा गुप्त पापी है. राहु का जैसा चरित्र बताया गया है तदनुसार राहु ने अपारम्परिक, क्रांतिकारी, परे की सोच, गुप्त रहस्यों की बातें, म्लेच्छ की संगति इत्यादि को प्रकट किया. रजनीश के ज्यादातर फॉलोवर म्लेच्छ ही थे. दशम भाव स्थित राहु 3rd हॉउस में स्थित उच्च के पाप-मारक ग्रह बृहस्पति से दृष्ट है अत: नाश भाव का फल ही किया. यहाँ बृहस्पति एकादशेश और अष्टमेश होने से मारक और पापी दोनों ही है और बहुत शक्तिशाली होकर मीडिया कम्युनिकेशन के हॉउस में स्थित है. नवांश कुंडली में बृहस्पति केतु के साथ अष्टम भाव में स्थित है और नवमेश वर्गोतम है.
लग्न लार्ड शुक्र अष्टम में चन्द्रमा से युत है और दो पाप ग्रहों एकादशेश और तृतीयेश का राशिपरिवर्तन योग है. इस तरह देखें तो कुडली पूर्णत: पाप प्रभाव में है और स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह एक विनाशक धूर्त व्यक्ति की कुंडली है. शनि योगकारक है लेकिन उसकी नाश भाव अष्टम में स्थिति नवम धर्म भाव का नाशक है. शनि-बृहस्पति-लग्नलार्ड-चन्द्र के कारण रजनीश अनैतिक, गुप्त कर्मा, धूर्त, पापी, भोगी, बुद्धि नाशकर्ता, यह सब बने. अष्टम में लग्नलार्ड के साथ अधिकतर ग्रहों की स्थिति लग्न के लिए अशुभ है. रजनीश में वस्तुत: धर्म भाव था ही नहीं, वह मूलभूत रूप से एक नास्तिक, उपयोगितावादी और भोगी थे. उन्होंने धर्म और आध्यात्म का अपनी वक्तृता से सिर्फ ख्याति और धन अर्जित करने के लिए उपयोग किया.
अश्लेषा का बृहस्पति पाप-मारक है तो बृहस्पति की महादशा और अष्टम स्थित नवमेश की अंतरदशा में रजनीश अमेरिका गये. 1984 में बुध की अन्तर्दशा में उनकी गुप्त गतिविधयां उजागर हुईं और आश्रम से ड्रग, केमिकल बरामद हुए. अश्लेषा एक सर्प नक्षत्र है और जहरीली वस्तुओं से जुड़ा हुआ है. इनकी कुंडली में बृहस्पति बिपत तारा है और बुध प्रत्यक या प्रत्यरि तारा है इसलिए घोर बिपत में पड़ना ही था. अष्टम में स्थित बुध द्वितीयेश और पंचमेश है इसलिए रजनीश स्वयं ड्रग लेते थे और ड्रग तथा सेक्स का आश्रम में शिष्य उन्मुक्त प्रयोग करते थे. उनका आश्रम एक आधुनिक पब जैसा था जहाँ म्लेच्छ पैसा देकर शिष्यत्व स्वीकार कर लेते थे और उन्मुक्त ड्रग, सेक्स, मनोरंजन, मौज-मस्ती करते थे. प्रबल मारक बनकर सूर्य सप्तम में बुध के नक्षत्र में ही है. रजनीश के लग्न लार्ड और चन्द्र दोनों की अष्टम स्थिति ने उनके भीतर एक अज्ञात भय को जन्म दिया जिसके कारण उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि 1990 में विश्व युद्ध होगा और वे नूह का जहाज बना रहें हैं जिसमे चुने हुए लोग सवार होंगे और वे विनाश से बच जायेंगे. रजनीश को बृहस्पति-बुध-बृहस्पति दशा में सितंबर १९85 में पलायन करते हुए प्राइवेट जेट से गिरफ्तार कर लिया गया. 8 नवम्बर को $500,000 सेक्योरिटी लेकर बेल पर रिहा कर दिया गया.
रजनीश 17 नवम्बर 1985 को वे भारत वापस लौट आये. उन्होंने शिष्यों के सामने अमेरिका के खात्मे की भविष्यवाणी भी की और कहा कि ‘अमेरिका एक दानव है’. वापस लौटने के बाद इण्डिया में रजनीश ने मनाली मे 6 महीने बिताये लेकिन बृहस्पति ने चैन से रहने नहीं दिया. उन्हें फिर भागना पड़ा, काठमांडू, ग्रीस, जेनेवा, लन्दन इत्यादि में 2 साल बीते. उन्हें ग्रीस में भी गिरफ्तार किया गया था. जनवरी 1987 में वे पुन: पुणे लौटे और रेगुलर प्रवचन देना शुरू किया. पुणे में ही 1989 में भगवान रजनीश नाम छोड़ कर ‘ओशो’ नाम रख लिया. रजनीश की 58 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी 1990 को मृत्यु हो गई, उस समय मारक बृहस्पति की महादशा और सप्तम स्थित चतुर्थेश मारक बने सूर्य की प्रत्यान्तर दशा थी. मृत्यु के समय शनि अष्टम में ट्रांजिट कर रहा था, बृहस्पति दूसरे मारक हॉउस में ट्रांजिट में था और सूर्य उनके षष्टमेश से युत था तथा अपने ही नक्षत्र में ट्रांजिट कर रहा था. उनकी मृत्यु हृदय गति रुकने से हुई यह दशा से बखूबी स्पष्ट है. उनके कम्यून द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि अमेरिकी जेलों में कथित जहर देने के बाद “शरीर में रहना नरक बन गया था” इसलिए उनकी मृत्यु हो गई. यह बुध की अन्तर्दशा में आवश्य दिया गया क्योंकि सूर्य मरण तो इसी से देने वाला था .