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आचार्य चतुरसेन का जन्म – (26 अगस्त, 1891 -2 फरवरी, 1960 ) का जन्म बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनका लम्बा जीवन चिकित्सा क्षेत्र में कार्य करते हुए बीता था. वे आयुर्वेदाचार्य थे. आयुर्वेद के वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए थे परन्तु उन्होंने इस्तीफा दे दिया. अपने ससुर के यहाँ अजमेर में उनकी डिस्पेंसरी में कार्य करते हुए उन्होंने अपना लेखन शुरू किया था.  चालीस वर्षों तक निरन्तर साहित्य-साधना करते रहे. फलतः गुण और मात्रा दोनों दृष्टियों से हिन्दी-साहित्य की समृद्धि में उनकी देन महत्त्वपूर्ण है. आचार्य चतुरसेन बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे. उन्होंने अपनी एक किताब में कीमियाँ (सोना बनाने की विधि) लिखी, स्वास्थ्य-चिकित्सा पर अनेकों किताबें लिखीं.  साढ़े चार सौ कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने बत्तीस उपन्यास तथा अनेक नाटक लिखे साथ ही गद्यकाव्य, इतिहास, धर्म, राजनीति, समाज, स्वास्थ-चिकित्सा आदि विभिन्न विषयों पर भी उन्होंने लेखनी चलाई। उनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है. उनका कथा-साहित्य हिन्दी के लिए गौरव है.

उपन्यासों में ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘सोमनाथ’, ‘वयं रक्षामः’ उनके बहुचर्चित उपन्यास हैं। प्रमुख कृतियों में  उपन्यास :- वयं रक्षामः, वैशाली की नगरवधु, सोमनाथ, सोना और खून : भाग-1, सोना और खून : भाग-2, सोना और खून : भाग-3, सोना और खून : भाग-4, खग्रास, पत्थर युग के दो बुत, बगुला के पंख, हृदय की प्यास, धर्मपुत्र, उदयास्त, अपराजिता हैं उन्होंने कई कहानी संकलन भी प्रकाशित किये. वैशाली की नगर वधू उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है, इसके बारे में  चतुरसेन शास्त्री ने स्वयं कहा ,” ‘मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूं और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूं.’”

आचार्य चतुरसेन ने पुत्रोत्पत्ति के लिए चार शादियाँ हुई थीं. उनकी एक पुत्री हुई थी.

सप्तम लार्ड पंचम हॉउस में पाप ग्रह के साथ युत है और अष्टम से लग्न लार्ड और द्वितीयेश द्वारा दृष्ट है. एकादशेश मंगल शुक्र की युत है और द्वादशेश पर तीनों ग्रहों की दृष्टि है. यह स्त्री में कमी, मृत्यु और कलहपूर्ण अलगाव को दर्शाता है. लग्नेश के अष्टम होने से चतुरसेन लंबे समय तक आर्थिक पारिवारिक परेशानियों से घिरे रहे.

उन्होंने लिखा है  ” जब भाग्य रुपयों से भरी थैलियां मेरे हाथों में पकड़ाना चाहता था—मैंने कलम पकड़ी। इस साहित्य-साधना में मैंने पाया कुछ भी नहीं, खोया बहुत कुछ है, कहना चाहिए, सब कुछ—धन, वैभव, आराम और शान्ति। इतना ही नहीं यौवन और सम्मान भी.”