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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में पंचक काल अशुभ माना जाता है. पंचांग के अनुसार आज यानी 20 नवंबर सुबह 10:07 से राजपंचक शुरू हो गया है. जिसका समापन 24 नवंबर दिन शुक्रवार शाम 4:01 पर होगा. इसी पंचक में तीसरे दिन अर्थात 23 नवम्बर को पड़ेगा भीष्म पंचक. भीष्म पंचक का समापन 27 नवंबर सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा को होगा. कार्तिक पूर्णिमा को कतकी भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार राज पंचक का बहुत अशुभ प्रभाव नहीं होता फिर भी कुछ निषेध है. राज पंचक को राज सुख प्रदान करने वाला माना जाता है. इस पंचक में चारपाई अथवा पलंग का निर्माण नहीं करवाना चाहिए. दक्षिण दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए. घर की छत नहीं डालनी चाहिए, मृत आत्मा को अग्नि देते समय पांच आटे के पुतले को भी जलाना चाहिए. ज्योतिष के अनुसार राज पंचक धन-संपत्ति से जुड़े सभी काम के लिए शुभ माना जाता है. भीष्म पंचक अत्यंत शुभ माना गया है, इस पंचक के पांच दिनों में व्रत करने का विधान है, इससे जीवन में सफलता मिलती है. भीष्म पंचक का प्रारम्भ चन्द्रमा के रेवती नक्षत्र में होने पर होता है.

जब कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भीष्म पितामह उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे तब पांडव और श्रीकृष्ण उनके पास गए और उनसे उपदेश देने का आग्रह किया था. पितामह ने पांच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म, दान धर्म आदि पर उपदेश दिया था जिसे पांडवों सहित कृष्ण ने भी सुना था. उनका उपदेश सुनकर वासुदेव श्रीकृष्ण बोले, ‘पितामह! आप धन्य हैं. आपने धर्मों के स्वरूप का यथार्थ वर्णन किया है. कार्तिक एकादशी को ही आपने जल के लिए याचना की और अर्जुन ने बाणों से आपके लिए गंगा को उपस्थित किया, जिससे आपकी पूर्ण तृप्ति हुई. इसलिए आज से शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक जो मनुष्य भीष्म पंचक व्रत स्थापित करेगा और आपको तर्पण और अर्घ्यदान करेगा वह जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेगा.

भीष्म पंचक में निम्नलिखित मन्त्र पढकर सव्य होकर भीष्म के लिए तर्पण करना चाहिए. यह सबके लिए कर्तव्य है, इससे पितरों और वसुओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है .

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।
भीष्मायैतद ददाम्यर्घ्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।

जो मनुष्य पुत्र की कामना से स्त्री सहित भीष्म पंचक व्रत का पालन करता है वह एक वर्ष के भीतर पुत्र की प्राप्ति करता है. यह महापुण्यशाली व्रत है और महापातकों का नाश करने वाला है. इस दौरान भीष्म जी को अर्घ्यदान अवश्य करना’ चाहिए.

अर्घ्य मन्त्र –
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च ।
अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।।
वसुनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च ।
अर्घ्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे।।

भीष्म पंचक के 5 दिन तक व्रतधारी को अन्न का त्याग करना आवश्यक है. सिर्फ फलाहार कर सकते हैं. यह व्रत अन्न सेवन करने वालों के लिए नहीं है. इस दौरान प्रतिदिन त्रिकाल विधिपूर्वक विष्णु का पूजन कर्तव्य है. पांचदिनों तक भगवान के समीप दीपक जलता रहना चाहिए. पूर्णिमा के दिन इस व्रत का उद्यापन विष्णु मन्त्र से हवन, ब्राह्मण भोजन और दान से किया जाता है. इस दिन पुत्र कामना से बछड़े सहित गौ का दान करें.