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भगवती षष्टी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं. जिन्हें संतान नहीं होती, उन्हें यह संतान प्रदान करती हैं. जो माताएं इनका व्रत करती हैं उनकी संतानों को दीर्घायु प्रदान करती हैं. बिहार में छठ का बड़ा उत्सव इसी तिथि में किया जाता है. षष्टी देवी की पूजा बच्चों की दाता और रक्षक के रूप में की जाती है. मान्यता है कि वे बच्चों को जन्म देती हैं और बच्चे के जन्म के दौरान सहायता करती हैं. माता षष्ठी भगवान कार्तिकेय की पहली पत्नी हैं, दक्षिण भारत के लोग देवी को देवसेना कह कर पुकारते हैं. इनकी पूजा से कभी वंश समाप्त नहीं होता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. शैव धर्म में यह शिव परिवार की ज्येष्ठ बहु हैं इसलिए इनकी पूजा अनिवार्य रूप से होती है. ये भगवान शिव और माता पार्वती  की बहू हैं तथा भगवान गणेश, अशोक सुंदरी, मनसा देवी, अय्यप्पा और देवी ज्योति की सबसे बड़ी भाभी हैं.

हिन्दू पंचांग में चन्द्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली छठवीं तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली छठवीं तिथि कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी स्कन्द कुमार है अर्थात कार्तिकेय हैं. षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार व मंगलवार के दिन होती है उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है. इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है. यह एक शुभ नन्दा तिथि मानी जाती है. स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक महत्वपूर्ण पर्व इस षष्ठी तिथि में ही मनाए जाते हैं. एकादशी की तरह षष्टी तिथि का व्रत पूजन बहुत सी महिलाएं मासिक भी करती हैं.

निम्नलिखित षष्टी पर्व प्रसिद्ध हैं जिसे भारत में अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है-

हल षष्ठी- भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है. इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है. इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत रखती हैं और पूजन करती हैं.

स्कंद षष्ठी – आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा धूमधाम से पूजा की जाती है. दक्षिणभारत में यह पर्व बड़े स्तर पर मनाया जाता है.

चंद्र षष्ठी – आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है. रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है. इस व्रत से चन्द्र दोष  की निवृत्ति होती है.

चम्पा षष्ठी- चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है की इस व्रत को करने से व्रती को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है, सुख की प्राप्ति होती है और भगवान शिव का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

सूर्य षष्ठी- सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. भगवान सूर्य की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन किया गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है. भगवान सूर्य को प्रात: अर्घ्य देने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं. सूर्य षष्टी को ही बिहार में छठ पर्व मनाया जाता है.

पूजा मुहूर्त -सूर्योदय का समय 21 सितंबर 2023 : सुबह 6 बजकर 8 मिनट पर. सूर्यास्त का समय 21 सितंबर 2023 : शाम में 6 बजकर 19 मिनट पर. भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि 20 सितम्बर 14:16 से प्रारम्भ होगी और 21 सितम्बर 14:14 मिनट पर खत्म हो जाएगी. सूर्य पूजन का प्रशस्त समय सुबह है 6:8 मिनट से पूर्ण सूर्योदय तक है.