
ज्योतिष पर विवेकानंद की बातों का जिक्र हमने पहले भी किया है। यहाँ कुछ और सन्दर्भ रखते हैं जिस पर आप चर्चा कर सकते हैं। रामकृष्ण मिशन के संस्थापक शिष्यों में प्रमुख सारदानन्द ने रामकृष्ण की जन्म कुंडली को विस्तार से छापा है और उनका ज्योतिष में विश्वास भी बहुत था ऐसा लगता है। यह बायोग्राफी में भी उधृत है कि रामकृष्ण परमहंस के पहले गुरु उनके बड़े भाई थे जिन्होंने उन्हें दीक्षित किया था और देवताओं का सम्पूर्ण शास्त्रीय पूजन सिखाया था। रामकृष्ण के बड़े भाई रामकुमार जो पिता तुल्य थे ज्योतिष में सिद्ध थे, इसका जिक्र न केवल बायोग्राफी लिखने वालों ने किया है बल्कि रामकृष्ण परमहंस ने भी किया है। लेकिन रामकृष्ण के ही सबसे प्रसिद्ध शिष्य स्वामी विवेकानन्द ज्योतिष को दक्षिण भारत के धूर्त ब्राह्मणों की विद्या बताया है। विवेकानंद यह मानते हैं कि ज्योतिष विद्या भारत की विद्या नहीं है, यह ग्रीस देश से भारत में आई।
“There was a very powerful dynasty in Southern India. They made it a rule to take the horoscope of all the prominent men living from time to time, calculated from the time of their birth. In this way they got a record of leading facts predicted, and compared them afterwards with events as they happened. This was done for a thousand years, until they found certain agreements; these were generalised and recorded and made into a huge book. The dynasty died out, but the family of astrologers lived and had the book in their possession. It seems possible that this is how astrology came into existence. Excessive attention to the minutiae of astrology is one of the superstitions which has hurt the Hindus very much.
I think the Greeks first took astrology to India and took from the Hindus the science of astronomy and carried it back with them from Europe. Because in India you will and old altars made according to a certain geometrical plan, and certain things had to be done when the stars were in certain positions, therefore I think the Greeks gave the Hindus astrology, and the Hindus gave them astronomy.”
(8.4.2 MAN THE MAKER OF HIS DESTINY)
जबकि सभी उपनिषदों में अपरा विद्याओं में वेद के षडंगों में ज्योतिष को भी एक प्रमुख अंग माना गया है। महाभारत, वाल्मीकि रामायण और ईसा पूर्व १२००-१७०० में लिखे गये लगध मुनि के ग्रन्थ में ज्योतिष का विशद वर्णन है। सभी पुराणों में ज्योतिष से सम्बन्धित अध्याय मिलते हैं, कुछेक नारद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, भागवत पुराण इत्यादि में तो ज्योतिष विषय पर विस्तृत चर्चा की गई है। भागवत पुराण में ज्योतिषचक्र, द्वादश आदित्यों और शुशुमार चक्र के वर्णन में भगवान का ज्योतिषचक्र में ध्यान मन्त्र भी बतलाया गया है- “ॐ ज्योतिर्लोकाय कालायनाय अनिमिषापतये महापुरुषाय अभिधीमहीति”। भारतवर्ष की विशेष ज्योतिषीय स्थिति का वर्णन अकारण तो नहीं किया गया होगा ? यह सभी श्रुति-स्मृति और पुराणों में वर्णित है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि सूर्य में भगवान विष्णु की वैष्णवी शक्ति का निवास है। यह त्रयी आदित्य में ही स्थित है। विष्णुपुराण को आदि शंकराचार्य ने अपने भाष्य में उधृत किया है इसलिए यह ग्रन्थ प्रामाणिक हो जाता है –
अवतार के परिप्रेक्ष्य से भी देखें तो अवतारवाद के प्रवर्तक वाल्मीकि रामायण, भागवत पुराण सहित अन्य सभी प्रमुख पुराण और रामचरित मानस में अवतारों के जन्म का विवरण में ज्योतिष का जिक्र अवश्य हुआ है। पाठकों के लिए हम यहाँ भक्तिशास्त्र का सबसे उदात्त ग्रन्थ भागवत पुराण से वामन अवतार में किये गये ज्योतिष वर्णन का उद्धरण दे रहे हैं –
श्रोणायां श्रवणद्वादश्यां मुहूर्तेऽभिजिति प्रभु:।
सर्वे नक्षत्रताराद्याश्चक्रुस्तज्जन्म दक्षिणम् ॥५॥ (भागवत स्कंध ८) भगवान वामन का जन्म शुक्ल पक्ष श्रवण द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में हुआ। जन्म के समय सभी ग्रह दक्षिणायन में संचरण कर रहे थे।
अथ सर्वगुणोपेत: काल: परमशोभन: ।
यर्ह्येवाजनजन्मक्षन शान्तर्क्षग्रहतारकम् ॥१॥( भागवत स्कंध १०)
जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो रोहिणी नक्षत्र का उदय हुआ, जो उनका जन्म नक्षत्र है। विष्णु पुराण और गर्ग संहिता में जन्म का पूरा विवरण प्राप्त होता है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रकृष्ण अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उस समय जब सभी ग्रह अपनी उच्च राशि में मौजूद थे। इस विषय की चर्चा में ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि श्रीमदभागवतम में विष्णुपुराण के ज्योतिष खंड को ही विस्तार दिया गया है और सभी लोकों का वर्णन इस ज्योतिषचक्र के अंतर्गत ही किया गया है। सनातन धर्म के जो भी प्रचारक हैं वो ईसाईयों को तुष्ट करने के लिए ऐसा नहीं कर सकते कि इन्हीं पुराणों से अपने मन की आध्यात्मिक बातें चुन ले और सिर्फ उसे ही सत्य कहें तथा शेष बातों को असत्य कहें? विष्णु पुराण के लेखक ऋषि पराशर हैं जो द्वापर में व्यास रह चुके हैं। उन्होंने विष्णुपुराण में लिखा है कि सप्तऋषियों के दक्षिण उत्तरायण का मार्ग है जहाँ ८८ हजार उर्ध्वरेता ऋषि रहते हैं। पराशर ऋषि बातें तो मिथ्या नहीं हो सकतीं? भरतमुनि का नाट्यशास्त्र का समय ईसापूर्व 500-200 माना जाता है, उन्होंने भी ज्योतिष का वर्णन नाट्यशाला और रंगमंच इत्यादि के निर्माण में किया है। कौन से नक्षत्र शुभ हैं इसका वर्णन किया है। लिखा है कि शुभ तिथि, मुहूर्त और करण में इसका निर्माण करना चाहिए। भरतमुनि को भारत में देवता तुल्य ही माना जाता है।
विवेकानंद को श्रुतियों का ज्ञान परम्परा से प्राप्त नहीं हुआ था इसलिए धर्म की बात छोड़िये, जिस वेदांत का दम्भ भरते थे उसमे भी वे बहुत भ्रमित हैं। हम कभी इस बावत भी चर्चा आवश्य करेंगे। लेकिन चलते चलते यह कहना जरूरी है कि जो व्यक्ति सन्यास धर्म का अनुसरण भी ठीक से नहीं कर सकता और एक विदेशी अंग्रेज के पुत्र को रेस्टोरेंट ले जाकर बीफ खिला सकता हैं, वह किसी का भला नहीं कर सकता। ऐसे लोग न केवल धर्म का नाश करते हैं बल्कि गुरु का भी नाश करते हैं। यह ESKCON का धूर्त वही बात कह रहा है जो विवेकानंद ने कहा था।
हमने इस प्रसंग पर अपनी छोटी किताब में चर्चा की है ..
इस विषय पर बहुत कुछ लिखना शेष है जो धीरे धीरे समय मिलने पर अवश्य लिखा जायेगा .