इस लेख में हिंदुत्व फासिज्म के नेता विनायक दामोदर सावरकर की बायोग्राफी न लिखकर सिर्फ उसके जीवन के कुछ कतिपय पहलुओं को उसकी जन्म कुंडली द्वारा देखने का प्रयास किया जायेगा. सावरकर को 28 साल की उम्र में जेल हुआ जब ये लग्नेश बृहस्पति की महादशा में था. लग्न लार्ड सप्तम हॉउस में राहु नक्षत्र में स्थित है. सप्तम भाव में स्थित कोई भी ग्रह सप्तम भाव के मारक दोष को कम या ज्यादा अवश्य ग्रहण करता है और मारक भी हो सकता है. राशि के स्वामी से उस राशि में बैठा ग्रह ज्यादा शक्तिशाली होता है. सभी ग्रह पंचम भाव में स्थित मंगल द्वारा अधिगृहित है क्योंकि सभी ग्रहों का अन्तिम depositor मंगल है जो द्वादश लार्ड भी है. यहाँ स्पष्ट है कि जातक की नियति द्वादश भाव में लिखी हुई है – यह जेल, पागलखाना, पलायन, षड्यंत्र इत्यादि है. मंगल मेष में अश्विनी नक्षत्र में है जो नवांश में छठे भावगत बृहस्पति पर पूर्ण दृष्टि रखता है . पंचम हॉउस चलित कुंडली में नीचगत पाप-मारक शनि द्वारा ध्वस्त हो गया है और यहाँ केतु और षष्टम लार्ड शुक्र यम नक्षत्र में युत है जो धनु लग्न में अति पापी ग्रह है. चन्द्रमा अष्टमेश तीसरे भाव में मंगल के नक्षत्र में स्थित है बृहस्पति और शनि द्वारा दृष्ट है. इसतरह कुंडली में शुभत्व नहीं है. कुंडली पूर्ण पापमय प्रभाव में है. नवमेश शत्रुभाव में स्थित है जो अष्टमेश के नक्षत्र में है इसलिए पारम्परिक धर्म भाव को नेगेट करता है. पराशर के अनुसार –

यदि नवमेश दु:स्थान में हो तो जातक भाग्यहीन होता है. ध्यान रहे, यदि यह हॉउस उसका अपना होगा तब ऐसा नहीं होगा, जैसे कर्क लग्न में 6th हॉउस बृहस्पति की मूलत्रिकोण राशि है और यहाँ बृहस्पति बैठे तो हर्षंण योग बना कर जातक के शत्रुओं का नाश कर उसके भाग्य का संबर्धन करेगा. यदपि की 6th रोग-शत्रु का हॉउस है तो वह उसका फल भी अवश्य देगा लेकिन जातक की नियति के बावत उसके प्रभाव को सम्पूर्णता में देखना चाहिए. नवम भाव अष्टमेश द्वारा दृष्ट है और अष्टमेश दु:स्थान में अष्टमेश के नक्षत्र में हैं. यह दोनों स्थितियां भाग्य नाश करती हैं. अष्टकवर्ग में नवम भाव में औसत से बहुत कम बिंदु हैं और नवांश लग्न में सिंह राशि ही उदित है. पराशर की यह बात भी ध्यान देने की है कि यदि लग्न या चन्द्र से 64 वे नवांश अर्थात 8th हॉउस का नवांश उदित हो या लग्न और चन्द्र से सप्तम या द्वितीय भाव का नवांश उदित हो तो पाप-मारक ग्रह की दशा में अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं.
नवमांश में नवमेश सूर्य छठे स्थित बृहस्पति और अष्टम स्थित शनि द्वारा दृष्ट है. राहु एकादश में महापापी है ही और एकादश लार्ड द्वारा दृष्ट है. नवांश में राहु शनि संग अष्टम हॉउस में युत है और दशमांस कुंडली में शनि संग एकादश में स्थित है. इस तरह कुल मिलाकर सावरकर पाप ग्रहों के गहरे प्रभाव में पैदा हुआ. नीचे क्रमश: लग्न और चलित कुडली दी गई है –


पूर्व जन्म के कर्म बहुत खराब थे इसलिए जन्म के 28वें वर्ष में 4 July 1911 को बृहस्पति महादशा और शुक्र की भुक्ति में इसे जेल भेजा गया. पाप-मारक शनि की महादशा में सावरकर ने शनि के चरित्र के अनुसार ही विभाजनकारी लेखन भी किया जो देश के लिए शुभ नहीं था और कभी कल्याणकारी नहीं होगा. शनि यदपि की पाप-मारक है लेकिन दशमांस में एकादश में राहु के साथ स्थित होकर आर्थिक लाभ देने वाला है. कुंडली का 3rd हॉउस जातक के मानसिक झुकाव को दर्शाता है, कुंडली में शनि वृष में सूर्य से 6 डिग्री के अंतर पर है तो सूर्य-शनि दोनों के ओर्ब को देखे तो शनि सूर्य के प्रभाव में है और वह सूर्य के नक्षत्र में भी है इसलिए मानसिक झुकाव राजनीतिक रहा लेकिन विनाशक रहा. सूर्य वर्गोत्तम है इसलिए कुंडली में सूर्य की स्थिति के अनुसार ही शनि दशा काफी घृणा से भरी हुई और विभाजनकारी थी. सूर्य शत्रु की राशि में है साथ में नवांश और दशमांश में भी शत्रु राशि में ही है और दोनों प्रमुख वर्ग कुंडलियों में दोनों शत्रु ग्रह राशिपरिवर्तन योग में है. शुक्र की भुक्ति में ही इसने सारे माफ़ीनामें लिखे. नवांश का यह राशि परिवर्तन योग सावरकर के राजनीतिक प्रसिद्धि का कारण भी बना लेकिन छवि आज तक नकारात्मक बनी रही यदपि कि हिंदुत्व ने इसे खत्म करने के लिए जो भी प्रोपगेंडा कर सकते थे किया. सावरकर एक घृणा-विद्वेषी ठग था, विनाशक और देशद्रोही था इसलिए कोई प्रोपगेंडा काम नही कर सकता.

जस्टिस काटजू ने लिखा है – “दरअसल, सावरकर केवल 1910 तक राष्ट्रवादी रहे. ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सज़ा हुई. जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया. जेल से बाहर आने के बाद सावरकर (अंग्रेजों के कहने पर ) हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए. वह ब्रिटिश नीति ‘बांटो और राज करो’ को आगे बढ़ाने का काम करते थे.” बाबा साहेब अम्बेडकर ने भी यही लिखा -” यह अजीब लग सकता है परंतु सच यही है कि एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के मुद्दें पर एक-दूसरे के विरोधी होते हुए भी मिस्टर सावरकर और मिस्टर जिन्ना इस मुद्दे पर पूर्णतः एकमत हैं. वे न केवल एकमत हैं वरन् जोर देकर कहते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैं – हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र.” यह एक देशद्रोही था इसमें कोई संदेह नहीं है.
उस समय के शीर्ष नेताओं के वक्तव्यों पर न जाकर सावरकर के चरित्र की और जांच पड़ताल करते हैं. लग्न लार्ड और लग्न दोनों ही पाप ग्रह के नक्षत्र में स्थित हैं और अष्टमेश चन्द्रमा एक विनाशक ग्रह है जो द्वादशेश के नक्षत्र में है,शनि दृष्ट है लेकिन चलित में द्वितीय हॉउस में है. मन कारक चन्द्रमा काफी खल है और शुक्र के नवांश में पुन: तीसरे भाव में है अर्थात मानसिक स्तर पर यह सदैव गुप्त षड्यंत्र करने वाला, धूर्त स्वभाव का और पीठ पीछे छुरा भोंकने वाला था. पंचमेश-षष्टेश का सम्बन्ध भी यह फल करता है, व्यक्ति क्रूर करने वाला होता है. नवमेश के छठवें होने और अष्टमेश के नक्षत्र में होने से सावरकर गुप्त राजनीतिक षड्यंत्र करने वाला तथा मूलभूत रूप से एक नास्तिक था और हिन्दू धर्म का इस्तेमाल अपनी आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए कर रहा था.
सावरकर हिन्दू संस्कृति की राजनीति करता था लेकिन वह खुद को हिन्दू नहीं मानता था, वह फासिज्म की राजनीतिक विचारधारा को मानता था और एक नास्तिक था. मरने से पहले इसने हिन्दू विधि से अंतिम संस्कार न करने के लिए परिवार वालों को आदेश दे रखा था, परिणाम स्वरूप इसका अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक भट्टी में किया गया और तेरहीं का संस्कार नहीं किया गया. आज तक यह ठग देशद्रोही प्रेतात्मा बन कर महाराष्ट्र में घूम रहा है.

