आशा पारेख बॉलीवुड की श्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शुमार हैं. सन 1959 से 1973 के मध्य वो सर्वश्रेष्ठ तारिकाओं में से एक थीं. उनके सिनेमा में योगदान के लिए सन 1992 में उन्हें पद्म श्री के साथ सम्मानित किया गया. दादासाहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. सन १९५२ में ही बाल कलाकार के रूप में उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय की शुरुआत की थी लेकिन कुछ खास नहीं हो पाने पर फिल्म करना छोड़ दिया और स्कूल पर ध्यान दिया. इस दौर में उन्होंने शिक्षा प्राप्त किया और नृत्य की ट्रेनिंग लिया जो उस समय फिल्म क्षेत्र में हिरोइन के लिए सबसे आवश्यक था. जब सोलह वर्ष की हो गईं तब उन्होंने पुन: पदार्पण किया और अपनी पहली फिल्म दिल देके देखो (1959) की रिलीज के साथ ही वे एक बड़ी स्टार बन गईं. इस फिल्म के बाद आई एक एक फिल्मे सुपर हिट होती गईं जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूँ (1963), तीसरी मंज़िल (1966), बहारों के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969) और कारवाँ (1971). फिर उनकी फ़िल्म मंज़िल मंज़िल (1984) दो बदन (1966), चिराग (1969), मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978),पगला कहीं का (1970) और कटी पतंग (1970 इत्यादि फिल्मो ने अपने समय में धूम मचा दिया था. यह तो उनके करियर की बात हुई लेकिन यह आर्टिकल उनके जीवन के दूसरे पहलू के विषय में है. उनकी जन्म कुंडली से यह देखने का प्रयास किया जायेगा कि आखिर इतनी सुंदर, सफल और धनवान अभिनेत्री को कोई पति क्यों नहीं मिला ? इस विषय पर उनके दो वक्तव्य प्राप्त होते हैं. पहले वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि नासिर हुसैन से प्रेम करती थीं लेकिन अकेला रहना पसंद किया. “Yes, Nasir Saab was the only man I ever loved. It would’ve been worthless to write an autobiography if I didn’t write about the people who mattered in my life…..Staying alone was probably one of the best decisions I made. I was in love with a married man and didn’t want to be a homewrecker. I could never consider breaking up his family and traumatizing his children. It was far simpler and satisfying to be on my own” –Indian Express
एक दूसरे वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि “मुझे नहीं पता, सभी को लगा कि मेरे बारे में कुछ ऐसा है जिससे कोई मेरे पास नहीं आया. वे डरते थे(पर्सनालिटी और स्टार का जो कद था उस वजह से ). मैं बहुत फ्रैंक थीं, बहुत सारे हीरो थे, जो मुझसे डरते थे. मुझे नहीं पता कि वे क्यों डरते थे. “
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942, 11:30 am मुंबई में हुआ था. यह समय उनके द्वारा ही हालिया में बताया गया था. लग्न में वृश्चिक राशि है और मिथुन राशि का चन्द्र अष्टम हैं. उनकी जन्म कुंडली दी जा रही है –

आशा पारेख के चार्ट में द्रष्टव्य भाग्यनाश योग-
सभी ग्रह मूलभूत रूप से द्वादश स्थित वक्री बुध द्वारा अधिगृहित हैं अर्थात सभी ग्रहों का depositor जन्म कुंडली का सबसे अशुभ पाप ग्रह है. सप्तमेश द्वादश लार्ड है और नीच हॉउस में होकर बुध से राशिपरिवर्तन योग में है. भाग्येश चन्द्रमा अष्टम में बुध की राशि में आर्द्रा नक्षत्र में है जो भाग्यनाशक है. पंचमेश अष्टम में है और एकतरह है सम्प्रभु है. नवांश भाग्यनाशक ग्रह बुध का है जिसमे पंचमेश उनका सप्तम लार्ड है. यहाँ बृहस्पति वर्गोत्तम है और क्रूर भी है. यह सप्तमेश और लग्नेश से युत है. लग्न नवांश दोनों में बृहस्पति द्वारा बुध दृष्ट है. यहाँ द्वितीय में स्थित बुध पर पूर्ण दृष्टि डाल कर शादी और कुल सम्वर्धन को नेगेट करता है. बुध-चन्द्र-बृहस्पति तीनों द्वारा शादी-पुत्रोत्पत्ति के सम्बन्ध में भाग्यनाश हुआ है. यहाँ मूलभूत रूप से पंचमेश का ही दोष है अर्थात गुरु दोष है. भाग्यनाश की परिभाषा समग्रता में करनी चाहिए विशेष रूप से लग्न की पूर्णता के सन्दर्भ में ही की जानी चाहिए. सिर्फ प्रसिद्धि या धन होने से ही जीवन सार्थक नहीं होता. अनेक गणिकाओं के पास भी बहुत धन होता है लेकिन भाग्यनाश हुआ रहता है. भिक्षु उपगुप्त और गणिका वासवदत्ता की कथा भारत में प्रसिद्ध ही है.
उपनिषद में कहा हैं- “न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यों ” सिर्फ धन या प्रसिद्धि से कोई तृप्त नहीं हो सकता. मनुष्य के जन्म लेने की दो तरह की पूर्णता भगवद्गीता जैसे शास्त्र में कही गई है. 1-मनुष्य मोक्ष अर्थात ब्रह्मलोक की प्राप्ति कर ले अथवा 2-मनुष्य पितृलोक की प्राप्ति कर ले. इन दोनों में किसी भी एक की प्राप्ति नहीं होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है. वह त्रिशंकु की तरह लटक जाता है सम्भवत: उसको कहीं शरण नहीं मिलती अथवा वह किसी निम्न योनि में कल्पों तक भटकता रहता है. या किसी का पशु बन जाता है, ऐसा शास्त्र में आता है. ब्रह्म लोक की प्राप्ति बहुत दुर्लभ है. अनेक साधुओं का वास्तव में कर्म नाश/भाग्य नाश हुआ रहता है, ये अपने खराब कर्म की वजह से साधु बनते है और वहां भी धर्म नहीं कर पाते. जब वो मरते हैं तब ‘न माया मिली न राम ‘ कहकर पश्चाताप में ही मरते हैं. यह कारण है कि आदि शंकराचार्य ने कहा कि जीवन से जब पूर्ण मोहभंग हो जाये तब सन्यास ग्रहण करना चाहिए. ज्ञान की प्राप्ति और ईश्वर लाभ दुर्लभ है, भगवद्गीता में कहा गया है – “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये.” सहस्रों में कोई एक प्रयत्न करता है, उनमे से सहस्रों में कोई एक ज्ञान की प्राप्ति करता है और उनमे से कोई एक ईश्वर को तत्वत: जानता है.. लेकिन पितृलोक की प्राप्ति उतनी दुर्लभ नहीं, बशर्ते मनुष्य का पुण्य उसके साथ हो.

