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ज्योतिष में पराशर ऋषि के नाम पर प्रचारित ग्रन्थ बृहद पराशर होरा में अवतारों का जन्म ग्रहों से बताया गया है. राम सूर्य से पैदा हुए, कृष्ण चन्द्रमा से, परशुराम शुक्र से, वराह राहु से, मत्स्य अवतार शनि से और नृसिंह मंगल से हुए. बुध से बुद्ध अवतार हुआ. क्या ऋषि पराशर सच में ऐसा विश्वास करते थे कि अवतार ग्रहों से होते हैं? क्या पौराणिक पराशर और वेदांत के पराशर अलग अलग हैं? पराशर को अद्वैत वेदांत परम्परा में आचार्य माना गया है. वेदांत का आचार्य बहुत उदात्त चिन्तन वाले होते हैं. बृहदारण्यक उपनिषद में ज्योतिष ब्राह्मण भाष्य में इसे देखा जा सकता है. वास्तव में सत्य यह है कि मध्य युग में 5 वीं शताब्दी के बाद जब ज्योतिष विकसित हुआ तो बाबाओ ने इसे धर्म में धीरे धीरे घुसना शुरू कर दिया. यह काम की चीज थी नियतिवाद को फ़ैलाने और जनता को नियतिवादी बनाने में अच्छा प्रयोग किया जा सकता था. इसी दौर में ज्यादा व्रत आदि बना दिए गये. सबसे पुराने पुराण मत्स्यपुराण में कम व्रतों का जिक्र है और एकादशी जिक्र नहीं है. मत्स्यपुराण के व्रत भी तिथि और वार के अनुसार ज्योतिष आधारित ही है क्योंकि ज्योतिष तो था लेकिन उतना विकसित नहीं था. ऐसा प्रतीत होता है कि मध्ययुग में दसवीं शताब्दी के बाद करण और मुहूर्त ग्रन्थ के लिखे जाने के बाद धर्म ज्योतिष केन्द्रित हो गया.

मध्ययुग में लिखे तन्त्र ग्रन्थ में लिखा है कि प्रमाथि सम्वत्सर में शुक्ल तृतीया शनिवार रोहिणी नक्षत्र में ग्यारह घड़ी बीतने के बाद रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म सहस्रार्जुन का वध करने के लिए हुआ. परशुराम को शुक्र का अवतार कहा गया है क्योकि शुक्र परम मारक होता है. विभव नामक सम्वत्सर में ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया बुधवार को जब रोहिणी नक्षत्र का योग दिन में चार घड़ी था तो भगवान कच्छप का अवतार हुआ. सतयुग में शुद्ध नामक सम्वत्सर में माघ मास की सप्तमी रविवार अश्विनी नक्षत्र दिन आठ घड़ी साध्य योग में शूकर अवतार हुआ. सत्ययुग में अंगिरा नामक सम्वत्सर में चैत्र मास में शुक्ल चतुर्दशी शनिवार के दिन स्वाती नक्षत्र में अठारह घड़ी स्तम्भ योग में हिरण्यकशिपु के वध के लिए नृसिंह का जन्म हुआ.

विरोधी नामक सम्वत्सर में भाद्रकृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में बुधवार को वज्र योग में श्री कृष्ण का जन्म हुआ. यह भी बता दिया गया है की कल्कि अवतार किस योग और नक्षत्र में होगा .. कलियुग के अंतिम चरण बीत जाने के बाद संधि काल में दुर्मुख नामक सम्वत्सर में मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया शनिवार पूर्वाषाढ नक्षत्र में वृद्धि योग में तीन धड़ी रात्री बीत जाने के बाद कल्कि अवतार का जन्म ब्राह्मण के कुल में होगा. उस समय बृहस्पति-चन्द्रमा-सूर्य पुष्य नक्षत्र में युत होंगे. ऐसे सभी अवतारों के ग्रह योग बताये गये हैं. भागवत पुराण में भी कल्कि अवतार के ग्रह योग बताये गये हैं.

यह कैसे जाना गया क्योकि कोई रिकोर्ड तो है नही ? क्या यह भी एक गपोड़शंख है. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बाबा यह मानने लगे कि ईश्वर बकवास है, ग्रहयोग ही मनुष्य को महानता प्रदान करते हैं जब सम्वत्सर, तिथि, मास, दिन और नक्षत्र का सही योग होता है. यह एक रिसर्च का विषय है कि कैसे ज्योतिष के तत्व को या आइडिया को बाबाओ ने पुराण में EMBED किया और सैकड़ों व्रत आदि, स्नान, कुम्भ आदि बनाये. क्योकि इसका हिन्दू धर्म के त्रयी ( उपनिषद-ब्रह्मसूत्र-गीता) में उपदेश की गई ब्रह्म विद्या से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है.

अब कामदेव पर क्या विचार है? वैष्णव सम्प्रदाय ने कृष्ण का मंत्र कामदेव का ही बनाया। क्लीं कृष्णाय नमः। यह क्लीं भी शक्ति बीज है, ओरिजिन वैष्णव नहीं हैं .