दशहरा के बाद शक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में पापांकुशा एकादशी मनाई जाती है. एकादशी व्रत वैष्णवों का प्रमुख व्रत है और भगवान विष्णु को समर्पित है. एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है, मनोकामना पूरी होती है तथा अंत में मोक्ष मिलता है. यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है. इस एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं. इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं. वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं. लाखो लोग एकादशी करते हैं और विष्णु लोक जाते हैं लेकिन विष्णु लोक नहीं भरता यह एकादशी की महिमा है. यह सर्व कामनापूर्ति व्रत है इसलिए इसे करना चाहिए.
मुहूर्त-
एकादशी तिथि 13 अक्टूबर 2024 को सुबह 09 बजकर 08 मिनट से प्रारंभ होगी और 14 अक्टूबर 2024 को सुबह 06 बजकर 41 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा. उदयातिथि के अनुसार पापांकुशा एकादशी व्रत 13 अक्टूबर 2024, रविवार को रखा जाएगा. पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण 14 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट से दोपहर 03 बजकर 33 मिनट तक के भीतर कर लेना है.
पापांकुशा एकादशी कथा –
अर्जुन ने पूछा, हे जगदीश्वर! मैंने आश्विन कृष्ण एकादशी अर्थात इंदिरा एकादशी कि कथा सुनी. अब आप कृपा करके मुझे आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये. इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे कुंतीनंदन! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है. इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है.
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था. उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता. जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे. यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं. कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं . उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा.
महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह वैकुण्ठ चला गया. जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए.

