द्वादश भावों में राहु के अनिष्ट प्रभाव के लिए यह एक उपाय अनुभव के अनुसार दिया जा रहा है. राहु की महादशा 18 वर्ष होती है, यह जीवन का एक लम्बा काल खंड है. यदि जीवन के 18 वर्ष ऐसे ही चले जाएँ तो बहुत बड़ी हानि है. ऐसे में राहु की अनिष्ट दशा में राहु का वैदिक या तांत्रिक अनुष्ठान और देवी पूजन करने से शीघ्र लाभ होता है. राहु के एक अनुष्ठान से यदि लाभ नहीं होता राहु का पुन: अनुष्ठान कराना चाहिए. राहु के वैदिक मन्त्र का सवा लाख का अनुष्ठान या कमसे कम 18000 जप करना या करवाना चाहिए.
1-लग्न – लग्नगत राहु अनिष्टकारी हो तो देह सुख की हानि, अपमान, अपयश, मानसिक अशांति-विभ्रम और रोग होते हैं. यदि राहु दशा अनिष्टकारी है तो देवी भागवत के अनुसार भुवनेश्वरी माता का पूजन और उनके मन्त्रों का जप करना चाहिए. भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में एक हैं.
2-द्वितीय भाव – यहाँ राहु यदि अनिष्टकारी है तो धन हानि, वाणी का दूषित होना, मुख का रोग, कुटुंब से वियोग इत्यादि होते हैं. ऐसे में महालक्ष्मी की उपासना करने से राहु की शान्ति होती है.
३-चतुर्थ भाव से द्वादश भाव तक राहु अनिष्टकारी हो तो अष्टमातृकाओं का क्रमश: पूजन करना चाहिए. चतुर्थ भाव -ब्राह्मी, पंचम-महेश्वरी, सप्तम-कुमारी, अष्टम-वैष्णवी, नवम-वाराही, दशम-इन्द्राणी, द्वादश-चामुंडा की पूजा करनी चाहिए. या एक साथ अष्टमातृकाओं की स्थापना करके पूजन करना चाहिए.
तृतीय, षष्टम और एकादश भावगत राहु अनिष्ट नहीं करता यदि राशि स्वामी शुभ भावगत है और राहु पाप ग्रह से दूषित नहीं है. यदि राहु इन भावों में अनिष्टकारी है तो दुर्गा शप्तशती का पाठ करवाएं या स्वयं करें. राहु की वस्तुओं का अनिष्ट दशा काल में दान करना चाहिए. राहु के दान में प्रमुख रूप से तिल, मूली, सरसों तेल, नील या काले वस्त्र, काला चना, सप्त धान्य, काले कम्बल का दान करना चाहिए.

