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भगवान शिव की अष्टमूर्तियाँ शास्त्रों प्रसिद्ध हैं. ऋग्वेद में ये अष्टमूर्तियाँ तत्वात्मक मानी गई हैं -जल, अग्नि, वायु, औषधि, सूर्य, चंद्रमा, अन्न या क्षेत्रज्ञ और इंद्र शिव के आठ रूप हैं. इन्हें ही मतान्तर से रुद्र, शर्व, पशुपति, उग्र, अशनि, भव, महादेव और ईशान भी कहा जाता है. शिव महीन स्तोत्र में भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं ईशान नाम बताये गये हैं. इन मूर्तियों के पांच मन्दिर दक्षिण भारत में हैं, एक नेपाल में, एक सोमनाथ और सभी ज्योतिर्लिंग सूर्यात्मक माने गये हैं.

भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्।
तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम्।।
अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि।
प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते।। २८।।

भावार्थ: वेद एवं देवगण आपकी इन आठ नामों से वंदना करते हैं भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं इशान। हे शम्भू! मैं भी आपकी इन नामों की भावपूर्वक स्तुति करता हूँ।

अष्टमूर्ति शिव स्तोत्र-

क्षितिमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निक्षिति कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ १॥

जलमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निजलकर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ २॥

वह्निमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निवह्नि कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ३॥

वायुमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निस्पर्श कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ४॥

व्योममूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निव्योम कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ५॥

चन्द्रमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निस्वान्त कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ६॥

सूर्यमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निदृश्य कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ७॥

यष्टृमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता नियम्य कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ८॥

अष्टमूर्तेस्स्तुतिमिमां यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
किल्बिषादखिलान्मुक्तस्स्वर्गं मोक्षञ्चविन्दति ॥ ९॥

इति अष्टमूर्ति स्तोत्र सम्पूर्णम