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माघ महीने की गुप्त नवरात्रि का पर्व चल रहा है. माघ मास के गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 10 फरवरी दिन शनिवार से प्रारम्भ हुई थी और गुप्त नवरात्रि का समापन कल 18 फरवरी दिन रविवार को होगा. नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. कुछ लोग नवरात्रि को अष्टमी के दिन ही समापन करते हैं, कुछ नवमी को समाप्त करते हैं. माघ गुप्त नवरात्रि की अष्टमी आज 8:15 ऍम पर खत्म हो जायेगी और नवमी का प्रारम्भ हो जाएगा. ज्योतिष में तिथि बेध को भी अलग अलग कर्मों में शुभ माना जाता है. ऐसे में शनिवार का यह दिन गुप्त नवरात्रि के समापन और किसी विशेष अनुष्ठान के लिए अति शुभ है.

शास्त्रों में अष्टमी तिथि का राहु से विशेष सम्बन्ध बताया गया है. ऐसे में इस काल का कुछ विशेष पर्वों में उपयोग करने का प्रावधान शास्त्र में किया गया है. नवरात्रि जैसे पर्व में समस्त काल ही शुभ माना गया है. इसमें आम जन को मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है. अष्टमी-नवमी दुर्गा की उपासना के लिए सर्वोत्तम तिथि है. यदि गुप्त नवरात्रि के इस पर्व में आज दुर्गा शप्तशती के एकादश अध्याय का कवच, अर्गला, कीलक के साथ पाठ किया जाय या कालरात्रि की किसी विशेष साधना को किया जाय तो यह अत्यंत शीघ्र फलदायी होगा. इस दिन दुर्गा की पंचोपचार से पूजा करके यदि दुर्गा सूक्त का अथवा इन्द्रादि देवताओ द्वारा की गई ‘शक्रादि’ स्तुति द्वारा ही पूजा की जाय तो दुर्गा माता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा.

मुहूर्त –

अष्टमी तिथि समाप्त 8:15 AM, नवमी तिथि प्रारम्भ . 18 फरवरी को 8.15 AM पर को नवमी तिथि समाप्त दशमी प्रारम्भ हो जाएगी. ऐसे में आज विशेष पूजन का समय राहु काल -9:46 से 11.10 है. पूजन इसी काल में समाप्त करें.

शक्रादि स्तुति के लिए यहाँ क्लिक कर पढ़ें .

अथ श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् :-

ॐ दुर्गा शिवा महालक्ष्मीर्महागौरी च चण्डिका ।
सर्वज्ञा सर्वलोकेशा सर्वकर्मफलप्रदा ॥ १ ॥

सर्वतीर्थमया पुण्या देवयोनिरयोनिजा ।
भूमिजा निर्गुणा चैवाधारशक्तिरनीश्वरा ॥ २ ॥

निर्गुणा निरहङ्कारा सर्वगर्वविमर्दिनी ।
सर्वलोकप्रिया वाणी सर्वविद्याधिदेवता ॥ ३ ॥

पार्वती देवमाता च वनीशा विन्ध्यवासिनी ।
तेजोवती महामाता कोटिसूर्यसमप्रभा ॥ ४ ॥

देवता वह्निरूपा च सदौजा वर्णरूपिणी ।
गुणाश्रया गुणमयी गुणत्रयविवर्जिता ॥ ५ ॥

कर्मज्ञानप्रदा कान्ता सर्वसंहारकारिणी ।
धर्मज्ञाना धर्मनिष्ठा सर्वकर्मविवर्जिता ॥ ६ ॥

कामाक्षा कामसंहन्त्री कामक्रोधविवर्जिता ।
शाङ्करी शाम्भवी शान्ता चन्द्रसूर्याग्निलोचना ॥ ७ ॥

सुजया जयभूमिष्ठा जाह्नवी जनपूजिता ।
शास्त्रा शास्त्रमया नित्या शुभा चन्द्रार्धमस्तका ॥ ८ ॥

भारती भ्रामरी कल्पा कराली कृष्णपिङ्गला ।
ब्राह्मी नारायणी रौद्रा चन्द्रामृतपरिश्रुता ॥ ९ ॥

ज्येष्ठेन्दिरा महामाया जगत्सृष्ट्यादिकारिणी ।
ब्रह्माण्डकोटिसंस्थाना कामिनी कमलालया ॥ १० ॥

कात्यायनी कलातीता कालसंहारकारिणी ।
योगिनिष्ठा योगिगम्या योगिध्येया तपस्विनी ॥ ११ ॥

ज्ञानरूपा निराकारा भक्ताभीष्टफलप्रदा ।
भूतात्मिका भूतमाता भूतेशा भूतधारिणी ॥ १२ ॥

स्वधानारीमध्यगता षडाधारादिवर्तिनी ।
मोहदांशुभवा शुभ्रा सूक्ष्मा मात्रा निरालसा ॥ १३ ॥

निम्नगा नीलसङ्काशा नित्यानन्दा हरा परा ।
सर्वज्ञानप्रदाऽनन्ता सत्या दुर्लभरूपिणी ।
सरस्वती सर्वगता सर्वाभीष्टप्रदायिनी ॥ १४॥

॥ इति दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥