भगवान विष्णु का द्वादश आदित्यों से अविच्छेद्य सम्बन्ध है. द्वादश आदित्यों के रूप में भगवान स्वयं ही प्रकाशित होते हैं और सृष्टि-स्थिति और विनाश के कार्य सम्पन्न करते हैं. आदित्य 12 निम्नलिखित कहे गये हैं – अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु. इन्हीं आदित्यों के वर्ष के 12 मास हैं. पुराणों में इनके नाम इस तरह मिलते हैं : धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु. भगवान विष्णु के अष्टाक्षर मन्त्र या द्वादशाक्षर मन्त्र में मूलमन्त्र के न्यास के साथ द्वादश आदित्यों के मन्त्र का न्यास किया जाता है. द्वादश आदित्य ही वास्तव में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं.
आदित्य और सूर्य में आदि शंकराचार्य ने अंतर बताया है. आदित्य एक अधिदैविक स्वरूप रखते हैं. राशि विशेष, किसी नक्षत्र से युक्त सूर्य की उपमा भी आदित्य है. आदित्यों का स्वरूप थोड़ा रहस्यमय है क्योंकि भागवत आदि में इन्हें सिर्फ पृथ्वी से जुड़ा हुआ नहीं माना गया है, ये आदित्य देवलोक को भी प्रकाशित करते हैं. हर मास के आदित्य के साथ ऋषि विशेष, नाग, यक्ष, गन्धर्व, अप्सरा, राक्षस इत्यादि जुड़े हुए हैं जिनका उदय और अस्त इन आदित्य देवों के साथ होता है. ये 12 आदित्य देव कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र कहे गये हैं.
महादेव की नगरी काशी में द्वादश आदित्यों के मन्दिर थे. काशी में द्वादश आदित्य निम्नलिखित हैं. 1- लोलार्कादित्य (लोलार्क कुंड-भदैनी) 2-विमलादित्य (जंगमबाड़ी-खारी कुआं) 3-सांबादित्य (सूर्य कुंड) 4-उत्तरार्कादित्य (बकरिया कुंड-अलईपुर) 5-केशवादित्य (आदिकेशवघाट) 6-खखोलादित्य (कामेश्वर गली) 7-अरुणादित्य (त्रिलोचन महादेव मंदिर) 8-मयूखादित्य (मंगलागौरी मंदिर) 9-यमादित्य (संकठा घाट पर यमराज द्वारा स्थापित) 10-गंगादित्य (ललिता घाट) 11-वृद्धादित्य (मीरघाट) 12-द्रौपदादित्य (विश्वनाथ मंदिर में अक्षय वट के पास).
भगवान विष्णु के मन्त्र ॐ नमोनारायणाय के न्यास में द्वादश पंजर न्यास किया जाता है. इस द्वादश पंजर न्यास में द्वादश आदित्यों का न्यास किया जाता है. यथा –
1-ॐ अं केशवाय धात्रे नम: (ललाटे )
2-ॐ नं आं नारायणाय अर्यम्ने नम: (हृदि )
3-ॐ मों इ माधवाय मित्राय नम: (कंठे)
4-ॐ भं ईम गोविन्दाय वरुणाय नम: ( दक्ष पार्श्वे )
5-ॐ गं उ विष्णवे अंशवे नम: (दक्षिणे )
6-ॐ वं ऊँ मधुसूदनाय भगाय नम: (गल दक्षिण भागे)
7-ॐ तें ए त्रिविक्रमाय विवश्वते ( वाम पार्श्वे )
8-ॐ वां ऐ वामनाय इन्द्राय नम: (वामांशे)
9-ओं सुं ओं श्रीधराय पूष्णे नम: (गल वामभागे )
10-ॐ दें औं हृषिकेषाय पर्जन्याय नम: ( पृष्ठे )
11-ॐ वां अं पद्मनाभाय त्वष्ट्रे नम: (कुकुदि )
12-ॐ यं अ: दामोदराय विष्णवे नम:
इसके अंतर्गत ही विष्णु के द्वादश नाम भी समाहित हैं. इसी के अनुसार द्वादश नामपंजर स्तोत्र भी है जिसका नाम लेते हुए वैष्णव अपने बदन पर 12 जगह वैष्णव चिन्ह अंकित करते हैं. इस न्यास से हर प्रकार के ग्रहों से रक्षा होती है और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

श्रीद्वादशनामपञ्जरस्तोत्रम्-
पुरस्तात् केशवः पातु चक्री जाम्बूनदप्रभः ।
पश्चान्नारायणः शङ्खी नीलजीमूतसन्निभः ॥ १॥
इन्दीवरदलश्यामो माधवोर्ध्वं गदाधरः ।
गोविन्दो दक्षिणे पार्श्वे धन्वी चन्द्रप्रभो महान् ॥ २॥
उत्तरे हलभृद्विष्णुः पद्मकिञ्जल्कसन्निभः ।
आग्नेय्यामरविन्दाभो मुसली मधुसूदनः ॥ ३॥
त्रिविक्रमः खड्गपाणिर्निरृत्यां ज्वलनप्रभः ।
वायव्यां वामनो वज्री तरुणादित्यदीप्तिमान् ॥ ४॥
ऐशान्यां पुण्डरीकाभः श्रीधरः पट्टसायुधः ।
विद्युत्प्रभो हृषीकेशो ह्यवाच्यां दिशि मुद्गरी ॥ ५॥
हृत्पद्मे पद्मनाभो मे सहस्रार्कसमप्रभः ।
सर्वायुधः सर्वशक्तिः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ॥ ६॥
इन्द्रगोपकसङ्काशः पाशहस्तोऽपराजितः ।
स बाह्याभ्यन्तरं देहं व्याप्य दामोदरः स्थितः ॥ ७॥
एवं सर्वत्रमच्छिद्रं नामद्वादशपञ्जरम् ।
प्रविष्टोऽहं न मे किञ्चिद्भयमस्ति कदाचन ॥ ८॥
भयं नास्ति कदाचन ॐ नम इति
॥ इति श्रीद्वादशनामपञ्जरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

