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कोई भी जातक यह जान कर प्रसन्न होता है कि उसके ग्रहीय योग अच्छे हैं और उसे जिन्दगी में शुभ परिणाम ही मिलेंगे. कुछ लोगों का राजयोग होता है और वे अति उत्साही होते हैं कि अब तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता. लेकिन जिन्दगी के कई पड़ाव ऐसे आते हैं जब उनको पग पग पर बाधा नजर आती है, उनके कोई काम बनते नहीं दिखते. जब किसी योग्य ज्योतिषी को वे जन्म कुंडली दिखाते हैं केवल तभी कारणों का पता चलता है . इसके अनेक ज्योतिषीय कारण हो सकते हैं. भारतीय ज्योतिष में जन्म कुंडली में अरिष्ट, नुकसान , बाधा आदि की व्याख्या भावों और पाप ग्रहों के आधार पर भी की जाती है. कुछ भाव जैसे अष्टम, द्वादश ऐसे हैं जो जीवन में बाधा उत्पन्न करने का काम करते हैं. वे जहाँ होते हैं वहां बुरा ही करते हैं. लेकिन कुछ विशेष भावों के स्वामियों को विशेष रूप से बाधक ग्रह अथवा बाधकेश का नाम दिया गया है. बाधक ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में रोग, शोक, हानि, अपयश, दुःख और मृत्यु तक देते हैं. सभी 12 राशियों को उनके स्वभाव के अनुसार तीन भागों- चर, स्थिर और द्विस्वभाव में बांटा गया है और फिर उसके आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया गया है.

मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. इन राशियों के जातक सदैव कुछ न कुछ करते रहते हैं. ये चैन से नहीं रहते.

वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. इसके विपरीत इन राशियों के जातक स्थिर और थोड़े आलसी स्वभाव के होते हैं .

मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है. इनके दोनों तरह के स्वभाव होते हैं .

ज्योतिष में यदि जातक के जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.

जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.

यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.
बाधकेश या बाधक भावों में बैठे ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में बाधा व रुकावट पहुंचाने का काम करते हैं. व्यक्ति के जीवन में जब बाधक ग्रह की दशा आती है, तब वह बाधक ग्रह ज्यादा हानि पहुंचाते हैं या वह जिन भावों में स्थित हैं वहाँ के कारकत्वों में कमी कर देते हैं. बाधकेश प्रत्येक भाव के लिए भी होते हैं. हर भाव के हिसाब से भी देखना चाहिए. व्यक्ति विशेष की कुंडली में बाधक ग्रह जब कुंडली के अशुभ भावों में होते हैं तब वे ज्यादा अशुभ देने वाले होते हैं. बाधक ग्रह जब जन्म कुंडली के शुभ ग्रहों के साथ युत होते हैं तब उनकी शुभता में भी कमी कर सकते हैं. बाधक ग्रह सबसे ज्यादा अशुभ तब होते हैं जब ये मारक भावो दूसरे भाव, सप्तम भाव या अष्टम भाव में हों या इनके स्वामी के साथ स्थित होते हैं.

यह ध्यान देने की बात है कि एकादश भाव को जन्म कुंडली का लाभ स्थान का लाभ स्थान माना गया है. कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान के रुप में भी जाना जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम भाव से हर तरह की साझेदारी देखी जाती है. जीवनसाथी का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. जन्म कुंडली में जब एकादश भाव की दशा या अन्तर्दशा आती है तब यही माना जाता है कि व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होगी लेकिन इनके बाधकेश होने के कारण चर लग्न के व्यक्ति को एकादशेश से लाभ में बाधा आती है. यदि बाधक ग्रह बाईसवें द्रेष्काण का स्वामी हो या जिस भाव में मांदी हो वहां स्थित हो तब भी यह अशुभ फल देता है और बाधक का फल करता है.

स्थिर लग्न के व्यक्ति की जन्म कुंडली में नवमेश को सबसे बली त्रिकोण माना गया है और यह भाग्येश है तब यह कैसे अशुभ हो सकता है? सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तब तो किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय हो ही नहीं सकता है. इसका अर्थ यह हुआ कि द्वि-स्वभाव लग्न वाले व्यक्तियों के जीवन में सदा ही बाधा बनी रह सकती हैं! इसलिए बाधकेश के फल का निर्णय बहुत सोच समझ कर करना चाहिए . मसलन कर्क लग्न में एकादशेश बाधकेश होता है, यदि यह नवम स्थान में स्थित होता है तो नवम स्थान को खराब कर सकता है और नवम स्थान का बाधक भाव पंचम भाव है अर्थात पंचम भाव से सम्बन्धित काम में भी यह बाधक हो सकता है. इसी प्रकार अन्य को भी समझना चाहिए. इस कुंडली का उदाहरण देखें –

इंदिरा गाँधी की इस कुंडली में बृहस्पति बाधक भाव में है और बाधकेश से राशिपरिवर्तन है. 1977 में शनि-शुक्र की दशा में इंदिरागाँधी को बुरी पराजय मिली थी और उन्हें विपक्ष ने सड़क पर घसीटवाया था. बाधक हॉउस लार्ड राहु के साथ 6वें भाव में है जिससे दुश्मनों की अधिकता थी और राहु द्वारा हॉउस को पूर्णत: एक्वायर कर लेने के कारण राहु की ही अंतरदशा में उनकी हत्या हो गई थी. बृहस्पति की महादशा में भी उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. बृहस्पति-बुध दशा में उन्होंने पति को खोया (बृहस्पति द्वारा बुध लग्न कुंडली और नवांश दोनों में ही दृष्ट है) और गूंगी गुड़िया का ख़िताब भी मिला. यदपि की इसी दशा में वे पीएम भी बनीं.