
अनिरुद्धाचार्य भागवत के इस श्लोक मेंअधावन्तो को राधा पढ़ रहा है.
कबन्धास्तत्र चोत्पेतु: पतितस्वशिरोऽक्षिभि: ।
उद्यतायुधदोर्दण्डैराधावन्तो भटान् मृधे ॥ ४० ॥
उद्यत आयुध दोरदंडै: अधावन्तो भटान् मृधे
. एक पंडित कोई रामकृपालु त्रिपाठी हैं उन्होंने बड़ा लताड़ा है. उसका गुरु भी बकलोली कर रहा है और वीडियो में बता रहा कि राधा नाम भरा पड़ा है.
वास्तव में सभी विद्वान् मानते हैं की भागवत में राधा नाम नहीं है. वास्तव में यह राधा का चक्कर बाद के संहिता ग्रन्थों से भागवती कृष्णवाद में प्रविष्ट हुआ …
इस त्रिपाठी जी की बात सही है क्योंकि यह तथ्य है. गर्ग संहिता, ब्रह्म संहिता, पांचरात्र तन्त्र, ब्रह्म वैवर्त इत्यादि दसवीं शताब्दी के बाद में लिखे गये पुराणों से यह राधा प्रपंच आया है.