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देशभर में शनि के अनेक चमत्कारी मन्दिर हैं. समुद्री तल से करीब 7000 फुट की ऊंचाई पर स्थित उत्तराखंड के खरसाली में भी विराजमान हैं एक चमत्कारी शनिदेव. कहा जाता है कि यहां साल में एक दिन चमत्कार आवश्य होता है. उत्तराखंड प्रदेश के उत्तरकाशी जनपद के 12 गांवों के ग्रामीण शनि देव को मूर्ति स्वरूप में अपना ईष्ट देवता और न्यायधीश मानकर पूजा करते हैं. हर कार्य करने से पहले, किसी कष्ट विपदाओं में श्रद्धालु शनि देव की डोली से कारण और उपाय पूछते हैं, शनि देवता की डोली सांकेतिक भाषा में आदेश देती है. मन्दिर में शनिदेव की कांस्य मूर्ति शीर्ष मंजिल पर विराजमान है. इस शनि मंदिर में एक अखंड ज्योति भी मौजूद है. यहाँ की ऐसी मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं. यह मंदिर अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने बनाया था. उस दौरान पांडव खरसाली के निकट लाखामंडल तक भी आए थे.

यह चार मंजिला मंदिर पत्थर, लकड़ी से बना हुआ है. यह मंदिर कई भूकंप और आपदाएं भी झेल चुका है लेकिन यह अब तक सुरक्षित है. यह अद्भुत शनि मन्दिर खरसाली गांव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 140 किलोमीटर दूर यमुनोत्री धाम के निकट स्थित है. यह गांव सड़क से जुड़ा हुआ. खरसाली गांव को यमुना का मायका कहा जाता है इसलिए यहाँ यमुना के भाई शनि देव का मंदिर से भी है. शनि देवता मंदिर परिसर में धरया चोंरी देव स्थल है. धरया चोंरी की मान्यता है कि इसी स्थान पर बेखल के पेड़ के नीचे शनि देव प्रकट हुए थे. स्कन्दपुराण के केदार खंड में इसका उल्लेख हुआ है.

शनि देव के इस मंदिर में दो बड़े पात्र रखे गए हैं. इनमे एक पात्र आकार में छोटा है और एक बड़ा है. इन दो पात्रों के बारे में कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या और कार्तिक पूर्णिमा की रात को वे अपने आप ही पश्चिम से पूरब और पूरब से पश्चिम को दिशा बदल देते हैं. इन पात्रों को रिखोला और पिखोला कहा जाता है. ये पात्र मंदिर में सदियों से जंजीर से बांधे हुए हैं.

जुलाई माह में गीठ पट्टी के गांवों में शनि देवता का उत्सव होता है. यह उत्सव 12 दिनों तक चलता है. यह उत्सव गीठ पट्टी के गावों दुर्बिल, कुठार, बाडिया, पिंडकी, मदेश, दगुणगांव, निषणी, बनास, नरायणपुरी और खरसाली गांव में होता है. इस उत्सव के दौरान पूरे दिन पूजा अर्चना और स्थानीय ग्रामीण शनि देवता के पारंपरिक लोक गीत गाते हैं तथा आशीर्वाद लेते हैं.