शिव की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है. वैसे तो सभी एकादशी भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, लेकिन रंगभरी एकादशी भगवान शिव और माता पार्वती से विशेष रूप से जुड़ी है. रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है और शिव भक्त उनके साथ होली खेलते हैं. इस दिन संकरी गलियों में बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती की प्रतिमा को घुमाया जाता है जिनके साथ सभी काशी वासी होली खेलते हैं, भक्त रंग और गुलाल से उन का स्वागत करते हैं. रंगभरी एकादशी के अवसर पर भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में शिवजी और माता पार्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का जब विवाह माता पार्वती से हो गया तो वे फाल्गुन शुक्ल एकादशी को देवी गौरी का गौना कराकर पहली बार अपनी नगरी काशी आए थे. उस दौरान उनके भक्तों ने शिव और शक्ति का रंग-गुलाल से स्वागत किया था. तब से यह परम्परा बन गई और हर साल फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है. इससे पहले शिवरात्रि पडती है जिसमे शिव-पार्वती का ब्याह होता है. इसके बाद पड़ने वाली एकादशी को बाबा का गौना होता है. वास्तव में यह क्रम से होता है बसंत पंचमी को बाबा विश्वनाथ का तिलक होता है, शिवरात्रि को शादी होती है और रंगभरी एकादशी को गौना होता है. इस दिन शिव जी भक्तो सहित अपने ससुराल जाकर मां पार्वति की विदाई कराकर विश्वनाथ मंदिर लाते हैं. होली के उत्सवधर्मी माहौल में ये गौना होता है इसलिए भक्त उनके साथ होली खेलते हैं. मान्यता के अनुसार, देवलोक के सारे देवी-देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं. मंदिर परिसर दर्जनों डमरुओं की गूंज और हरहर महादेव, पार्वती पतये नम: से गुंजायमान हो जाता है. इस धार्मिक होली की परंपरा पिछले 200 साल से निर्बाध रूप से जारी है. इस साल रंगभरी एकादशी का व्रत सोमवार, 10 मार्च 2025 को रखा जाएगा.
रंगभरी एकादशी का मुहूर्त –
आमलकी एकादशी को ही रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है. वैदिक पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 मार्च को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर होगी. इसका समापन 10 मार्च को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर होगा. ऐसे में 10 मार्च को रंगभरी एकादशी मनाई जाएगी. वैष्णव सम्प्रदाय के फॉलोवर इस दिन आमलकी एकादशी का व्रत रखते हैं और अमले की पूजा की जाती है.

