ग्रहरूपी जनार्दन प्राणियों के कर्म फल को देने वाले है, ग्रहों के योग और दुर्योग से मनुष्यों के कर्मों के अनुसार कुल देश आदि में उन्हें तत्तफल प्राप्त होता है .
कर्मणां फलदातृत्वे ग्रहरूपी जनार्दन: ।
ग्रहयोगवियोगाभ्यां कुलदेशादि देहिनाम ।। -महर्षि पराशर
यजुर्वेद में कहा गया है ग्रह के अनुष्ठान से ईश्वर निकटता प्राप्त होती है और इससे जातक का कल्याण होता है. ग्रह प्रजापति के शरीर हैं. “अंशुर्वै नाम ग्रह: स प्रजापतिस्तस्यैषैष प्राणस्तस्मादुपांशुर्नाम”. मनुष्य का संचित-प्रारब्ध कर्म को क्षीण करने के लिए धर्म का सारा उद्योग है. यदि यही क्षीण न हो तो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता है. रोग होता है तो मनुष्य दवा, व्यायाम, आहार विहार सब कुछ के द्वारा देह को स्वस्थ करने का उद्योग करता है और स्वस्थ भी हो जाता है. परन्तु कुछ रोग असाध्य होते हैं जिनके लिये दैव की कृपा की आवश्यकता होती है. इसी तरह अन्य कर्मो का विपाक और उससे उत्पन्न कष्ट और दुःख भी हैं.
ग्रहों की पूजा और अनुष्ठान से शांति होती है और मनुष्य का कल्याण होता है. अन्यत्र भी शतपथ में कहते हैं “बलवद्वै देवा एतस्य होमं प्रेप्सन्ति वरं समर्धयन्ति” अनुष्ठान इत्यादि से सम्बन्धित देवगण प्रसन्न होकर जातक को बल, आयु, धन और अन्यान्य वर प्रदान करते हैं.
एषां धात्रा वरो दत्त: पूजिता: पूजयिष्यथ।
मानवानां ग्रहाधीना उच्छ्राया: पतनानि च ।।
भावाभावौ च जगतां तस्मात पूज्यतमाग्रहा: ।।
टीवी पर जितने भी बाबा और कथावाचक दिखते हैं जो प्रसिद्ध हो गये हैं वे ग्रहों के रत्न पहनते हैं. उन्हें शायद यह पता है कि उनके भगवान हैं लेकिन उनकी उपासना ही पर्याप्त नहीं है. ग्रह भी हैं जो अपनी दशाओं में कष्टप्रद होते हैं. शनि से तो देवताओं को भी भय लगता है ऐसा पुराणों में वर्णन है. शनि की दृष्टि मात्र से गणेश जी का सिर कट गया था.

सेलिब्रिटीज का ईश्वर से ज्यादा विश्वास ग्रहों पर है क्योकि यह जागतिक चीजों के लिए सभी मूल्यों का त्याग करने वाले हैं. ग्रह दशाओं में ये स्टार बनते हैं और ग्रह दशाओं में इनका काम जब रुकता है तो ये रत्न धारण करते हैं और ग्रहों की पूजा इत्यादि में संलग्न होते हैं या तीर्थ यात्रा करते हैं. ज्योतिष का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य को उसके अशुभ कर्म विपाक में मदद करना है. ब्रह्मा जी ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेद और कर्म के साथ उसके नेत्र के रूप में इसका प्रवर्तन इसीलिए किया था. महर्षि नारद के अनुसार ज्योतिष का प्रयोजन है लोकयात्रा.







