
हर माह में दो चतुर्थी तिथि आती हैं. एक शुक्ल पक्ष में जिसे विनायकी चतुर्थी कहते हैं और दूसरी कृष्ण पक्ष में जिसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. इन दोनों में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्त्व माना गया है. पौष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अखुरथ संकष्टी नाम से जाना जाता है. अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने की मान्यता गाणपत्य सम्प्रदाय में अति प्राचीन काल से है. इस दिन व्रत रखने से और गणेशजी की विधि-विधान से पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त –
पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 दिसंबर तृतीया तिथि मे. पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 दिसंबर की सुबह 10:06 पर शुरू होगी, जिसका समापन अगले दिन यानी 19 दिसंबर को सुबह 10:02 पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 18 दिसंबर को रखा जाएगा. वहीं, चंद्रोदय का समय शाम 8:27 है.
पूजा विधि –
जिनको विस्तृत विधि और न्यासादि नहीं पता है. उन्हें किसी चक्कर में न पड़कर. ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र से ही पंचोपचार पूजन करना चाहिए. पंचोपचार पूजन की ही बहुत महिमा है. कभी ईच्छानुसार विशेष पर्व पर विशेष पूजन का आयोजन करना चाहिए. उस समय षोडश उपचारों से पूजन करना चाहिए.
गणेश जी की गायत्री बहुत सिद्धिप्रद मानी गई है. नीचे दी गई तीन गणेश गायत्री में किसी से भी गणेश की पूजा की जा सकती है और उसका जप किया जा सकता है.
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ (गणपत्यथर्वशीर्ष)
ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ (मैत्रायणी-संहिता)
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ (तैत्तिरीयारण्यक-नारायणोपनिषद्)
दूर्वा ऐसे करें अर्पित –
गणेश जी को इन बीजमन्त्र सम्पुट 21 नामों से दूर्वा प्रदान करने से मनोकामना पूर्ण होती है –
1- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः द्विदन्तविनायकाय नमः ।
2-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः द्वितुण्डविनायकाय नमः ।
3-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः द्व्यक्षविनायकाय नमः ।
4-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः ज्येष्ठविनायकाय नमः ।
5- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः गजविनायकाय नमः ।
6-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः कालविनायकाय नमः ।
7- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः नागेशविनायकाय नमः ।
8-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः सृष्टिगणेशाय नमः ।
9-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः यक्षविघ्नेशाय नमः ।
10-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः गजकर्णाय नमः ।
11- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः चित्रघण्टाय नमः ।
12- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः मङ्गलविनायकाय नमः ।
13- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः मित्रादिविनायकाय नमः ।
14- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः मोदगणेशाय नमः ।
15- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः प्रमोदगणेशाय नमः ।
16-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः सुमुखाय नमः ।
17- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः दुर्मुखाय नमः ।
18- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः गणनायकाय नमः ।
१९-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः ज्ञानविनायकाय नमः ।
20-ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः द्वारविघ्नेशाय नमः ।
21- ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः अविमुक्तेशविनायकाय नमः ।
अष्टगणपति स्तोत्र –
इस छोटे लेकिन शक्तिशाली अष्टगणपति स्तोत्र का पाठ करने से भी पूर्ण फल की प्राप्ति होती है.
स्वस्ति श्रीगणनायको गजमुखो मोरेश्वरः सिद्धिदः
बल्लाळस्तु विनायकस्तथ मढे चिन्तामणिस्थेवरे ।
लेण्याद्रौ गिरिजात्मजः सुवरदो विघ्नेश्वरश्चोझरे
ग्रामे रांजणसंस्थितो गणपतिः कुर्यात् सदा मङ्गलम् ॥
गणेश चतुर्थी पर व्रत सहित इतना ही कर लेने से सभी कष्टों की निवृति हो जाएगी. मनुष्य की प्रवृत्ति है, वह सोचता है कि गुरु जी छोटा बता रहे हैं कुछ बड़ा मन्त्र बता देते !