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अदृश्य हो जायेंगे ‘हम दोनों’
क्योंकि हम दोनों
एक नया इतिहास बुन रहे हैं
इसलिए हमे भीड़ की
हरगिज जरुर नहीं,
हम दोनों में से हरएक
स्वयं में एक भीड़ हैं।

यह जरूरी नहीं कि
हम कुछ कहें,
कुछ कहना बोलने का
एक ठंग मात्र है,
न कुछ कह कर भी
हम उस बिंदु पर पहुंचेंगे
जहाँ सत्ता का कोई मायने
नहीं होता,
“मैं” कहने की
आवश्यकता नहीं होती,

सखी ! वो देखो,
ईश्वर के उस चिन्मय
विग्रह को देखो,
उसी में अदृश्य हो जायेंगे
‘हम दोनों’

-राजेश शुक्ला ‘गर्ग’