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वैष्णव भागवतियों का पंचरात्र तन्त्र जिससे वैष्णवों की सारी पोपलीला व्याप्त है और जिसके कारण सारा दुराचार है, उसका कोई वैदिक आधार नहीं है. ब्रह्मसूत्र सनातन धर्म का सबसे प्रमुख ग्रन्थ है. भागवती वैष्णव वर्तमान वेद को नहीं मानते, एक ऐसे वेद को मानते हैं जिसको सिर्फ वही जानते हैं. पंचरात्री तांत्रिक वैष्णव कहते हैं कि यह वेद सतयुग में था उसके बाद लुप्त हो गया, उसका ज्ञान सिर्फ पांचरात्र वालों को ही है. उनके वासुदेव इत्यादि व्यूह अवतारों का आदि शंकराचार्य ने इन ब्रह्म सूत्रों में खंडन किया है..

और अंतिम सूत्र में कहते हैं वासुदेव आदि का कोई वैदिक आधार नहीं है ..

ये भागवती पंचरात्र मूलभूत रूप से रासलीला रचाते हैं और हर भागवती बाबा कृष्ण बन अवतरित हो जाता है. ये औरत प्रेमी सेक्स तन्त्र के अनुसार ही कृष्ण से ज्यादा “राधे राधे कहते हैं. बल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य इत्यादि भागवती पांचरात्र तन्त्र के अनुयायी थे. वल्लभाचार्य का अपने लिंग पर तनिक भी कंट्रोल नहीं था, उसके 9 बच्चे थे. महात्मा के कभी 9 बच्चे तो नहीं हो सकते, क्या उसमें थोड़ा भी तप था? वर्तमान में कथाकार दुराचार फ़ैलाने वाले गपोड़शंखी वल्लभाचार्य इत्यादि के ही फॉलोवर हैं और सब पंडे गृहस्थी में रह कर बच्चे जनते हैं, बच्चों के लिए प्रोपर्टी बनाते हैं और वह सब करते हैं जो आम आदमी करता है. इनमे न तप होता है, न सत्य होता है फिर धर्म तो हो ही कैसे सकता है?.