आदि शंकराचार्य उपनिषद की ऋषि परम्परा के महान गुरु और दार्शनिक थे. इनका जन्म केरल के कालड़ी नामक गाँव में हुआ था. आदि शंकर एक नम्बूदरी ब्राह्मण माता पिता की सन्तान थे. इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम अयंबा था. माता पिता ने शिव की आराधना कर शिवगुरु के रूप में पुत्र-रत्न पाया था और शंकर नामकरण किया था. आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार कहे जाते हैं इसलिए “शंकरं शंकराचार्यं’ कह कर इनकी वन्दना की जाती है. इन्होने सिर्फ आठ वर्ष की उम्र में ही सन्यास ग्रहण कर लिया था. इनके गुरु गोविन्दपादाचार्य थे जो भगवान गौड़पादाचार्य के शिष्य थे. आदि शंकर ने बहुत कम उम्र में ही उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता का भाष्य किया था. श्रुतियों भाष्य के इतर आदि शंकराचार्य ने सैकड़ों ग्रन्थों का प्रणयन किया. उन्होंने विष्णु सहस्रनाम तथा सनत्सुजातीय का भी भाष्य किया. हिन्दू धर्म का आधार सभी प्रमुख श्रुतियों पर भगवान आदि शंकराचार्य ने ही पहला भाष्य किया और अद्वैत दर्शन को सभी श्रुतियों का मूल तात्पर्य बताया.
आदि शंकर ने भारत में बौध, जैन, चार्वाक, मीमांसा इत्यादि सभी दर्शनों को अपने शास्त्रार्थ से पराजित कर दिया और अद्वैत धर्म की बुलंद पताका भारत में लहराने लगी. आदि शंकर ने अनेक विधर्मियों को भी अद्वैत धर्म में दीक्षित किया था. इन्होने अन्यान्य मतवादों और पंथों को एकसूत्र में बांधा. उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा और उसके विस्तार के लिए अम्नायों के अनुसार भारत के चार कोनो में चार मठों की स्थापना किया. भारतवर्ष में चार कोनों में स्थापित ये चार मठ बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं. इन पीठों पर आसीन आचार्य भी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं. ये चारों मठ हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम (उत्तराम्नाय), (२) श्रृंगेरी पीठ (दक्षिणाम्नाय) , (३) द्वारिका शारदा पीठ (पश्चिम्नाय) और (४) पुरी गोवर्धन पीठ (पुर्वाम्नाय). इन चार मठों के शंकराचार्य सनातन धर्म के सबसे बड़े आचार्य हैं. इनके द्वारा स्थापित सन्यासी दसनामी परम्परा के सन्यासी होते हैं. दसनामी परम्परा के सन्यासी अपने नाम में सरस्वती,गिरि, पुरी, बन, पर्वत, अरण्य, सागर, नाथ, तीर्थ, आश्रम लिखते हैं. भारती उपनाम वाले गुसांई, गोसाई, गोस्वामी भी इस परम्परा में माने गये हैं. आदि शंकराचार्य ने अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया और शक्तिपीठों की पुनः स्थापना की. धर्म स्थापना करके 32 वर्ष की आयु में आदि शंकराचार्य कैलाश में प्रविष्ट हो गये थे.
जयंती पूजन का मुहूर्त –
भारत में आदि शंकराचार्य जयंती श्रद्धालु बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं. हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती के रूप में मनाया जाता है. पञ्चमी तिथि का प्रारम्भ 12 मई 2024 को सुबह 02 बजकर 03 मिनट से होगी और पञ्चमी तिथि का समापन 13 मई 2024 को सुबह 02 बजकर 03 मिनट पर होगी. इस साल शंकराचार्य जयंती रविवार , 12 मई, 2024 को मनाई जाएगी. भगवान शंकराचार्य की जयंती के दिन इनकी विधि पूर्वक पूजा और तर्पण करना चाहिए तथा ब्राह्मण भोज कराना चाहिए. यदि सक्षम हों तो किसी वेदांत आचार्य को बुलाकर कार्यक्रम करना चाहिए और इनके उपदेशों को सुनना चाहिए.

