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आचार्य प्रशांत के लल्लन टॉप पर एक साक्षात्कार में एक लडकी द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर उन्होंने बौध मत के अनुसार दिया और कहा कि अद्वैत ईश्वर को नहीं मानता सिर्फ चेतना को मानता है. जबकि सभी उपनिषद, ब्रह्म सूत्र और भगवद्गीता में वह अद्वैत तत्व ईश्वर ही है. शास्त्र का ज्ञान परम्परा से होता है, मनमाने ढंग से पढने पर ऐसा अनर्थ होता है. अद्वैत वेदांत निरीश्वरवादी नहीं है क्योंकि यह वेद और उपनिषद का निष्कर्ष है और वेद-उपनिषद नास्तिक दर्शन नहीं है.

बृहदारण्यक उपनिषद का प्रसिद्ध डिस्कोर्स जिसमे याज्ञवल्क्य गार्गी से कहते हैं -उसके प्रसाशन में हे गार्गी सूर्य, चन्द्र अपने अपने कर्मों में नियुक्त हैं. उसके प्रशासन में हे गार्गी निमेष, मुहूर्त, अहोरात्रि, महीने, ऋतुयें और सम्वत्सर होत्ते हैं.
“एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्यचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठत एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि द्यावापृथिवौ विधृते तिष्ठत एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि निमेषा मुहूर्ता अहोरात्राण्यर्धमासा मासा ऋतवः संवत्सरा इति “

इस बात को ब्रह्मसूत्र में भी भलीभांति स्थापित किया गया है. “सा च प्रशासनात” पर शांकर भाष्य है- “साचाम्बरांतधृति: परमेश्वर्यस्य कर्म:” आकाश आदि को धारण करना परमेश्वर का कर्म है. “प्रशासनं च परमेश्वरं कर्म” जगत का प्रशासन परमेश्वर का कार्य है. वेदांत वेद को ख़ारिज नहीं करता, ऋग्वेद में भी यही कहा गया है “सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व: ॥” सृष्टि के प्रारम्भ में उस परमात्मा ने ही संकल्प से सूर्य और चन्द्र को इस सृष्टि के दो ध्रुव के रूप में प्रकट किया, उन्होंने ही द्यौ लोक, अन्तरिक्ष और पृथ्वी को प्रकट किया..

भगवद्गीता में भी ईश्वर को सबका रचयिता और कारण कहा गया है. “अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। ” और यह कहा गया है –
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।15.12।।
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।15.13।।
जो तेज सूर्य में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और अग्नि में है, उस तेज को तुम मेरा ही जानो। मैं ही पृथ्वीमें प्रविष्ट होकर अपनी शक्तिसे समस्त प्राणियोंको धारण करता हूँ; और मैं ही रसमय चन्द्रमाके रूपमें समस्त ओषधियों-(वनस्पतियों-) को पुष्ट करता हूँ। मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है। समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ।
“यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।” वही अविनाशी ईश्वर तीनों लोकोंमें प्रविष्ट होकर सबका भरण-पोषण करता है। वही किसी को बिना कर्म के ही प्रसन्न होने पर साम्राज्य प्रदान कर देता है. उन्होंने ही सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी को वेदों का ज्ञान दिया जिससे कर्म और यज्ञ की उत्पत्ति हुई. उन्होंने महर्षियों को उत्पन्न किया. ब्रह्म सूत्र में भी वेदव्यास के जन्म का प्रकरण है. भगवान के आदेश से यह याज्ञिक विद्वान् ब्राह्मण वेदव्यास बन कर द्वापर में आये और वेदों का विभाग किया.

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।10.6।।
सात महर्षिजन, पूर्वकाल के चार (सनकादि) तथा (चौदह) मनु ये मेरे प्रभाव वाले मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार (लोक) में यह प्रजा है।।

इसके इतर कर्म फल प्रदान करने वाला भी परमात्मा ही कहा गया है. जीवो को उनके कर्मों के अनुसार योनियों में डालने वाला स्वयं परमात्मा ही है. भगवद्गीता में श्लोक प्राप्त है –
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।16.19।।
उन द्वेष करनेवाले, क्रूर स्वभाववाले और संसारमें महान् नीच, अपवित्र मनुष्योंको मैं बार-बार आसुरी योनियोंमें गिराता ही रहता हूँ।

ब्रह्मसूत्र में भी “फलमत उपपत्ते ” सूत्र द्वारा फल दाता ईश्वर को ही कहा गया है. आदि शंकर का भाष्य है “ईश्वर से ही त्रिविध फल की प्राप्ति होती है क्योकि वह ईश्वर कर्माध्यक्ष है, सृष्टि-स्थिति-विनाश जैसे विचित्र कार्य का सम्पादन करने वाला, विशेष देश-काल को जानने वाला, सर्व विज्ञ है. कर्मी प्राणी के कर्मानुसार उसके फल का विधान ईश्वर ही करता है. यह छान्दोग्य श्रुति से प्रमाणित है “स वा एष महानज आत्मान्नादो वसुदान:” वह परमात्मा अजन्मा, सभी प्राणियों अन्न देने वाला और धन देने वाला है”. भगवद्गीता में भी है –
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्।।7.22।।
मेरे द्वारा स्थिर की हुई उस श्रद्धासे युक्त हुआ वह उसी देवताके स्वरूपकी सेवा पूजा करनेमें तत्पर होता है। और उस आराधित देवविग्रहसे कर्मफलविभागके जाननेवाले मुझ सर्वज्ञ ईश्वरद्वारा निश्चित किये हुए इष्ट भोगोंको प्राप्त करता है। वे भोग परमेश्वरद्वारा निश्चित किये होते हैं इसलिये वह उन्हें अवश्य पाता है.