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मत्स्य पुराण अठारह प्रमुख पुराणों में से एक है, और हिंदू धर्म में संस्कृत साहित्य की पौराणिक शैली में सबसे पुराने और बेहतर संरक्षित ग्रंथों में से एक माना गया है. यह प्रारम्भिक पुराणों में एक है, सम्भवत: यह पहला पुराण है और विष्णुपुराण इसके बाद का है. रामचंद्र दीक्षित तमिलनाडु के एक विद्वान् ब्राह्मण, इतिहासकार, भाषाविद और द्रविड़शास्त्री थे और तमिल लोगों के पवित्र ग्रन्थ तिरुकुरल का उन्होंने अनुवाद किया था. उनका मानना है कि इस ग्रंथ की रचना संभवतः पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की अंतिम शताब्दियों में शुरू हुई होगी, और इसका पहला संस्करण सामान्य युग की तीसरी शताब्दी तक पूरा हुआ होगा. पांडुरंग वामन काणे संस्कृत के एक विद्वान्‌ एवं प्राच्यविद्याविशारद थे, उन्होंने इसकी रचना का समय 200 से 500 AD माना है जो हमें सही लगता है. 200 से 300 के बीच का समय ही पौराणिक युग के प्रारम्भ का समय भी है. यह गुप्त काल है जिसमे वैष्णव सम्प्रदाय ने अवतारवाद को स्थापित करना शुरू कर दिया था जिसे आगे की शताब्दियों में विशेष रूप प्रचारित किया गया था. वैष्णव अवतारों के इदगिर्द पुराण लिखे जाने लगे. आदि शंकराचार्य 700 AD में जन्मे थे, उन्होंने इस पुराण और विष्णु पुराण का उद्धरण अपने भाष्यों में कहीं कहीं किया है लेकिन प्राथमिकता के साथ नहीं किया है. इससे यह स्पष्ट है कि आदि शंकर के समय तक सिर्फ ये दो पुराण ही आस्तित्व में थे और कोई पुराण यदि था तो वह उस योग्य नहीं था कि उसका उद्धरण दिया जा सके.

मत्स्यपुराण विष्णु के पहले अवतार की कथा है. इस कथा के प्रारम्भ में सृष्टि के प्रारम्भ का जिक्र है. यहाँ प्रश्नकर्ता मनु भगवान से पूछते हैं कि ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री सरस्वती पर कुदृष्टि डाली तो उन्हें दोष क्यों नही लगा. भगवान कहते हैं कि क्योंकि ब्रह्मा जी वेदों समूह रूप है और सरस्वती वेदों की अधिष्ठात्री देवी हैं पर कुदृष्टि डालने से कोई दोष नहीं लगा. दोनों एक साथ धुप और छाया की तरह रहते हैं. फिर भी ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर कामदेव को श्राप दे दिया कि तुम शीघ्र ही शिव द्वारा भस्म किये जाओगे. इस श्राप से भयभीत कामदेव ने बड़ी प्रार्थना की और अपना शरीर प्राप्त करने का का उपाय पूछा. ब्रह्मा जी ने कहा कि वैवस्त मन्वन्तर में जब असुरो का नाश करने बलराम यदुवंश में अवतार लेंगे और द्वारका में अपना निवास स्थान बनायेंगे, उस तुम श्री कृष्ण के रूप उनके छोटे भाई बन कर जन्म लोगे. सम्पूर्ण भोगों का भोग करके तुम भरत वंश में महाराज वत्स के पुत्र होगे. उसके बाद तुम विद्याधर बन कर विद्याधरों के अधिपति बनोगे तदुपरान्त तुम मेरे पास वापस आ जाओगे.

कृष्ण पंथी वैष्णवों का विकास इसके बाद होता है और अलग अलग वैष्णव सम्प्रदाय अपना प्रपंच फैलाते हैं. इसमें भागवती 9वीं शताब्दी में भागवत पुराण लिख कर सबसे आगे निकल गये. राजन कृष्ण के अवतार रूप का विकास हुआ, यह मत्स्यपुराण से एकदम स्पष्ट है. मत्स्यपुराण में ब्रह्मा के श्राप से कामदेव के अवतार मनुष्य रूप में कृष्ण हुए. इस अवतार से भागवत के “कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्” के बीच ज्यादा समय नही लगा है कुल 600 साल लगा. महाभारत के कृष्ण एक राजा थे, धार्मिक और प्रपंची थे. महाभारत में इनकी तपस्या और शिव से वरदान आदि का वर्णन है. इनकी इमेज को अवतारवादी वैष्णवों ने धीरे धीरे गढ़ा जिसमें लम्बा वक्त लगा है. कृष्ण के इमेज के विकास की कई साम्प्रदायिक लाइन है ज्यादातर विकृत ही है और पांचरात्रि वैष्णवों ने हिन्दू बच्चुस (Bacchus) बना दिया.